भारत में मोबाइल नंबर 10 अंकों का ही क्यों होता है? जानिए इसके पीछे का गणित और हर डिजिट का मतलब!
किसी को भी फोन करने के लिए आपको एक यूनिक मोबाइल नंबर मिलाना होता है। अगर गलती से मोबाइल नंबर का एक भी डिजिट कम या ज्यादा हो जाए, तो वह नंबर अवैध बता दिया जाता है और कॉल नहीं लगती। लेकिन क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की है कि भारत में मोबाइल नंबर 10 डिजिट के ही क्यों होते हैं।

क्या है 10 डिजिट के मोबाइल नंबर का सीक्रेट? (Picture Courtesy: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। हम सभी रोजाना मोबाइल नंबर डायल करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भारत में यह नंबर 10 अंकों का ही क्यों होता है? फोन नंबर में अगर एक भी नंबर छूट जाए या ज्यादा जुड़ जाए, तो वह नंबर अवैध हो जाता है। ये नंबर अगर 8, 9 या फिर 11 अंकों का हो तो क्या परेशानी है?
दरअसल, मोबाइल नंबर के 10 डिजिट एक बहुत ही सोच-समझकर तय किए गए सिस्टम का नतीजा है। आइए जानें मोबाइल नंबर में 10 अंक ही क्यों होते हैं और इनका क्या मतलब है?
क्या है इसके पीछे का मैथ्स?
सबसे पहले इसके गणित को समझते हैं। दरअसल, हर देश अपनी आबादी के हिसाब से फोन नंबर की संख्या तय करता है। 10 अंकों के नंबर सिस्टम में उपलब्ध कुल नंबरों की संख्या होती है 10 अरब। यह एक विशाल संख्या है जो किसी भी देश की जनसंख्या को यूनिक नंबर देने के लिए काफी है।
अगर नंबर 9 अंकों के होते, तो कुल उपलब्ध नंबर सिर्फ 100 करोड़ होते, जो भारत जैसी विशाल आबादी वाले देश के लिए काफी नहीं हैं। वहीं 11 अंकों के नंबर 100 अरब संभावनाएं पैदा करते, जो शायद जरूरत से काफी ज्यादा होतीं और डायल करने में ज्यादा समय लेतीं। इसलिए काफी सोच-समझकर भारत के लिए 10 डिजिट का मोबाइल नंबर तय किया गया है।
क्या बताते हैं ये 10 डिजिट?
मोबाइल नंबर सिर्फ एक पहचान नहीं है, बल्कि यह एक 'पता' भी है जो टेलीकॉम नेटवर्क को बताता है कि कॉल को किस दिशा में रूट करना है। भारत में, मोबाइल नंबर की संरचना को कुछ इस तरह से बनाया गया है-
- पहले चार या पांच अंक- ये 'कंवर्टर कोड' होते हैं, जो मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटर और टेलीकॉम सर्कल की पहचान करते हैं।
- बाकी के छह या पांच अंक- ये ग्राहक का यूनिक नंबर होता है।
क्या भारत में हमेशा से 10 अंको के ही होते थे मोबाइल नंबर?
भारत में 1990 के दशक तक टेलीफोन नंबर 6 या 7 अंकों के हुआ करते थे। लेकिन 2000 के बाद मोबाइल क्रांति आई और ग्राहकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। साथ ही, जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही थी। इसलिए पुराने नंबरिंग सिस्टम में नए ग्राहकों के लिए पर्याप्त संख्या उपलब्ध नहीं थी। इस चुनौती से निपटने के लिए, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने एक नई योजना बनाई और 2003 के आसपास पूरे देश में 10 अंकों के मोबाइल नंबर लागू कर दिए गए।
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