द्रौपदी मुर्मु। इतिहास के प्रत्येक कालखंड में हमारी मातृभूमि ने ऐसे वीर बेटे-बेटियों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने विलक्षण योगदान के बल पर भारत की भावना को अभिव्यक्ति दी है। कुछ विभूतियों ने सप्तर्षि मंडल के नक्षत्रों की तरह हमारा मार्गदर्शन किया। भगवान बिरसा मुंडा हमारे नक्षत्र मंडल के सबसे चमकते सितारों में से एक थे, जिनका प्रकाश राष्ट्र के मार्ग को आलोकित करता है। आज जब देश ने अपने आधुनिक इतिहास के इस महान व्यक्तित्व की 150वीं जयंती का साल भर चलने वाला समारोह शुरू किया है, तब मैं उनकी पुण्य स्मृति को कृतज्ञतापूर्वक नमन करती हूं। मुझे याद आता है कि कैसे बचपन में भगवान बिरसा मुंडा की गाथाएं सुनकर मुझे और मेरे संगी-साथियों को अपनी विरासत पर गर्व होता था। मात्र 25 वर्ष की आयु में आज के झारखंड के उलिहातू गांव का वह बालक औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध जन-प्रतिरोध का महानायक बन गया। जब ब्रिटिश अधिकारी और स्थानीय जमींदार जनजातीय समुदायों का शोषण कर रहे थे, उनकी जमीनें हड़प रहे थे और अत्याचार कर रहे थे, तब भगवान बिरसा इस सामाजिक-आर्थिक अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े हुए। उन्होंने लोगों को अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए प्रेरित किया।

‘धरती आबा’ के रूप में सम्मानित भगवान बिरसा ने ब्रिटिश उत्पीड़न के विरुद्ध ‘उलगुलान’ या मुंडा विद्रोह का संचालन किया। यह एक विद्रोह से कहीं बढ़कर न्याय और सांस्कृतिक पहचान के लिए था। उनकी सूझबूझ ने जनजातीय लोगों द्वारा बिना किसी हस्तक्षेप के अपनी जमीन पर खेती करने के अधिकार और जनजातीय रीति-रिवाजों के महत्व को एक साथ जोड़ दिया। महात्मा गांधी की तरह उनका संघर्ष भी न्याय और सत्य की खोज से प्रेरित था। बीमारों की सेवा उनके लिए मिशन था। उन्हें एक उपचारकर्ता का प्रशिक्षण मिला था। अद्भुत घटनाओं की एक शृंखला ने लोगों में यह विश्वास पैदा किया कि ईश्वर ने उन्हें एक महान उपचारक का विशेष स्पर्श दिया है। वह गांव-गांव बीमारों से मिलने जाते और अपने कौशल से असंख्य लोगों को स्वस्थ करते। उनके बलिदान की गाथा भारत के जनजातीय समुदायों के महान क्रांतिकारियों के इतिहास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। उनके संघर्ष हमारी उस अनूठी परंपरा को रेखांकित करते हैं, जहां कोई भी समुदाय कभी मुख्यधारा से अलग नहीं रहा। वनवासी, जो आज अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी में आते हैं, हमेशा से राष्ट्रीय सामूहिकता का हिस्सा रहे हैं।

एक समय था जब भगवान बिरसा मुंडा और अन्य ऐसी विभूतियों का नाम इतिहास के ‘गुमनाम नायकों’ में था। हाल के दिनों में मातृभूमि के लिए उनके पराक्रम और बलिदान को अधिक से अधिक लोगों द्वारा सही मायने में सराहा जाने लगा है। आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान हमने अपनी संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास का उत्सव मनाया। इससे देशवासियों, विशेषकर युवा पीढ़ी को ऐसे महान देशभक्तों के वीरतापूर्ण योगदान के बारे में अधिक जानकारी मिली, जिनके बारे में पहले कम लोग जानते थे। इतिहास के साथ इस नए जुड़ाव को तब बढ़ावा मिला, जब सरकार ने 2021 में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का स्मरण करने के लिए बिरसा मुंडा की जयंती-15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया।

बिरसा मुंडा की विरासत के स्मरणोत्सव का उद्देश्य लंबे समय से उपेक्षित जनजातीय इतिहास को भारत के इतिहास के केंद्र में स्थापित करना है। इतिहास के ऐसे अध्याय आज और भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि वे आधुनिक विश्व को प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने और पारिस्थितिकी को संरक्षित करने की महत्वपूर्ण शिक्षा देते हैं। जब मैं छोटी थी, तब पिता को ईंधन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सूखी लकड़ियों को काटते समय भी माफी मांगते हुए देखती थी। आम तौर पर जनजातीय समुदाय के लोग संतुष्ट रहते हैं, क्योंकि वे निजी महत्वाकांक्षाओं की तुलना में सामूहिक अच्छाई को अधिक महत्व देते हैं। मानव जाति के बेहतर भविष्य के लिए जनजातीय समाज की इस विशेषता को पोषित करने के लिए ही पिछले दशक में सरकार ने भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक तानेबाने में जनजातीय समुदायों के महत्व को उचित मान्यता देने के लिए व्यापक प्रयास शुरू किए। उसने नारों से परे जाकर जनजातीय कल्याण के प्रयासों को जमीनी स्तर पर ले जाने के उद्देश्य से कई कार्यक्रम एवं योजनाएं लागू की हैं। जनजातीय विकास और कल्याण हेतु समग्र दृष्टिकोण के साथ करीब 63,000 जनजातीय गांवों में सामाजिक विकास के बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा करने के लिए गत माह धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान शुरू हुआ। प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान (पीएम-जनमन) भी कल्याणकारी प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए 11 महत्वपूर्ण कार्यक्रमों पर केंद्रित है।

जनजातीय समुदायों के सर्वांगीण विकास के लिए अथक प्रयास करना ही भगवान बिरसा मुंडा और अन्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति राष्ट्र की ओर से सच्ची श्रद्धांजलि है। मेरे लिए यह अत्यंत संतोष की बात है कि राष्ट्रपति भवन में भी जनजातीय समुदाय के लोगों तक पहुंचने के लिए नई पहल की गई। राष्ट्रपति भवन संग्रहालय में ‘जनजातीय दर्पण’ गैलरी के उद्घाटन को मैं अपना सौभाग्य मानती हूं। यह गैलरी समृद्ध कला, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण में जनजातीय समुदायों के योगदान की झलक दिखाती है। अगस्त में राज्यपालों के सम्मेलन में मुझे जनजाति कल्याण के लिए संसाधनों के बेहतर उपयोग की जरूरत पर विचार रखने का अवसर मिला।

मुझे विशेष रूप से कमजोर 75 जनजातीय समुदायों के प्रतिनिधियों से संवाद का मौका मिला, जिन्हें राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित किया गया। उन्होंने मेरे साथ अपने सुख-दुख साझा किए। अगर कोई एक उपलब्धि है, जिस पर मुझे गर्व है तो वह हमारे जनजातीय भाई-बहनों की वह भावना है, जिसके कारण मेरे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होने को वे समस्त जनजातीय समुदाय के लिए एक अभूतपूर्व मान्यता के रूप में देखते हैं। हम सब मिलकर इसी भावना के साथ बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मनाने की शुरुआत कर रहे हैं। मेरा मानना है कि बिरसा मुंडा के आदर्श न केवल जनजातीय, बल्कि देश के सभी समुदायों के युवाओं के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत हैं। स्वतंत्रता, न्याय, पहचान और सम्मान के लिए बिरसा मुंडा की आकांक्षाएं देश के हर युवा की आकांक्षाएं हैं।

(लेखिका भारत की राष्ट्रपति हैं)