जागरण संपादकीय: अवैध निर्माण के खिलाफ खुली राह, बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कर दिया समाधान
सर्वोच्च न्यायालय के दिए दिशानिर्देश के आलोक में हर राज्य के शासन को इस कार्य हेतु एक टास्क फोर्स का गठन करने पर विचार करना चाहिए और युद्ध स्तर पर प्रभावी कार्रवाई करनी चाहिए जिससे देश की बहुमूल्य संपत्ति अराजक तत्वों के हाथ में न जाने पाए। यह समय की मांग है कि अतिक्रमण की गई संपत्ति को वापस लिया जाए एवं संगठित अपराधियों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई की जाए।
विक्रम सिंह। पिछले दिनों बुलडोजर कार्रवाई के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की विभिन्न लोगों की ओर से चाहे जैसी व्याख्या की गई हो, सच यह है कि इस फैसले ने सभी की शंकाओं का समाधान कर दिया। उसने अवैध निर्माण और अतिक्रमण के ध्वस्तीकरण के संबंध में पूरे देश के लिए पारदर्शी दिशानिर्देश पारित किए। इस पर एक वर्ग कह रहा है कि अब बुलडोजर न्याय अथवा अन्याय का पटाक्षेप हो गया।
दूसरा वर्ग कह रहा है कि बुलडोजर मामा, बुलडोजर बाबा का युग समाप्त हो गया। कुछ लोग यह दावा कर रहे हैं कि अब बुलडोजर सदैव के लिए गैरेज में बंद हो गए। नि:संदेह ये भावनाएं न्याय से कम और राजनीति से ज्यादा प्रेरित हैं। शीर्ष अदालत के निर्णय को लेकर राजनीति अधिक खेली जा रही है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में यह कहीं भी अंकित नहीं है कि अवैधानिक ढांचों पर कार्रवाई संभव नहीं है। शीर्ष न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि उसका आदेश किसी भी अवैधानिक भवन, सार्वजनिक स्थान पर निर्मित भवन, रेलवे की संपत्ति, जलाशय या ऐसी किसी संपत्ति पर प्रभावी नहीं होगा, जिसके ध्वस्तीकरण का आदेश किसी न्यायालय की ओर से दिया गया है। उसके आदेश से यह भी साफ होता है कि यदि किसी आरोपी का मामला कोर्ट में विचाराधीन है अथवा वह दोषी सिद्ध हो चुका है, तब भी उसका अवैध निर्माण ध्वस्त किया जा सकता है।
गैरकानूनी निर्माण के ध्वस्तीकरण की जो भी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई है, वह संविधानसम्मत है। इस प्रक्रिया के तहत सबसे पहले आरोपी को 15 दिन पूर्व नोटिस देना होगा। नोटिस रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा प्रेषित करना होगा। इसकी प्रतिलिपि जिला अधिकारी को भेजनी होगी।
फिर जिलाधिकारी एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति करेंगे, जो पूरे प्रकरण की सुनवाई करेगा। इसके बाद ध्वस्तीकरण आवश्यक होगा तो उसकी वीडियोग्राफी करनी होगी। इस दौरान वहां संबंधित विभाग के अधिकारी भी उपस्थित रहेंगे। इससे पहले भवन स्वामी को पूरा अवसर देना होगा कि वह ध्वस्तीकारण की कार्रवाई वह स्वयं कर ले।
यदि संबंधित भवन पूरी तरीके से वैधानिक है और उसका स्वामी गंभीर अपराधों में वंछित हो अथवा दंडित हो तो ऐसे भवन के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई अमान्य होगी। यदि संबंधित भवन में कुछ अनियमितताएं हैं और भू स्वामी भले ही आरोपी हो या घोषित अपराधी, फिर भी ध्वस्तीकरण की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के अनुरूप होगी। इन दिशानिर्देशों की अवहेलना को न्यायालय की अवमानना माना जाएगा और ध्वस्तीकरण का हर्जाना अधिकारियों के वेतन से दिया जाएगा।
विगत सात वर्षों में अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण के लगभग 2000 प्रकरण प्रकाश में आए हैं, जिनमें अकेले 1500 उत्तर प्रदेश से हैं। यहां यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि उत्तर प्रदेश में लगभग 70,000 एकड़ अनाधिकृत तरीके से और गुंडागर्दी से कब्जाई हुई भूमि मुक्त कराई गई है।
प्रयागराज में माफिया अतीक अहमद ने जिन भूखंडों पर कब्जा किया था, उन्हें खाली कराकर निर्धन वर्ग के लोगों के लिए आवास बनाकर आवंटित किए गए। इसी तरह जलाशयों पर किए गए अवैधानिक निर्माणों को ध्वस्त कर जनता को समर्पित किए गए। वास्तव में कुछ स्थानों पर भू माफिया द्वारा सरकारी और समाज के दुर्बल वर्ग की जमीन की लूट की भयावह स्थिति थी।
यह संतोष का विषय है कि उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड आदि में भी इस दिशा में प्रभावी कार्रवाई की गई। यह एक सच्चाई है कि निहित स्वार्थ से प्रेरित कुछ तत्व भू माफिया का परोक्ष और प्रत्यक्ष समर्थन करते हैं। इन तत्वों द्वारा सरकारी भूमि और संपत्ति की लूट की न कभी आलोचना की जाती है और न ही निंदा।
अपितु जब कभी शासन-प्रशासन ने अराजक तत्वों के विरुद्ध कोई कार्रवाई शुरू की तो उनकी ओर से उसका प्रबल विरोध किया गया। अक्सर बड़ी संख्या में रोहिंग्या, अवैधानिक रूप से आए हुए बांग्लादेशी नागरिकों को बसाने के लिए ऐसे ही स्वार्थी तत्व उन्हें नकली पहचान पत्र, आधार कार्ड आदि उपलब्ध कराने का काम करते हैं। यह अस्वीकार्य है। जो लोग वोट बैंक के लोभ में घुसपैठियों को अवैध तरीके से भारत का नागरिक बनाने का काम करते हैं, वे राष्ट्रीय हितों से खिलवाड़ ही करते हैं।
यह समझा जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्माण और अतिक्रमण को मान्यता नहीं दी है और न ही उसके प्रति नरमी बरती है। लखनऊ में अकबर नगर पूरी तरह अवैध कालोनी थी। न्यायालय के आदेश पर उसे ध्वस्त किया गया, परंतु यह सफलता उत्तराखंड के बनभूलपुरा में नहीं मिल सकी। यह ध्यान रहे कि सरकारी अथवा गैर सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण अकस्मात नहीं हो जाते।
शासन-प्रशासन की लापरवाही के कारण धीरे-धीरे ये बड़ा आकार ले लेते हैं। सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा अपराधी और असामाजिक तत्व योजनाबद्ध तरीके से कराते हैं और जब उसे नियमानुसार हटाने का प्रयास किया जाता है तो वे हंगामा करते हैं। आज के युग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, गूगल अर्थ, 3डी मैप आदि टेक्नोलाजी उपलब्ध हैं, जिससे अतिक्रमण के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई संभव है।
सर्वोच्च न्यायालय के दिए दिशानिर्देश के आलोक में हर राज्य के शासन को इस कार्य हेतु एक टास्क फोर्स का गठन करने पर विचार करना चाहिए और युद्ध स्तर पर प्रभावी कार्रवाई करनी चाहिए, जिससे देश की बहुमूल्य संपत्ति अराजक तत्वों के हाथ में न जाने पाए। यह समय की मांग है कि अतिक्रमण की गई संपत्ति को वापस लिया जाए एवं संगठित अपराधियों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई की जाए। इसमें संलिप्त अधिकारियों पर भी कठोर दंडात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है, जिससे अपराधियों, अधिकारियों एवं नेताओं का अपराधिक गठजोड़ टूट सके।
(लेखक उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक हैं)