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    बिहार चुनाव 2025: क‍िसे करें वोट, जब मुकाबले में आमने-सामने रिश्‍तेदार, मतदाता हो जाते लाचार

    By Vyas ChandraEdited By: Vyas Chandra
    Updated: Wed, 05 Nov 2025 03:57 PM (IST)

    बिहार चुनाव 2025 में जब उम्मीदवार रिश्तेदार हों तो मतदाता दुविधा में पड़ जाते हैं। रिश्तेदारी के दबाव में, उन्हें निष्पक्ष होकर सही उम्मीदवार का चुनाव करना चाहिए। योग्यता, अनुभव और विचारधारा को ध्यान में रखते हुए, मतदाताओं को जागरूक होकर अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए और किसी भी दबाव में नहीं आना चाहिए।

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    बिहार विधानसभा चुनाव का पहला चरण। सांकेत‍िक तस्‍वीर

    व्‍यास चंद्र, पटना। बिहार की राजनीति हमेशा से परिवारवाद और सत्ता के गठजोड़ का गढ़ रही है। खासकर 1980 के दशक से शुरू हुआ यह सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी है।

    एक ओर जहां सत्ता की चाबी बेटा, बेटी, बहू और दामाद संभाल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इन्हीं परिवारों में वर्चस्व की जंग और टिकट की तकरार ने कई बार रिश्तों को मैदान-ए-जंग में बदल दिया।

    विधानसभा चुनावों में मां-बेटे, भाई-भाई, देवरानी-जेठानी और ससुर-बहू जैसे रिश्ते आमने-सामने आ चुके हैं, और हर बार मतदाताओं के सामने एक नैतिक उलझन भी पैदा हुई है।

    बिहार की राजनीति में ऐसे मुकाबले दर्शाते हैं कि सत्ता की राजनीति निजी रिश्तों को भी दांव पर लगा देती है। मतदाताओं के लिए यह केवल नेता चुनने का नहीं, बल्कि संबंधों और मूल्यों की परीक्षा का भी वक्त होता है। इस चुनाव में भी कई सीटों पर ऐसी स्‍थ‍ित‍ि है। 

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    गोविंदपुर में मां-बेटे का ऐतिहासिक मुकाबला

    वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में नवादा जिले की गोविंदपुर सीट पर राजनीतिक इतिहास का एक अनूठा अध्याय लिखा गया, जब चार बार की विधायक गायत्री देवी और उनके पुत्र कौशल यादव आमने-सामने हो गए।

    गायत्री देवी को राजद ने टिकट दिया, तो उनके बेटे कौशल यादव कांग्रेस के प्रत्याशी बनकर उतर पड़े। मतदाता चकित थे, आखिर मां-बेटा एक-दूसरे के विरोधी कैसे हो सकते हैं? हालांकि, चुनाव परिणाम ने स्पष्ट संदेश दिया।

    गायत्री देवी ने पांचवीं बार जीत हासिल की, जबकि बेटा तीसरे स्थान पर रहा। लेकिन राजनीति की यह लड़ाई यहीं नहीं रुकी। 2005 में कौशल यादव ने निर्दलीय चुनाव जीतकर मां को पराजित किया।

    संदेश में भाई-भाई, फिर जेठ से छोटे भाई की पत्‍नी की जंग

    2010 में भोजपुर जिले की संदेश सीट पर भी सियासी परिवार टूटता दिखा। राजद प्रत्याशी विजेंद्र यादव के सामने उनके छोटे भाई अरुण यादव निर्दलीय उम्मीदवार बनकर खड़े हो गए।

    इस मुकाबले में दोनों भाइयों के बीच बंटे वोट की वजह से भाजपा के संजय सिंह टाइगर विजयी हुए। वर्ष 2015 में अरुण यादव राजद टिकट पर जीते, लेकिन कहानी यहीं नहीं थमी।

    2020 में बिजेंद्र यादव को अपनी ही भावज, अरुण यादव की पत्नी किरण देवी से हार का सामना करना पड़ा। संदेश में सियासत अब भाई से लेकर भाभी तक पहुंच चुकी थी।

    शाहपुर में देवरानी-जेठानी आमने-सामने

    शाहपुर सीट (2020) पर भाजपा प्रत्याशी मुन्‍नी देवी को अपनी जेठानी शोभा देवी (स्वतंत्र उम्मीदवार) से टक्कर मिली। नतीजा यह हुआ कि शोभा देवी तीसरे स्थान पर रहीं और मुन्‍नी देवी भी चुनाव हार गईं। यह मुकाबला सिर्फ राजनीतिक नहीं, पारिवारिक प्रतिष्ठा की लड़ाई भी बन गया था।

    जोकीहाट में दो सगे भाई दो ध्रुवों पर


    अररिया जिले की जोकीहाट सीट (2020) पर राजद के सरफराज आलम और उनके भाई शाहनवाज आलम (एआइएमआइएम) के बीच सीधा मुकाबला हुआ। इस टकराव में शाहनवाज ने जीत हासिल कर बड़े भाई को मात दी, और पारिवारिक राजनीति में नया अध्याय जोड़ा।

    नरकटियागंज: बहू बनाम चचेरे ससुर 


    नरकटियागंज विधानसभा सीट पर भी अनोखा मुकाबला देखने को मिला। भाजपा की रश्मि वर्मा को अपने चचेरे ससुर विनय वर्मा (कांग्रेस) के खिलाफ उतरना पड़ा। परिणामस्वरूप बहू विजयी हुई, लेकिन यह मुकाबला घर की दीवारों से निकलकर राजनीतिक मंच तक पहुंच गया।