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    Bihar Election 2025: सीमांचल में हरबार वोटरों का बदलता मिजाज, दिग्गजों की उड़ रही नींद

    Updated: Mon, 03 Nov 2025 04:09 PM (IST)

    सीमांचल में चुनावी माहौल गरमा गया है। सभी पार्टियों के उम्मीदवार अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। राजनैतिक दलों का जमावड़ा लगा हुआ है। सीमांचल में कुल 24 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें मुस्लिम आबादी ज्यादा है। पिछले चुनाव में बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार एआइएमआइएम और अन्य दल भी मैदान में हैं, जिससे मुकाबला और भी दिलचस्प होने की उम्मीद है।

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    अफसर अली, अररिया। सीमांचल की सभी सीटों पर चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है। ज्यों ज्यों चुनाव के दिन करीब आ रहे हैं, प्रत्याशियों की नींदे उड़ रही है। यह क्षेत्र राजनीतिक दलों का केंद्र बन गया है। 11 नंवबर को मतदान होगा और छह नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फारबिसगंज में कार्यक्रम है।

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    जिसपर पर सबकी निगाहें टिकी हैं, लेकिन अस्पष्ट है कि एनडीए और महागठबंधन के लिए राहें आसान नहीं है। आंकड़े इस बात की गवाह है कि सीमांचल क्षेत्र में हरबार वोटरों का मिजाज बदलता है और परिणाम चौकाने वाले होते हैं।

    इस बार एआइएमआइएम, जनसुराज और बागी भी राहों पर रोड़े अटकाने को आतुर हैं। सीमांल क्षेत्र में 24 विधानसभा सीटें आती हैं। अधिकांश विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल है।

    सीमांचल का इलाका न केवल अपनी भौगोलिक स्थिति बल्कि सामाजिक और धार्मिक समीकरणों की वजह से भी राजनीतिक रूप से अहम है। यह क्षेत्र नेपाल, बांग्लादेश के साथ ही पश्चिम बंगाल से सटा हुआ है, जहां मुस्लिम आबादी और पिछड़े वर्गों की बड़ी हिस्सेदारी है। यही वजह है कि यहां का रुख बदलते ही चुनावी नतीजों की दिशा तय कर देता है।

    2020 के चुनाव परिणाम पर गौर करें तो सीमांचल की 24 सीटों में से बीजेपी ने सबसे अधिक आठ सीटें, जदयू चार, कांग्रेस पांच, आरजेडी और माले ने एक-एक सीट जीती थीं। जबकि एआइएमआइएम को पांच सीटें मिली थीं। 2015 में आरजेडी नौ, जदयू पांच, कांग्रेस पांच, बीजेपी पांच सीटें जीती थी। 2015 में आरजेडी यहां नौ सीटें जीतकर सबसे बड़ी ताकत बनी थी।


    सीमांचल की अहमियत को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस इलाके पर फोकस किया है। छह नवंबर को प्रधानमंत्री का फारबिसगंज में कार्यक्रम है। जिसकी तैयारी जोरों पर चल रही है। यहां से वे पूरे सीमांचल को साधने की कोशिश करेंगे।


    मोदी का यह रुख़ केवल विकास परियोजनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके ज़रिए वह सीमांचल में एनडीए की छवि को मजबूत करने की रणनीति भी अपना रहे हैं। जानकारों का मानना है कि पीएम मोदी का हर भाषण केवल वादों का एलान नहीं होता, बल्कि उसमें उनकी पूरी चुनावी रणनीति छिपी होती है।

    लड़ाई होगी दिलचस्प 

    सीमांचल में इस बार की लड़ाई और भी दिलचस्प होगी। 2020 में एआइएमआइएम के प्रदर्शन ने बीजेपी को फायदा पहुंचाया था। असुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने यहां की पांच सीटें जीतकर विपक्षी वोट बैंक में सेंध लगा दी थी। इस वजह से बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।

    महागठबंधन ने सीमांचल पर फोकस करके यहां की रणनीति बदल दी है। माई समीकरण को सफल बनाने की हर मुमकिन कोशिश में है। अगर विपक्षी वोट बैंक एकजुट हुआ तो यह बीजेपी और जदयू के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है।

    एनडीए की तरफ से सीमांचल में बीजेपी और जदयू दोनों सक्रिय हैं। जदयू का पारंपरिक जनाधार यहां पहले से है, लेकिन 2020 में इसका असर कम हुआ। वहीं बीजेपी ने यहां अप्रत्याशित बढ़त बनाई थी। अब दोनों दल मिलकर सीमांचल में विपक्ष की चुनौती का मुकाबला करने की कोशिश कर रहे हैं।