चुनावी किस्सा: बिहार में दो विरोधी एक गाड़ी में करते थे चुनाव प्रचार; आरोप लगे तो प्रतिद्वंद्वी का किया था बचाव
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के माहौल में कोसी क्षेत्र के दो दिग्गज नेताओं परमेश्वर कुमर और लहटन चौधरी की कहानी प्रासंगिक है। दोनों ने विपरीत राजनीतिक विचारधाराओं के बावजूद चुनावी प्रतिद्वंद्विता के बीच भी गरिमा प्रेम और स्नेह बनाए रखा। उन्होंने एक-दूसरे का समर्थन किया और राजनीतिक मर्यादा का उदाहरण प्रस्तुत किया। उनकी मित्रता और आपसी सम्मान की कहानियाँ आज भी क्षेत्र में प्रेरणादायक हैं।

कुंदन कुमार, सहरसा। बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। सभी राजनीतिक दल और नेता अपने-अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए एक-दूसरे पर जमकर छींटाकशी कर रहे हैं। एक-दूसरे को कमतर दिखाने और अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए कोई भी अनुचित हरकत करने से भी नहीं कतरा रहे हैं। कई बार तो हालत यहां तक बन जाते हैं, जब प्रतिद्वंद्वी पर निशाना साधते-साधते उसके निजी और पारिवारिक मुद्दों को भी आम कर दिया जाता है।
परिवार की महिलाओं के बारे में भी अपशब्द इस्तेमाल किया जा रहे हैं, ऐसे वक्त में कुछ पुरानी कहानियां याद आती हैं। कोसी की इन दो महान विभूतियों परमेश्वर कुमर व लहटन चौधरी की राजनीतिक शुचिता, प्रेम व स्नेह की कहानी आज भी इलाके में जीवंत है।
आजादी के बाद संसदीय राजनीति में जहां लहटन चौधरी ने कांग्रेस का झंडा उठाया, वहीं परमेश्वर कुमर ने सोशलिस्ट पार्टी का दामन थामा। कोसी की राजनीति के महत्वपूर्ण स्तंभ रहे दोनों प्रखर स्वतंत्रता सेनानी 60 के दशक में लगातार चुनावी राजनीति में एक-दूसरे के प्रबल प्रतिद्वंद्वी रहे। क्रमवार कांटे की टक्कर में एक दूसरे से हारते व जीतते भी रहे, परंतु विकास के मुद्दे पर हमेशा एक रहे। उन दोनों के बीच आपसी स्नेह भी हमेशा बना रहा।
लहटन चौधरी व परमेश्वर कुमर के बीच महिषी विधानसभा क्षेत्र में कांटे की टक्कर होती रही। इन दोनों नेताओं के जीवन पर गांधी, विनोबा व लोहिया के आदर्शों का प्रभाव रहा। लहटन चौधरी 1952 में तत्कालीन सहरसा जिले के सुपौल विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। 1957 और 1962 में परमेश्वर कुमर ने धरहरा (सुपौल) से जीत हासिल की।
1977 में किया प्रतिद्वंद्वी का बचाव
महिषी विधानसभा क्षेत्र के गठन के बाद 1967 में परमेश्वर कुमर ने अपनी जीत दर्ज कराई। इसके बाद लहटन चौधरी 1972,1980 और 1985 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीते। इस बीच जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के नेतृत्वकारी योद्धा रहे परमेश्वर कुमर ने 1977 के चुनाव में लहटन चौधरी को परास्त कर जीत हासिल की। चुनाव में हमेशा प्रतिद्वंद्वी रहे लहटन चौधरी के मंत्री रहते जब उनपर किसी मामले में अंगुली उठी तो परमेश्वर कुमर ने उसका कड़ा प्रतिरोध किया।
परमेश्वर कुमर ने कहा था कि कोसी के गांधी का अपमान बर्दाश्त योग्य नहीं है। परमेश्वर कुमर के करीब रहनेवाले प्रो. दिलीप कुमार सिंह, पूर्व प्रमुख सियाराम सिंह, मु. मुख्तार आदि ने बातचीत के क्रम में बताया कि चुनाव प्रचार के दौरान भी जब दोनों नेता मिलते थे, तो घंटों एक दूसरे से हंसी- ठिठोली करते थे।
'.. इस बार आपकी नहीं, मेरी बारी है'
मजाक में कहते थे कि इस बार आपकी नहीं, मेरी बारी है। जब एक बार प्रचार के दौरान परमेश्वर कुमर की जीप का ईंधन समाप्त हो गया, तो सूचना पाकर दूसरे टोले में अपना प्रचार कर रहे लहटन चौधरी उनके पास पहुंच गए और अपनी जीप से ईंधन निकालकर परमेश्वर कुमर की गाड़ी में दिया।
उनके प्रशंसकों का कहना है कि एक बार लहटन चौधरी की गाड़ी प्रचार के दौरान खराब हो गई। उसी दिन उनके पक्ष में पार्टी के बड़े नेता ललित नारायण मिश्र की सभा थी, जहां पहुंचना उनके लिए कठिन हो सकता था। जब यह सूचना परमेश्वर कुमर को मिली, तो वे अपनी गाड़ी का झंडा बैनर उतारकर लहटन चौधरी के पास पहुंचे और उन्हें लेकर सभास्थल की ओर चले।
एक ही गाड़ी में बैठे दोनों नेता रास्ते में मिल रहे लोगों से अपने-अपने लिए वोट की अपील भी करते रहे। जब लहटन चौधरी ने कहा कि इससे लोग क्या समझेंगे, तो परमेश्वर कुमर ने कहा क्या समझेंगे, हम अपने लिए और आप अपने लिए वोट मांगिए।
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