सारण विधानसभा सीट: NDA तोड़ेगा हार का सिलसिला या राजद करेगा चौथी बार कमाल?
बिहार की सारण विधानसभा सीट पर एनडीए अपनी पिछली हार का सिलसिला तोड़ने की कोशिश में है, वहीं राजद लगातार चौथी बार जीतने की उम्मीद कर रही है। एनडीए एक नई रणनीति के साथ मैदान में है, जबकि राजद को अपनी मजबूत पकड़ पर भरोसा है। स्थानीय मुद्दे और जातीय समीकरण चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

बिपिन कुमार मिश्रा, मढ़ौरा (सारण)। सारण जिले की सियासत में मढ़ौरा विधानसभा सीट हमेशा से चर्चा का केंद्र रही है। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव की तिथि निकट आ रही है, वैसे-वैसे मढ़ौरा का राजनीतिक तापमान बढ़ने लगा है। इस बार सबसे बड़ा सवाल है कि क्या इस सीट पर राजग लगातार हार का क्रम तोड़ पाएगा, या राजद चौथी बार कमाल करेगा।
राजग बार-बार प्रत्याशी बदलने और कमजोर संगठन से जूझ रहा है। जबकि राजद लगातार तीन बार से एक ही प्रत्याशी देता आ रहा है, जितेंद्र कुमार राय जीत दर्ज कर इस निर्णय को सही भी सिद्ध करते आ रहे हैं।
राजग का ट्रैक रिकार्ड, आंकड़े बयां करते कहानी
मढ़ौरा विधानसभा में राजग के लिए सफलता हमेशा दूर रही है। 1980 से लेकर अब तक राजग गठबंधन (भाजपा-जदयू और सहयोगी दलों) के उम्मीदवारों को यहां से जीत नसीब नहीं हुई। 1980 में भाजपा के महेश्वर सिंह तीसरे स्थान पर रहे, 1990 में बलिराम राय अंतिम पायदान पर पहुंचे। 1995 में कृष्णकांत ओझा भी सातवें स्थान तक सिमट गए।
2000 में समता पार्टी ने पूर्व निर्दलीय विधायक सुरेंद्र शर्मा पर दांव खेला, वे दूसरे स्थान पर रहे और जीत हाथ से निकल गई। 2005 के फरवरी चुनाव में भाजपा के अश्विनी कुमार तेरहवें स्थान पर रहे, वहीं अक्टूबर 2005 में जदयू ने जितेंद्र कुमार राय को उम्मीदवार बनाया, पर वे भी निर्दलीय लाल बाबू राय से हार गए।
यह वही जितेंद्र कुमार राय थे, जो राजद में आने के बाद से अजेय बने हुए हैं। 2010 और 2015 में जदयू-भाजपा गठबंधन ने निर्दलीय रहे लालाबाबू राय पर भरोसा जताया, पर हार का सिलसिला जारी रहा। 2020 में जदयू जिलाध्यक्ष अल्ताफ अहमद राजू को टिकट दिया गया, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा।
राजग की कमजोरियां
संगठन, नेतृत्व की कमी और बार-बार उम्मीदवार बदलना राजग के बार-बार हारने की सबसे बड़ी वजह यहां स्थायी और मजबूत नेतृत्व का अभाव है। हर चुनाव में उम्मीदवारों को बदला जाना राजग की सबसे बड़ी रणनीतिक गलती साबित हुई है।
किसी भी प्रत्याशी को जनता के बीच पहचान बनाने का पर्याप्त समय नहीं दिया गया। परिणामस्वरूप, न तो उम्मीदवार स्थानीय स्तर पर मजबूत हो पाए और न ही संगठन की ढीली चूलें कसी जा सकीं। यहां जातीय समीकरण भी नतीजों में अहम भूमिका निभाते हैं।
राजद का वोट बैंक जहां परंपरागत रूप से स्थिर रहा, वहीं राजग उस समीकरण को तोड़ने में अब तक असफल रहा है। स्थानीय मुद्दों पर प्रभावशाली पकड़ न बना पाना और आपसी समन्वय की कमी भी राजग की राह में बड़ी बाधा रही है।
राजद का मजबूत जनाधार, विधायक भी पूरक
मढ़ौरा में गत तीन चुनावों से राजद का दबदबा कायम है। वर्तमान विधायक जितेंद्र कुमार राय ने लगातार तीन बार जीत हासिल की है और वे राज्य सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। पार्टी के मजबूत संगठन के साथ लंबे समय से क्षेत्र के प्रतिनिधि रहने के कारण व्यक्तिगत प्रभाव भी है। वह संगठन के पूरक हैं। चूंकि हर बार उन्हें जीत मिल रही है, इसलिए दल भी प्रत्याशी नहीं बदल रहा। इस बार देखना होगा िक जनता उन पर भरोसा जताती है या नहीं।
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