'बॉलीवुड बर्बाद हो रहा..'साउथ सिनेमा की बढ़ती पॉपुलैरिटी पर क्या बोले Anupam Kher, बताया हिंदी सिनेमा में कहां है कमी
Anupam Kher चार दशक से ज्यादा समय से इंडस्ट्री में एक्टिव हैं। एक बेहतरीन एक्टर होने के साथ-साथ अनुपम खेर अब डायरेक्टर बनने की राह पर चल पड़े हैं। अपने आने वाले प्रोजेक्ट्स के बारे में अनुपम ने दैनिक जागरण से खुलकर बात की।
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तन्वी द ग्रेट के बाद कौन सी फिल्म डायरेक्ट करेंगे अनुपम खेर
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। साल 2002 में फिल्म ‘ओम जय जगदीश’ निर्देशित करने के बाद अभिनेता अनुपम खेर ने इस साल प्रदर्शित फिल्म ‘तन्वी : द ग्रेट’ निर्देशित की थी। हालांकि अनुपम अब अगली फिल्म के निर्देशन में इतना समय नहीं लेंगे और बतौर निर्देशक सिर्फ ऐसी फिल्में बनाएंगे, जो समाज को कुछ संदेश दें। चार दशक से ज्यादा लंबे प्रोफेशनल करियर और आगे के प्रोजेक्ट्स पर उन्होंने दीपेश पांडेय ने अपने विचार साझा किए।
- आपने नए कलाकारों को सलाह दी कि वे खुद को स्ट्रगलर्स नहीं बुलाए, बल्कि वो कलाकार बुलाए जिसके पास काम नहीं है। ऐसा क्यों?
यह समझ पढ़ने से आती है। ये ‘पढ़े-लिखे’ एक्टर बनने के बाद आती है। हम अपने इंस्टीट्यूट में बच्चों को ट्रेन करते हुए यही सिखाते हैं कि अपने आप को स्ट्रगलर बिल्कुल मत बोलो। समाज और दुनिया की हमेशा यही कोशिश रहती है कि वो आपको अपने जैसा बनाए। जब मैं 22-23 साल की उम्र में पहली बार मुंबई आया था, उस समय यहां पंपोश नाम का रेस्टोरेंट था। किसी ने मुझसे कहा कि तुम्हें वहां जाना चाहिए, वहां स्ट्रगलर बैठते हैं। मैं वहां पहुंच गया, तो उसमें से एक कह रहा था कि मैं आठ साल से, तो दूसरा कहता कि मैं छह साल से स्ट्रगल कर रहा हूं। मेरे मन में विचार आया कि पांच साल बाद मैं भी यहीं बैठकर कह रहा होऊंगा कि पांच साल से स्ट्रगल कर रहा हूं। उसके बाद मैं किसी के साथ नहीं बैठता था, मैं अकेले रहता था।
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- दूसरी फिल्म निर्देशित करने में 23 साल लग गए, अगली फिल्म के लिए कितना समय लगेगा?
अगली फिल्म बनाने मे दो साल से ज्यादा नहीं लगेगा। मैं पहले ही कहानियों की तलाश कर रहा हूं। कुछ ऐसी कहानियां मिली भी हैं, जिन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया है। अब देखते हैं कौन सी पहले बनाता हूं।
- क्या वो सारी कहानियां भी अपने घरेलू प्रोडक्शन में बनाएंगे?
सारी फिल्में अनुपम खेर स्टूडियो में ही बनेंगी। इससे अपनी फिल्म अपने मन से बनाने की स्वतंत्रता रहती है। कोई बताएगा नहीं कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। कोई यह नहीं बोलेगा कि कितना पैसा कहां खर्च करना है।
- ‘तन्वी द ग्रेट’ से इंडस्ट्री के बारे में क्या नई चीजें सीखने को मिली?
इंडस्ट्री वाले जो नियम बनाते हैं, उससे डरना नहीं चाहिए। वो आपको एहसास कराने की कोशिश करते हैं कि पैसा ही सब कुछ है, पैसे से सब किया जा सकता है। पैसा तो अपनी जगह हमेशा रहेगा, लेकिन लोग अच्छा सिनेमा हमेशा बनाते रहेंगे। मैं भी हमेशा अच्छा और प्रभाव डालने वाला सिनेमा बनाता रहूंगा। ‘तन्वी: द ग्रेट’ अभी भी देश के 18 सिनेमाघरों में चल रही है। मैं उसको गोल्डेन जुबली (50 सप्ताह) तक लेकर जाऊंगा। यह हमारे लिए एक सफलता है। इससे हमें पैसे नहीं मिलेंगे, यह अलग अनुभव होगा। मैंने 20 वर्षों में एक भी फिल्म को गोल्डेन जुबली का जश्न मनाते हुए नहीं देखा है।
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- इन दिनों इस पर काफी चर्चा हो रही है कि दक्षिण भारतीय फिल्में जड़ों से जुड़ी और हिंदी फिल्मों की कहानी मुंबई तक ही सीमित रह रही हैं, आपकी क्या राय है?
यह तो बिल्कुल सही है। साउथ में बनने वाली पैन इंडिया फिल्में भारतीय संस्कृति, सभ्यता और जड़ों से ज्यादा जुड़ी हैं। हम (हिंदी सिनेमा) तो कूल बनने के चक्कर में बर्बाद हो रहे हैं। यह भी एक दौर है, जो पिछले हर दौर की तरह निकल जाएगा। हमने हर दौर देखा है। ये भी अच्छा है कि बहुत सारे लोग अच्छी कहानियां लिख रहे हैं।
- इंटरनेट मीडिया पर इतने एक्टिव कैसे रह लेते हैं, अक्सर कई मुद्दों पर कुछ न कुछ साझा करते है?
मेरी कोई इंटरनेट मीडिया टीम नहीं है। मेरे दादा जी कहते थे कि व्यस्त इंसान के पास सब कुछ करने का समय होता है। एक वीडियो बनाने में 30-40 सेकेंड या कुछ मिनट लगते हैं। बस इतना ही तो करना होता है।

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