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    सरलता और सादगी से भरी है कटारिया परिवार की कहानी, वेब सीरीज Bakaiti को लेकर जानिए शीबा चड्डा की राय

    Updated: Fri, 01 Aug 2025 03:49 PM (IST)

    गुल्लक पंचायत ये मेरी फैमिली और अब बकैती। इन शोज़ में क्या समानता है? ये सभी मध्यमवर्गीय जीवन के रोजमर्रा के संघर्षों और साधारण खुशियों पर केंद्रित कहानियां दिखाती हैं। पुराने गाजियाबाद में स्थापित यह सीरीज कटारिया परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है जो फाइनेंसियल समस्याओं से जूझते हैं। इसे अमीत गुप्ता ने डायरेक्ट किया है और ये फुल ऑन फैमिली ड्रामा है।

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    फिल्म बकैती में नजर आईं शीबा चड्ढा (फोटो-इंस्टाग्राम)

    दीपेश पांडे, मुंबई। एक समय था जब डिजिटल प्लेटफार्म पर क्राइम थ्रिलर कहानियां अधिक बनाई जाती थीं। फिर पंचायत, गुल्लक और ये मेरी फैमिली जैसे शो की लोकप्रियता ने बताया कि यहां मध्यम वर्गीय परिवारों से जुड़ी पारिवारिक कहानियां भी खूब चलती हैं।

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    जी5 पर आज से प्रदर्शित वेब सीरीज बकैती भी ऐसे ही कटारिया परिवार की कहानी है। जो एक मध्यमवर्गीय परिवार में आने वाली चुनौतियों, छोटी-छोटी खुशियों, भाई बहन की नोंकझोक और माता-पिता के प्यार को दर्शाती है। शो में सुषमा की भूमिका में हैं अभिनेत्री शीबा चड्ढा। उनसे फिल्म और उससे जुड़े किरदार के बारे में बात की हमारे एक साथ ने। आइए जानते हैं क्या है अभिनेत्री की राय।

    बेहतरीन है दोनों एक्टर्स की केमिस्ट्री

    शीबा ने कहा, 'दर्शक अपने आस-पास और जीवन से जुड़ी ऐसी सादगीपूर्ण कहानियां देखना चाहते हैं, जहां बहुत ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत न पड़े। हमारे दिमाग में पहले से ही कई जटिल चीजें चलती रहती हैं, ऐसे में जब सरल और सादगीभरी कहानी आती है तो दर्शक आकर्षित होते हैं।’

    वेब सीरीज बंदिश बैंडिट्स के बाद इस शो में शीबा की जोड़ी फिर अभिनेता राजेश तैलंग के साथ बनी है। दोनों कलाकार थिएटर से आते हैं। उनके साथ केमिस्ट्री पर शीबा कहती हैं, ‘अभिनय में सह कलाकार संग सामंजस्य होना जरूरी है। अगर कलाकार के साथ पहले काम किया है तो उसका फायदा मिलता ही है।’

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    थिएटर और कैमरा के सामने काम में क्या मुश्किल है?

    शीबा कहती हैं, ‘दोनों की तुलना ही नहीं हो सकती है। कैमरे के सामने आपकी आंखें, चेहरे के हाव-भाव इतने करीब से और बारीकी से दिखते हैं कि थोड़ी भी कमी रह जाने पर वह तुरंत पकड़ लेता है। इसलिए उसमें सच्ची परफार्मेंस ही निखरकर सामने आती है। उस लिहाज से लगता है कि कैमरे के सामने एक्टिंग करना मुश्किल है। थिएटर में उसकी लंबी प्रक्रिया से अभिनय को धीरे-धीरे बेहतर करना संभव है, लेकिन कैमरा के कलाकार बनाए नहीं जा सकते हैं।’

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