कैसे तय होते हैं फिल्मों की टिकटों के दाम? 5 फैक्टर्स से समझें पूरा गणित
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से हाल ही में मल्टीप्लेक्स में फिल्मों की टिकटों के कीमतों को लेकर संज्ञान लिया गया है। इस आधार पर आज हम आपको ये बताने जा रहे हैं कि थिएटर्स टिकट प्राइस का पूरा सिस्टम किस तरह से काम करता है।

फिल्मों की टिकटों का समीकरण (फोटो क्रेडिट- जागरण)
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। एक समय हुआ करता था जब फिल्मों को देखने के लिए सिनेमाघरों की टिकट विंडो पर लंबी दर्शकों की लंबी कतारें लगा करती थीं। लेकिन, आज के वक्त लोग घर बैठे मोबाइल से ऑनलाइन टिकटें बुक कर लेते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से ये कहा गया है कि अगर मल्टीप्लेक्स में फिल्मों की टिकट के प्राइस में कटौती नहीं करेंगे तो आने वाले समय में सिनेमाघर खाली नजर आएंगे। कोर्ट का मानना है कि मौजूदा समय में थिएटर्स में टिकटों के दाम काफी अधिक हैं, जिसका असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है।
सर्वोच्च न्यायलय के संंज्ञान के बाद एक फिर से सिनेमा हॉल में फिल्मों की टिकट की कीमतों के मामले ने तूल पकड़ लिया है।इस आधार पर आज हम आपको सिनेमाघरों में फिल्मों की टिकटों के दाम किस तरह से तय किया जाते हैं, इसके बारे में विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं।
5 फैक्टर्स में होता है काम
दरअसल सिनेमाघरों में फिल्मों की टिकट की कीमतों को लेकर पांच प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। जिनमें राज्य सरकार, मल्टीप्लेक्स की रणनीति, प्रोड्यूसर-डिस्ट्रीब्यूटर का हिस्सा, ऑनलाइन टिकट टैक्स, फूड एंड वेबरेज की भूमिका। इन मापदंडों के आधार पर थिएटर्स में मूवीज टिकट की प्राइस मनी तय की जाती है। आइए जानते हैं कि ये पूरा सिस्टम किस तरह से काम करता है-
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राज्य सरकार
मल्टीप्लेक्स की रणनीति
प्रोड्यूसर-डिस्ट्रीब्यूटर का हिस्सा
ऑनलाइन टिकट टैक्स
फूड एंड वेबरेज
1- राज्य सरकार तय करती है प्राइस कैप
आपको बता दें कि सिनेमाघरों में फिल्मों की टिकटों के प्राइस मनी को राज्य सरकार द्वारा तय किया जाता है। हर राज्य अपने हिसाब से इनके रेट को फिक्स करता है, इसके प्राइस कैप या सीलिंग भी कहा जाता है। लेकिन, दक्षिण भारत में ऐसा देखने को नहीं मिलता है और वहां के राज्यों में टिकटों की कीमतों पर सख्त नियंत्रण देखने को मिलता है। कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल की सरकार ऐसा करती हुई नजर आती हैं।

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इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि तमिलनाडु राज्य में मल्टीप्लेक्स में फिल्मों के टिकट के प्राइस 150-200 रुपये रहती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में इनका रेट 120 रुपये से अधिक नहीं रहता। इसके विपरीत दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और गुजरात में स्लैब सिस्टम को वरीयता दी जाती है। जिसके तहत मॉर्निंग शो सस्ते और इवनिंग महंगे रहते हैं। हालांकि, यहां कि राज्य सरकारें केवल गाइडलाइन तय करती हैं, बाकी रेट मार्केट की दरों के हिसाब से रहते हैं।
2- मल्टीप्लेक्स की रणनीति और कीमतें
किसी भी मल्टीप्लेक्स में फिल्मों की टिकट दाम फिक्स नहीं रहते। वे दर्शकों की डिमांड के आधार पर सरकार के प्राइस कैप के अंतर्गत रहते इसमें फेरबदल करते रहते हैं। इसका अंदाजा आप वीकेंड, बड़े सुपरस्टार्स की फिल्म, प्राइम टाइम शो और अपर सीटों के दाम ज्यादा होने से लगा सकते हैं। अगर शो में दर्शकों क्षमता 80 प्रतिशत से अधिक होती है तो अगले शो की कीमत बढ़ना तय और खासतौर पर फेस्टिवल सीजन में इनमें उछाल देखने को मिलता है।

3- प्रोड्यूसर-डिस्ट्रीब्यूटर की हिस्सेदारी
फिल्म की टिकट बिक्री में अहम हिस्सेदारी प्रोड्यूसर-डिस्ट्रीब्यूटर की भी रहती है। रिलीज के पहले हफ्ते में निर्माताओं को इसका 60 प्रतिशत तक मिलता है, लेकिन जैसे-जैसे बीतता है ये प्रतिशत कम होता चला जाता है। इसमें मल्टीप्लेक्स और थिएटर्स का मार्जिन स्थिर रहता है। अपने फायदे के लिए ज्यादातर मल्टीप्लेक्स फिल्म की रिलीज के फर्स्ट प्राइस को हाई रखते हैं, ताकि वे अपना मार्जिन घाटे में न रखें।

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