'40 बार भी पाकिस्तानी...' सारे जहां से अच्छा में मुर्तजा का रोल निभाने वाले एक्टर को लेकर क्या बोले प्रतीक गांधी
नई वेब सीरीज सारे जहां से अच्छा (Saare Jahan Se Accha) ओटीटी पर रिलीज होते ही ट्रेंड कर रही है। हाल ही में प्रतीक गांधी और सनी हिंदुजा ने दैनिक जागरण के साथ खास बातचीत की। इस दौरान सनी के पाकिस्तानी किरदार निभाने पर प्रतीक ने रिएक्शन दिया है। जानिए उन्होंने क्या-क्या कहा है।

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। देश की खातिर बलिदान देने वाले कई हीरो गुमनाम रह जाते हैं। हाल ही में नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित भारत-पाकिस्तान की पृष्ठभूमि पर बनी वेब सीरीज ‘सारे जहां से अच्छा’ (Saare Jahan Se Accha) ऐसे ही गुमनाम नायक पर केंद्रित है। दैनिक जागरण के साथ खास बातचीत में मुख्य भूमिका निभाने वाले प्रतीक गांधी (Pratik Gandhi) और सनी हिंदुजा (Sunny Hinduja) ने सीरीज से जुड़ी कई बातें शेयर की हैं।
स्पाई थ्रिलर कहानियों के प्रति कैसा आकर्षण रहा है?
प्रतीक गांधी: स्पाई थ्रिलर करने की इच्छा बहुत सालों से थी। सबसे पहला जासूस मेरे दिमाग में आता है वो जेम्स बांड ही है, जिसे बचपन से सुना, देखा, जाना। उनकी सारी चीजें आकर्षक लगती थीं। कुछ दोस्त सेना में कार्यरत हैं। कुछ दोस्तों के पिता IAS और IPS रहे हैं। उनसे बात करके पता चला कि फिल्मों में जैसे पुलिसवाले दिखते हैं, असल जिंदगी में उनका जीवन बहुत अलग तरह से चलता है। वैसे ही जासूसों की दुनिया में भी होता है।
जैसा हम देख रहे हैं, वैसा कुछ नहीं होता। वह हमारे जैसे इंसान हैं, लेकिन उनकी बुद्धि अलग तरह से काम करती है। दूसरा सबसे बड़ा सीक्रेट यह था कि जासूस का काम लड़ाई लड़ना नहीं है। उनका काम है युद्ध से बचाना। जब यह पहलू अलग तरीके से देखते हैं तो आपकी दुनिया बदल जाती है कि हमने जो अब तक सोचा, वो शायद गलत सोच रहे थे।
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सनी, आपकी उर्दू बहुत अच्छी है। फिल्म ‘योद्धा’ के बाद निर्माताओं ने एक बार फिर आपको पाकिस्तानी किरदार में देखा है...
(खिलखिलाकर गर्दन झुका लेते हैं) जहां तक उच्चारण की बात है तो मैं इंदौर से आता हूं। वहां का एक लहजा है, मगर शुक्र है कि मेरा लहजा साफ रहा। बाकी पात्र दमदार होना चाहिए। बतौर कलाकार मैं भूखा भी हूं। अलग-अलग तरह के पात्रों को निभाना चाहता हूं। ‘योद्धा’ और ‘सारे जहां से अच्छा’ की दुनिया अलग है। हमने जासूस की कहानी कई बार देखी है, लेकिन उस जासूस की जिंदगी क्या है? उसे किस प्रकार के इमोशन से जूझना पड़ता है? खुद से अपनी भावनाएं व्यक्त न करें, ऐसी बात होती है। उसमें मेरा मुर्तजा का पात्र ऐसा था कि मना करने की कोई गुंजाइश नहीं थी।
प्रतीक : (उनकी बात को बीच में काटते हुए) सनी थोड़ा विनम्र हैं, इसलिए बोल नहीं पा रहे हैं। यह कलाकार इतने अच्छे हैं कि निर्माताओं को लगता है कि यह 40 बार भी पाकिस्तानी बनेंगे तो कुछ नया लेकर आएंगे। (यह सुनकर सनी हंसते हैं)
अपने देश की कौन सी बात आपको सबसे अच्छी लगती है ?
प्रतीक : हमारे देश में होने वाले आतिथ्य सत्कार का कोई मुकाबला नहीं है। दूसरा मुझे सबसे दिलचस्प लगता है, जिसको खामी माना जाता था कि हमारे यहां लोग बहुत कमियों वाली जिंदगी जीते हैं, क्योंकि संसाधन की कमी है। इसका कारण है आबादी। तो कमी से भरी जिंदगी को जीते हुए जो रास्ता बना रहे हैं, हम जिस प्रकार का इनोवेशन कर पा रहे हैं शायद वो दुनिया सोच भी नहीं सकती। यह बहुत बड़ी धरोहर होगी।
जुगाड़ को मैं इसलिए हाइलाइट नहीं करता क्योंकि यह अस्थायी समाधान है, जिसमें हम माहिर है। अब उस जुगाड़ को जिस दिन हम स्थायी समाधान की ओर ले गए तो हम इनोवेशन का गढ़ बन सकते हैं। यह जर्नी तय करनी बाकी है।
सनी : मुझे लगता है यह जो मोहब्बत है, जो लोगों में एक-दूसरों से मिलने की गर्मजोशी होती है, वह खास है। मैं एकाध बार बाहर गया, लेकिन शायद वहां यह चलन ही नहीं है। मैं इसे सही या गलत नहीं कह रहा हूं। शायद यह उनके कल्चर का हिस्सा नहीं है। पर यहां पर आप किसी भी नई जगह पर चले जाओ, कहीं फंस जाओ, लोग रुककर आपकी मदद करेंगे। मुझे लगता है कि यहां के लोगों में जो मोहब्बत है, वो कहीं नहीं है।
प्रतीक, आपकी वेब सीरीज ‘गांधी’ को अगले महीने टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में दिखाया जाएगा...
(लंबी मुस्कान के साथ) प्रतीक: मैं अपनी कुछ फिल्मों को फिल्म फेस्टिवल में लेकर गया हूं, लेकिन यह जिंदगी का सबसे कीमती अनुभव होने वाला है। यह पहली भारतीय सीरीज है जो टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जाएगी। इस फेस्टिवल का भी 50वां साल है। शूट हम कर ही चुके हैं। कह सकते हैं मेड इन इंडिया फॉर ग्लोबल वैसी ही सीरीज है यह। पहली बार गांधी जी की कहानी भारतीय क्रू के साथ बनाई गई है। उनके पूरे जीवन को दिखाने वाले हैं।
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