'मजे लेकर करूंगा...' 30 साल बाद रंगमंच पर वापसी करने को लेकर एक्साइडेट हैं संजय मिश्रा, इस नाटक में आएंगे नजर
अभिनेता संजय मिश्रा (Sanjay Mishra) 30 साल बाद रंगमंच पर वापसी कर रहे हैं। विजय तेंदुलकर के नाटक घासीराम कोतवाल के हिंदी रूपांतरण में वे नाना फडणवीस का किरदार निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे इस रोल को करते हुए नवोदित जैसा महसूस कर रहे हैं और अपने काम को मजे से करेंगे।

प्रियंका सिंह, मुंबई। जब कलाकार को हर बार काम करने पर नवोदित जैसा महसूस हो, तो समझना कि भीतर का कलाकार जीवित है। ऐसा मानना है अभिनेता संजय मिश्रा का, जो लगभग 30 साल बाद रंगमंच पर दोबारा उतरने के लिए तैयार हैं। इस नाटक, आगामी फिल्मों समेत कई मुद्दों को लेकर उन्होंने बात की।
किसी भी रोल के लिए आपसे हां करवाने में कितना समय लगता है?
मुझसे कोई भी हां बुलवा जाता है। कोई सामने बैठकर कुछ सुनाता है, तो मुझे यही लगता है कि यह भी किसी का बेटा या बहन होगी, घर जाकर अपनों को खुशखबरी देगी कि मैंने अपनी कहानी सुना दी, उन्हें अच्छा लगा। मैं इन्ही भावनाओं में फंस जाता हूं।
30 साल बाद मंच पर लौटने पर कैसा महसूस कर रहे हैं?
विजय तेंदुलकर के लिखे मराठी नाटक ‘घासीराम कोतवाल’ के हिंदी रूपांतरण से अभिनेता रंगमंच पर वापसी कर रहे हैं। इस बारे में उन्होंने कहा, 'मैं इसमें मराठा पेशवा नाना फडणवीस की भूमिका में हूं। इसे करते हुए एक बार फिर नवोदित जैसा महसूस हो रहा है, लेकिन मैं तो अपने काम को मजा लेकर करूंगा। फिर चाहे दर्शक मुझे गाली ही क्यों न दें। कलाकार को मजे से काम करना चाहिए, तभी तो उसकी परफार्मेंस बाहर निकलेगी। स्टेज पर कोई कट तो होता नहीं है, कई बार संवाद कुछ ऊपर-नीचे हो जाते हैं, उसे संभाल लेता हूं। यह नाटक साल 1972 में लिखा गया था। प्रयास होगा कि आज के बच्चों को समझ आ जाए, तो मेरा काम करना सार्थक हो जाएगा।
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नाना फडणवीस का रोल मिलना तकदीर की बात है। जब मेरे जीवन का अंत हो रहा होगा, तो मैं सोचूंगा कि क्या कमाल का नाटक किया था। मैं रियलिस्टिक किस्म का अभिनय करने में यकीन करता हूं। जब तक पात्र अंदर तक महसूस न हो, नहीं कर पाता हूं।
नाना का पात्र जिद्दी किस्म का है, ऐसे में इस पात्र में जाने के लिए क्या भूलना पड़ा?
हमारे ड्रामा स्कूल में इस नाटक को पढ़ाया जाता था। मैंने बतौर दर्शक भी इसे देखा है। उस समय मैं जिस तरह का था, मुझे बिल्कुल नहीं लगा था कि ऐसे नाटक से खुद को जोड़ पाऊंगा। भाला पकड़कर अभिनय करने के लिए भीतर साहस चाहिए। खैर, अब तो अभिनय में इतना अनुभव हो गया है कि मैं इसे अलग ढंग से करूंगा। हां, यह जिद्दी पात्र है, उस जिद को वास्तविक रखूंगा।
इंडस्ट्री में ताकत का प्रयोग कैसे होता है?
कई लोग कहते हैं कि इस इंडस्ट्री में कुछ लोगों के हाथों में पावर है कि भाई इनको काम मत देना, ऐसा होता होगा। मेरे साथ नहीं हुआ है। दर्शक असली पावर रखते हैं। वो किसी को भी, कुछ भी बना सकते हैं। अगर दर्शकों की पावर आपके साथ है, तो आपको कोई नहीं हटा सकता है। कलाकार की पावर भी चलेगी, अगर वह अच्छा परफार्मर है।
क्या समाज को संदेश देते हैं नाटक?
नाटक भी मनोरंजन का माध्यम है। बाकी हम कलाकारों का फर्ज बनता है कि इसके साथ कुछ सिखाया भी जाए। जैसे मेरी फिल्म ‘कड़वी हवा’ या ‘टर्टल’ थी। अब मैं कलाकार हूं, तो अपनी तरफ से लिखकर कुछ डाल नहीं सकता हूं, लेकिन अपने अभिनय से काफी कुछ सिखा सकता हूं। पावर और सियासत के बीच इस नाटक में भी संदेश है कि जिंदगी में जिस चीज की जरूरत है, उसे उठा लो, जो नहीं चाहिए, उसे छोड़ दो।
अलग-अलग किरदारों को क्यों जरूरी मानते हैं आप?
मैं जिंदगी में वैराइटी ही तो चाहता हूं। एक्टर के लिए सकारात्मक बात है कि उसे अलग-अलग रोल मिलें। हालांकि ऐसा होना भी कठिन है। अच्छा है कि मुझे टाइपकास्ट नहीं किया गया।
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