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    Sholay 50 Years: 'कितने आदमी थे...इतना सन्नाटा क्यों हैं,' शोले का एक-एक डायलॉग जिसने इसे बनाया आइकॉनिक फिल्म

    Updated: Fri, 08 Aug 2025 03:29 PM (IST)

    अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की 1975 की फिल्म शोले (Sholay) सबसे प्रतिष्ठित हिंदी फिल्मों में से एक है और आज भी पसंद की जाती है। आने वाले 15 अगस्त को फिल्म को रिलीज हुए 50 साल हो जाएंगे। इस खास मौके पर आपको हम रूबरू कराएंगे फिल्म के कुछ खास डायलॉग्स से जिन्हें आज भी भुलाया नहीं जा सकता।

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    शोले ने पूरे किए 50 साल (फोटो-इंस्टाग्राम)

    प्रियंका सिंह/दीपेश पांडे, मुंबई। कौन बोला? कितने आदमी थे? तुम्हारा नाम क्या है बसंती? शोले के न जाने कितने ऐसे डायलाग्स हैं जो आज भी लोगों की जुबां पर हैं। शोले फिल्मी दुनिया के कलाकारों के लिए क्या है, कैसे उनसे जुड़ी है, जानते हैं उनके दिल से निकली बातों से।

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    काफी बड़े लेवल पर बनी थी फिल्म

    साल 1970 में चेतना फिल्‍म से अभिनय सफर की शुरुआत करने वाले अभिनेता अनिल धवन की शोले की प्रीमियर से यादें जुड़ी हैं। वह बताते हैं कि मैं फिल्‍म के प्रीमियर में अपनी पत्‍नी के साथ गया था। यह भव्‍य स्‍तर पर बनी फिल्‍म थी। इंटरवल में सब उसकी तारीफ कर रहे थे। हम सब उसकी प्रतिक्रिया जानने को बेकरार थे। इसके सीन के चर्चे हर जगह होते थे। एक थिएटर के पास ही हॉरर फिल्‍म निर्माता रामसे ब्रदर्स का आफिस था। एक दिन मेरी उनसे मुलाकात हुई तो उन्‍होंने कहा कि मैं बहुत परेशान हो गया हूं। सब यार दोस्‍त फोन करके एडवांस बुकिंग कराने के लिए कहते हैं।

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    कहते हैं कि टिकट रख लो मेरा लड़का आकर ले जाएगा। मेरा प्रोडक्‍शन का एक आदमी रोज टिकट लाइन में खड़े होकर टिकट लाता है। (हंसते हैं)इस फिल्‍म की सफलता के बाद मल्‍टीस्‍टार फिल्‍म बनाने का चलन बढ़ा। तब कोई यह बात नहीं करता था कि फिल्‍म ने कितना कमाया। सब परफार्मेंस की बात करते थे। अब कोई परफार्मेंस की बात ही नहीं करता है।'

    जब अर्चना बन गई बसंती

    स्विट्जरलैंड के इंटरलाकेन में जैसे ही अर्चना पूरण सिंह को बग्गी दिखी, उन्हें याद आ गई आई कॉनिक फिल्म शोले की। अपने पति परमीत सेठी के साथ मिलकर उन्होंने शोले के उस आइकानिक सीन को दोहराया दिया,जिसमें बसंती,वीरू और जय को अपने तांगे में बिठाकर रामगढ़ ले जाती है। इस आइकानिक सीन को करने को लेकर अर्चना कहती हैं कि तांगा देखकर शोले की याद आना लाजमी है। सबसे खास बात यह रही कि मैंने और परमीत ने उस सीन को एक टेक में कर लिया था। हम कार में जा रहे थे, बग्गी वाला आदमी किसी काम से रुका हमने सोचा फोटो ले लेते हैं। उसमें बैठी, तो परमीत ने कहा कि तू तो एकदम बसंती लग रही है। बिना किसी रिहर्सल के एक ही टेक में हमने उस सीन को दोहराया। सच कहूं, तो वह फिल्म मैंने 20 साल पहले देखी होगी, लेकिन शोले, तो शोले है। उसके संवाद आपकी नसों में बसे हुए हैं। आइकोनिक फिल्में खून में होती हैं।  

    शोले के डायलाग्स के आडियो कैसेट थे

    गदर 2 और भूल भुलैया 3 फिल्मों के अभिनेता मनीष वाधवा अपने जीवन में शोले का बहुत प्रभाव देखते हैं। वह कहते हैं, ‘मैंने शोले पहली बार बचपन में देखी थी। तभी से मुझे गब्बर सिंह, वो प्याऊं टंकी पर वीरू का चढ़ना, बसंती का तांगा, ठाकुर के हाथों का कटना, वीरू का माउथ आर्गन, जया जी का दीया जलाना, डाकुओं का घोड़े पर आना और वो झूला समेत सारी चीजें याद रहीं। उनके अलावा सूरमा भोपाली, जेलर, रामलाल, काकी, जैसे छोटे-छोटे पात्र भी याद हैं। एके हंगल साहब द्वारा बोला डायलॉग इतना सन्नाटा क्यों है भाई... आज भी लोग सन्नाटे की स्थिति में बोलते हैं।

    आज भी कल्ट फिल्मों में गिनी जाती है शोले

    उन्होंने आगे कहा, 'मैंने इस फिल्म के बारे में सुना था कि पहले तो यह फिल्म सिनेमाघरों में चली नहीं थी और फिर जब चली तो उतरी नहीं थी। सामान्य तौर पर हम कोई फिल्म एक या दो बार देख लेते हैं, फिर उसे देखने का मन नहीं करता है। शोले आप जितनी बार देखते हैं, उतना ही मजा आता है। यह फिल्म लोगों को अपने साथ इस तरह जोड़ लेती है कि देखते समय लोग फिल्म के साथ-साथ स्वयं भी तेरा क्या होगा कालिया, कितने आदमी थे, जैसे डायलॉग बोलने लगते हैं। एक आम नजरिए से देखें तो यह लाइनें कितनी साधारण हैं, लेकिन वह इस तरह, उस जगह और उस अंदाज में बोली गई कि वो आज भी कल्ट मानी जाती हैं।'

    सिनेमा में शोले का योगदान

    मनीष ने उस समय को याद करते हुए कहा, 'मुझे याद है मेरे पास शोले के डायलॉग्स के आडियो कैसेट हुआ करते थे। मेरे डैड वो कैसेट खरीद कर लाए थे और हम बड़े ध्यान से उसके हर डायलॉग सुना करते थे। भारतीय सिनेमा में शोले के योगदान का अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि 50 वर्षों बाद भी अच्छे सिनेमा के मामले में शोले की मिसाल दी जाती है। हमारे यहां मुगल-ए-आजम, शोले और मदर इंडिया जैसी कुछ गिनी-चुनी फिल्में ही हैं, जो कालजयी श्रेणी में आती हैं। हमारा भारतीय सिनेमा आज भी उन्हीं के पदचिन्हों पर आगे बढ़ते हुए फिल्में बना रहा है। मुझे लगता है कि शोले के बाद आज भी उस तरह की ट्रेन में लड़ाई का एक्शन सीन किसी दूसरी फिल्म में शूट नहीं किया गया होगा। जबकि उस दौर में हमारे यहां उतनी विकसित तकनीक नहीं थी।’

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