सास-ससुर के साथ रहती हैं Sonakshi Sinha, बोलीं- 'मुझपर घरवालों का दबाव...'
लेटेस्ट तेलुगु मूवी जटाधारा में धन पिशाचिनी बनीं सोनाक्षी सिन्हा (Sonakshi Sinha) ने दैनिक जागरण के साथ बातचीत में 8 घंटे शिफ्ट डिबेट, शादी के बाद काम-परिवार के बीच संतुलन और अभिनय से छुट्टी लेने को लेकर बात की है। जानिए उन्होंने क्या-क्या कहा है।

सोनाक्षी सिन्हा ने पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ के बारे में की बात। फोटो क्रेडिट- इंस्टाग्राम
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा (Sonakshi Sinha) फिल्म जटाधारा (Jatadhara) में धन पिशाचिनी की भूमिका में नजर आ रही हैं। मूल रूप से तेलुगु में बनी इस फिल्म को हिंदी में डब करके रिलीज किया जा रहा है। इस फिल्म, पात्रों को लेकर पसंद में बदलाव और आठ घंटे काम करने के मुद्दे पर सोनाक्षी ने दैनिक जागरण के साथ बातचीत में अपनी बात रखी है।
अकीरा के बाद आप ज्यादातर ऐसे प्रोजेक्ट का चयन कर रही हैं, जो आपके कंधों पर हैं...
बिल्कुल। अकीरा के बाद से मेरा पूरा रास्ता ही बदल गया। उससे पहले मैंने ऐसी फिल्में की थीं, जहां से मेरा नाम और शोहरत बढ़ी। लोग मुझे पहचानने लगे। उससे हिम्मत मिली कि कुछ फिल्मों का भार अपने कंधों पर उठाऊं। फिल्मों में लीड रोल किया तो वो अहसास ही अलग था। शायद उस वजह से फिल्मों के चयन की प्रक्रिया और पसंद में बदलाव आया।
जटाधारा में आप धन पिशाचिनी का पात्र निभा रही हैं। स्क्रिप्ट पढ़ते समय आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?
हमारे निर्देशक वेंकट कल्याण ने धन पिशाचिनी की अपनी कल्पना के बारे में बताया था। स्क्रिप्ट नरेशन के बाद शूटिंग शुरू होने में बहुत कम समय था। सेट पर आने पर उन्हें मुझमें वह अवतार दिखाई दिया। जैसे ही हमारा पहला शॉट हुआ वह काफी खुश थे। हंसते हुए उन्होंने कहा कि आखिरकार मुझे धन पिशाचिनी मिल गई। मेरे लिए निर्देशक का विजन अहम था।
यह बहुत इंटेंस पात्र है। धन पिशाचिनी के पात्र से निकलना आसान था...?
मैं स्विच ऑन और स्विच ऑफ वाली कलाकार हूं। मैं पात्र में नहीं रहती। मैं अपने काम को भी घर नहीं ले जाती हूं। सीन शुरू होने से पहले ही पात्र में आती हूं, तो यह मेरे लिए कठिन प्रक्रिया नहीं रही।
आपके पति जहीर इकबाल की क्या प्रतिक्रिया थी, जब उन्होंने आपको धन पिशाचिनी के रूप में देखा?
वह आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने कहा कि कभी इस रूप में तुम्हारी कल्पना नहीं की थी। वह मेरे सबसे बड़े चीयरलीडर हैं। उन्हें गर्व है कि मैं विविधतापूर्ण भूमिकाएं निभा रही हूं।
क्या आपको लगा कि हिंदी फिल्मों की तुलना में जटाधारा में अभिनय की लय या ऊर्जा अलग थी?
मुझे लगता है कि वो रिदम सेट पर ही आ जाती है। फिर भाषा कोई भी हो। मैंने कुछ साल पहले एक तमिल फिल्म भी की थी। पहली बार तेलुगु कर रही हूं। मुझे लगता है कि वो एनर्जी सेट पर ही बन जाती है। यह फिल्म की यूनिट, कास्ट और वहां के परिवेश पर निर्भर करता है।
मेरे लिए प्रक्रिया बहुत अलग नहीं थी। सेट पर होना अलग था पर हां कुछ भाषाई दिक्कतें होती हैं।
वहां पर मैं सभी को उतना नहीं जानती जितना यहां। कॉस्ट्यूम और ज्वेलरी पहनने और तैयार होने में ही मुझे तीन घंटे लग जाते थे। मैं अपनी ऊर्जा बचाकर कर रखती थी। सेट पर सबसे ज्यादा बात भी नहीं कर पाती थी, क्योंकि हारनेस लगा रहता था। ज्वेलरी काफी भारी थी। उसे पहनकर एक्शन करना शारीरिक तौर पर काफी चुनौतीपूर्ण था। मेरी स्थिति को हर कोई समझ रहा था। अगर कुछ बोलने या समझने में दिक्कत होती थी, तो सब मदद के लिए आ जाते थे।
इंडस्ट्री में आठ घंटे शिफ्ट की बात हो रही है। इस फिल्म में सह कलाकार शिल्पा शिरोडकर ने बताया कि आप का रवैया अलग था। आप कहती थीं कि थोड़ी देर और शूट करते हैं...
(हंसते हुए) हां, तीन घंटे मेकअप में लगते थे, तो मैं कहती थी कि तैयार होने में जितना समय लगा उतना तो शूट भी नहीं किया, तो और करा लो। बाकी अगर हम इसे इंडस्ट्री कह रहे हैं, तो काम के घंटे तय हो सकते हैं। प्लानिंग से चलें तो सब संभव है।

काम के अलावा भी जिंदगी होती है। हम कलाकार हैं, तो हमें वैनिटी वैन मिल जाती है। बाकी यूनिट और क्रू हैं, वो सुबह से आते हैं और आखिर में सेट से निकलते हैं। तो उनके लिए इतने घंटे काम करना अच्छी बात नहीं है। मुझे लगता कि थोड़ा सुनियोजित होना चाहिए।
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इस फिल्म की थीम लालच और त्याग है। आपके लिए इसके मायने क्या रहे हैं?
अपने करियर में लालच के लिए मैंने कभी कोई काम नहीं किया। मैंने हर भूमिका इसलिए की, क्योंकि करना चाहती थी। बाकी किसी और प्रोजेक्ट के लिए किसी भूमिका को मैंने नहीं छोड़ा। फिल्म छूटी है, तो उसके पीछे कोई ठोस वजह रही होगी।
बहुत सारे कलाकार काम के बीच लंबा ब्रेक लेते हैं। आपने कभी लंबा ब्रेक नहीं लेना चाहा?
अगर आपको अपने काम से प्यार है, तो क्यों लेना चाहेंगे। फिल्मों के बीच मैं छोटा सा ब्रेक ले लेती हूं। अब मेरी शादी हो गई है, मुझे अपना समय परिवार को भी देना होता है। वो ब्रेक आ ही जाते हैं। बाकी काम कभी रुकता नहीं है और रुकना नहीं चाहिए।
शादी के बाद काम और परिवार के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण माना जाता है...
ईमानदारी से कहूं तो मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मुझपर घर वालों का कोई दबाव नहीं है। मैं अपने सास-ससुर के साथ ही रहती हूं। उन्हें गर्व है कि मैं अच्छा काम कर रही हूं। मैं काम करना चाहूंगी या नहीं यह पूरी तरह से मेरी पसंद पर निर्भर है।

आपको बहुत बार ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है, लेकिन जवाब भी देती हैं। इनसे डील करना आसान होता है?
मैं जानती हूं कि मैं कितनी मेहनत करती हूं। मुझे अपनी कमियां अच्छे से पता हैं, तो वह आत्मविश्वास आ जाता है। जब कोई गलत बोल रहा है, तो मैं चुप नहीं बैठती। हमें खुद के लिए खड़े होना चाहिए।
दहाड़ 2 के बनने को लेकर क्या तैयारी है?
उसकी राइटिंग चल रही है। अगले साल शुरू होने की संभावना है।
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