बड़े स्टार्स की मूवीज पर क्यों भारी पड़ रहीं छोटी फिल्में? ट्रेड एक्सपर्ट ने बताया बॉक्स ऑफिस का सच
इस साल बड़े सितारों से लैस बड़े बजट की फिल्मों की तुलना में छोटे बजट में बनी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया। क्या वजहें रहीं कि सितारों की बादशाहत बॉक्स ऑफिस पर नहीं टिक रहीं जबकि कम चर्चित हीरो-हीरोइन से सजीं फिल्में धूम मचा रही हैं। इस आर्टिकल में जानिए कि आखिर क्यों बिग बजट की फिल्मों से ज्यादा छोटी फिल्में चल रही हैं।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। कोरोना काल के पहले के दौर को देखें तो सितारों के नाम पर प्रशंसक सिनेमाघर तक खिंचे चले आते थे। फिल्म भले ही उम्मीदों के मुताबिक न हो, फिर भी शुरुआती तीन दिन हाउसफुल निकल ही जाते थे। इसमें फिल्म की लागत आसानी से निकल आती थी। अब परिदृश्य बदल चुका है।
इस साल अजय देवगन, अक्षय कुमार, जॉन अब्राहम जैसे बड़े सितारों के कंधों पर टिकीम फिल्में दर्शकों को सिनेमाघरों तक ला पाने में असफल रहीं। वहीं ‘आर्टिकल 370’, ‘श्रीकांत’, ‘मुंज्या’, ‘स्त्री 2’ जैसी छोटे बजट में बनी फिल्में बॉक्स ऑफिस के इम्तिहान में अव्वल रहीं।
सितारों का बढ़ा एक्सपोजर
आज लगभग हर सुपरस्टार इंटरनेट मीडिया पर मौजूद है। जहां इनके लाखों-करोड़ों फॉलोवर्स इन्हें सबसे पसंदीदा साबित करने के लिए पर्याप्त हैं। जिम जाने से लेकर एयरपोर्ट लुक के साथ ये मीडिया के कैमरे पर आए दिन नजर आते हैं। फिर क्या वजह है कि जब इन्हीं करोड़ों फॉलोवर्स वाले सितारों की फिल्में बड़े पर्दे पर आती हैं तो टिकट की खिड़की पर यह गिनती उतनी नहीं हो पाती।यह भी पढ़ें- R Madhavan की पहली हिंदी फिल्म जिसमें आखिरी बार नजर आए थे लापता Raj Kiran, बनने के 14 साल बाद हुई थी रिलीज
सितारों का खत्म हो जाता है चार्म
वो कहते हैं न कि जो चीज आसानी से मिले, उसकी कद्र नहीं होती। यही हाल हिंदी सिनेमा के सितारों का है। दक्षिण भारतीय सितारे भी इंटरनेट मीडिया पर हैं, लेकिन वे इसका इस्तेमाल अधिकांशत: अपनी फिल्मों के प्रमोशन के लिए करते हैं। अब अगर सितारे सब जगह दिखें तो पर्दे पर उन्हें देखने का चार्म नहीं रह जाता। एक पहलू यह भी है कि वर्तमान में कलाकार अपना राजनीतिक दृष्टिकोण सार्वजनिक करने लगे हैं। लोग दबी जुबान से स्वीकारते हैं कि यह कलाकारों के काम को प्रभावित करता है।फिल्में हों पैसा वसूल
सोच और विचारधारा के साथ कलाकारों को अपनी उम्र के अनुरूप पटकथा के चुनाव को वरीयता देने पर फिल्मी जानकार जोर देते हैं। ट्रेड एनालिस्ट अतुल मोहन कहते हैं, ‘वरिष्ठ कलाकार वही रूटीन फिल्में कर रहे हैं, जो हमेशा करते आ रहे थे। अब दर्शकों की पसंद में काफी बदलाव आया है। ओटीटी प्लेटफार्म आने के बाद दर्शक देश-दुनिया का कंटेंट देख रहे हैं, तो अब दर्शक जितना पैसा खर्च कर रहे हैं, उन्हें उस स्तर का मनोरंजन भी चाहिए। उन्हें रूटीन कामर्शियल ‘बड़े मियां छोटे मियां’ जैसी फिल्में नहीं चाहिए। उन्हें मनोरंजन के साथ कंटेंट चाहिए। ‘मुंज्या’ तो बिना स्टार वाली फिल्म है, लेकिन उसकी माउथ पब्लिसिटी ने फिल्म को हिट करा दिया।’