Rajendra Kumar के आगे झुक गया था सिनेमा, इन 7 फिल्मों से बदल दिया था बॉलीवुड का इतिहास
हिंदी सिनेमा के जुबली कुमार के तौर पर दिग्गज अभिनेता राजेंद्र कुमार को जाना जाता था। 20 जुलाई को उनकी बर्थ एनिवर्सरी मनाई गई। इस खास मौके पर हम आपके लिए उनकी उन चुनिंदा मूवीज की जानकारी लेकर आए हैं जिनकी बदौलत राजेंद्र कुमार के आगे सिनेमा झुक गया था।

एंटरटेनमेंट डेस्क, मुंबई। 100 करोड़ क्लब और ओटीटी के जमाने में कम ही युवा सिल्वर जुबली फिल्मों के बारे में जानते हैं, जब कोई फिल्म लगातार 25 सप्ताह सिनेमाघरों में चलती थी। राजेंद्र कुमार (Rajendra Kumar) उन अभिनेताओं में से रहे, जिनकी 35 फिल्मों ने यह मुकाम हासिल किया और उन्हें बनाया ‘जुबली कुमार’।
एक वक्त वह भी आया जब उनकी सात फिल्में एक साथ सिनेमाघरों में सिल्वर जुबली सेलिब्रेट कर रही थीं। 20 जुलाई स्व.राजेंद्र कुमार की जन्मतिथि मनाई गई। इस आधार पर हम आपके लिए आरती तिवारी के साथ उनकी उन फिल्मों की सौगात लेकर आए हैं, जिनके दम पर राजेंद्र कुमार सिनेमा के सरताज बने।
घरानाः नायिका को मिला नया नाम
पहली बार जोड़ी बनी तो उन्हें नाकारा कहकर बाहर कर दिया गया, मगर दूसरी बार ऐसा कमाल हुआ कि राजेंद्र कुमार ने जीवन भर आशा पारेख को कहा, ‘भाग्यलक्ष्मी’। वर्ष 1961 की तीसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म ‘घराना’ कनाडा तक में प्रदर्शित हुई। राज कुमार, राजेंद्र कुमार और आशा पारेख अभिनीत यह फिल्म 1960 की तेलुगु फिल्म ‘शांति निवासम्’ की रीमेक थी!
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फोटो क्रेडिट- IMDB
दिल एक मंदिरः हर नगमा जूही की कली
1963 में आई सीवी श्रीधर निर्देशित फिल्म ‘दिल एक मंदिर’ में राजेंद्र कुमार ने कैंसर विशेषज्ञ का किरदार निभाया था। ‘रुक जा रात ठहर जा रे चंदा’, ‘हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे’ जैसे गीतों से सजी इस फिल्म में मीना कुमारी के साथ उनकी जोड़ी खूब पसंद की गई और राजेंद्र कुमार नामिनेट हुए फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर के लिए।
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मेरे महबूबः जिससे हुई ‘साधना कट’ की शुरुआत
अशोक कुमार, साधना, प्राण, जानी वाकर जैसे कलाकारों से सजी इस फिल्म में साधना को जिस गीत ‘मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की कसम’ के माध्यम से राजेंद्र कुमार ने प्रपोज किया था, वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के हाल में शूट हुआ है। 1963 में आई इस फिल्म का निर्देशन एच. एस. रवैल ने किया था। प्रदर्शित होते ही इसने उस साल बाक्स आफिस पर पहला दर्जा हासिल कर लिया था।
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आई मिलन की बेलाः क्या खूब दोस्ती निभाई दिलीप साहब ने
1964 में प्रदर्शित ‘आई मिलन की बेला’ साल की दूसरी सबसे सफल फिल्म थी। इसी फिल्म में काम करते हुए सायरा बानो राजेंद्र कुमार के इश्क में गिरफ्तार हो गई थीं। जब उन्हें समझाने दिलीप कुमार आए तो किस्मत ने ऐसा खेल पलटा कि सायरा दिलीप की ही होकर रह गईं। इस फिल्म ने खलनायक के रूप में नजर आए धर्मेंद्र की भी किस्मत बदल दी थी। राजेंद्र कुमार इसी साल की सबसे सुपरहिट फिल्म का हिस्सा भी थे और फिल्म थी राज कपूर और वैजयंती माला के साथ त्रिकोणीय प्रेमकहानी ‘संगम’।
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आरजू
रामानंद सागर निर्देशित फिल्म ‘आरजू’ में राजेंद्र कुमार के साथ जोड़ी बनी साधना की। फिल्म निर्माण के दौरान कलाकारों की फीस को लेकर हुई तनातनी उस दौर में चर्चा का विषय बन गई थी। कुछ भी रहा हो, मगर 1965 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली यह हिंदी फिल्म अपनी प्रेम कहानी और ‘अजी रूठकर अब कहां जाइएगा’, ‘ए फूलों की रानी, बहारों की मलिका’ जैसे सुरीले नगमों के साथ सबके दिल में घर कर गई थी।
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सूरजः जिसके बिना है हर बरात अधूरी
साल 1966 की दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली राजेंद्र कुमार और वैजयंतीमाला की इस फिल्म का संगीत शंकर- जयकिशन ने तैयार किया थागीत शैलेंद्र और हसरत जयपुरी ने लिखे थे। ‘बहारों फूल बरसाओ’ बरात का सदाबहार गीत बना तो, वहीं इसका ‘तितली उड़ी, उड़ जो चली’ को नए-नए अवतार में आज भी सुना जा सकता है। साल 2013 में बीबीसी रेडियो ने सर्वे में हिंदी फिल्म इतिहास के अब तक के 100 सर्वश्रेष्ठ गीतों की, सूची में ‘बहारों फूल बरसाओ’ पहले नंबर पर रखा गया था।
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झुक गया आसमानः हॉलीवुड फिल्म में हिंदुस्तानी छौंक
1968 में आई रोमांटिक-कामेडी फिल्म ‘झुक गया आसमान’ हालीवुड फिल्म ‘हियर कम्स मिस्टर जार्डन’ पर आधारित थी और इसका एक गाना था एल्विस प्रेस्ले के एलबम ‘मार्गरीटा’ से। वही जिसे आप मोहम्मद रफी की आवाज में ‘ओ प्रिया’ सुनते हैं।
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एक दुर्घटना और धर्मराज के दूत से हुई गलती के इर्द-गिर्द सजी इसकी कहानी जितनी नई थी, उतनी ही दर्शकों के दिल के करीब आ गई। ‘उनसे मिली नजर’ व ‘कौन है जो सपने में आया’ जैसे गीतों पर दर्शकों ने खूब प्यार लुटाया और इसे सिल्वर जुबली बना दिया।
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