Coolie review: रजनीकांत का पावरहाउस एक्शन, आमिर का सॉलिड स्टाइल; फिर कहां कहानी में चूके मेकर्स, पढ़ें रिव्यू
Coolie Movie Review रजनीकांत की फिल्म कुली फाइनली थिएटर्स में ऋतिक रोशन-जूनियर एनटीआर की फिल्म वॉर-2 से टक्कर ले चुकी है। इस मूवी में एक बार फिर से थलाइवा दमदार एक्शन करते हुए दिखाई दे रहे हैं। मूवी में एक्शन है स्टाइल है और दमदार परफॉर्मेंस हैं फिर भी मूवी आपको क्यों निराश करेगी यहां पर पढ़ें रिव्यू
प्रियंका सिंह, मुंबई। थलाइवर के नाम से मशहूर अभिनेता रजनीकांत ने इस साल फिल्म इंडस्ट्री में अपने 50 साल पूरे किए हैं। उनकी तमिल फिल्म कुली उनके प्रशंसकों के लिए और खास है, लोग सिनेमाघरों में उनके पोस्टर पर दूध से अभिषेक करते हुए नजर आए।
दोस्त की मौत का बदला लेने की कहानी 'कुली'
कहानी हैं देवा (रजनीकांत) की, जो एक जमाने में कुली था। अब चेन्नई में अपना मेंशन हाउस (रुकने की जगह) चलाता है। एक दिन उसे अपने पुराने दोस्त राजशेखर (सत्यराज) की मौत की खबर मिलती है। उसे पता चलता है कि उसकी हत्या हुई है। दरअसल, राजशेखर ने ऐसी मशीन बनाई होती है, जो किसी भी जानवर के पार्थिव शरीर को कुछ ही सेकेंड में राख बना सकती है।
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इसका प्रयोग स्मगलर सायमन (नागार्जुन अक्किनेनी) और उसका खास आदमी दयाल (सौबिन शाहिर) इंसानों के पार्थिव शरीर को जलाने के लिए करता है। इसके लिए वह राजशेखर और उसकी बेटी प्रीति (श्रुति हासन) को धमकाते भी हैं। देवा अपने दोस्त की मौत का बदला कैसे लेगा, कहानी उस पर आगे बढ़ती है।
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मुकाम तक नहीं पहुंची 'कुली' की कहानी
फिल्म की कहानी विक्रम, कैथी, मास्टर जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके लोकेश कनगराज ने ही लिखी है। उन्होंने रजनीकांत के कद को देखते हुए उन्हें हर फ्रेम में किसी सुपरहीरो की तरह ही दिखाया है, लेकिन ऐसा करने में उन्होंने कहानी में काफी कुछ डाल दिया है, जैसे देवा की शादी हुई थी, उसकी बेटी भी है, सायमन के बेटे का अफेयर चल रहा है, दयाल के कान्स्टेबल बनने की अपनी कहानी है, सायमन और देवा के बीच भी पुरानी दुश्मनी है।
इनमें से कोई भी कहानी अपने मुकाम तक नहीं पहुंचती है। दोस्त की मौत का बदला लेने की दिशा में बढ़ रही कहानी अलग-अलग पात्रों के बीच भटक जाती है।
संगीत और कैमरा वर्क ने संभाली 'कुली'
फिल्म की कमजोर कहानी को संभालने और देखने लायक बनाने का श्रेय जाता है कैमरा के पीछे की टीम को। संगीतकार अनिरुद्ध का संगीत फिल्म को हर मोड़ पर संभालता है। गिरीश गंगाधरन की सिनेमैटोग्राफी फिल्म के स्केल और कलाकारों के साथ न्याय करती है। फिलोमिन राज की परफेक्ट एडिंटिंग, सतीश कुमार का प्रोडक्शन डिजाइन इसे समृद्ध बनाता है।
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सेंसर बोर्ड से ए (18 या उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए) सर्टिफिकेट पाने वाली इस फिल्म में कई हिंसक एक्शन सीन ठूंसे लगते हैं, हालांकि चप्पा चप्पा चरखा चले गाने पर रजनीकांत का गुडों की धुलाई करने वाला सीन दमदार बन पड़ा है। लोकेश एक बार फिर अभिनेताओं से भरी इस फिल्म में अभिनेत्री के लिए निराशाजनक रोल ही लिख पाए। श्रुति हासन का पात्र प्रीति इतना कमजोर है कि पिता का हत्यारा सामने है, फिर भी वह देवा से पूछती है कि क्या उसे एक थप्पड़ मारूं?
रजनीकांत है फिल्म के पावरहाउस
अभिनय की बात करें, तो इस कमजोर फिल्म में भी रजनीकांत पावरहाउस लगते हैं। कहानी को वह अपने स्वैग और अभिनय से संभालते हैं। पैन इंडिया के ढांचे में फिट करने के लिए फिल्म में कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री से उपेंद्र, हिंदी से आमिर खान और मलयालम इंडस्ट्री से सौबिन शाहिर को लिया गया है। लेकिन उपेंद्र का पात्र अधकच्चा है।
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क्लाइमेक्स में मेहमान भूमिका में दिखे आमिर का केवल लुक ही दमदार है। खलनायक की भूमिका में नागार्जुन अक्किनेनी के हिस्से भी केवल स्टाइल दिखाना ही आया है, वह केवल शराब-सिगरेट पीता है, बस। उनसे ज्यादा दमदार विलेन दयाल के पात्र में सौबिन शाहिर लगे हैं, जो चाहे डांस, एक्शन, डायलॉगबाजी सब में चमकते हैं।
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