Nikita Roy Review: डराने के साथ आंखों से उतार देगी पट्टी, रहस्य और रोमांच से भरपूर है सोनाक्षी की फिल्म
Nikita Roy Movie Review सोनाक्षी सिन्हा ने एक बार फिर से अपनी परफॉर्मेंस से ये साबित कर दिया है कि वह वर्सेटाइल अभिनेत्री हैं। उनकी फिल्म निकिता रॉय पर्दे पर आ चुकी है। इस फिल्म को देखकर आपको डर तो लगेगा ही लेकिन ये पाखंडी बाबा के रहस्य से ऐसा पर्दा उठा देगी जो शायद कई लोगों को जगा भी दे। क्या है फिल्म की कहानी पढ़ें रिव्यू
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। अभिनेता और सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे कुश एस सिन्हा फिल्म निकिता रॉय से निर्देशन में कदम रख रहे हैं। सिनेमाघरों में रिलीज इस फिल्म में मुख्य भूमिका में उनकी बहन और अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा है। खास बात यह है कि कुश ने अमूमन नवेादित निर्देशकों की तरह प्रेम कहानी को आधार नहीं बनाया है। उन्होंने सुपरनेचुरल तत्वों के मिश्रण के साथ मिस्ट्री थ्रिलर बनाई है जिसमें रहस्य और रोमांच का पूरा पुट है।
नामचीन लेखक की कहानी है निकिता रॉय
कहानी शीर्षक के अनुसार निकिता रॉय नामक नामचीन लेखक की है। लंदन में रहने वाले सनल रॉय (अर्जुन रामपाल) एक ऐसी संस्था का संचालन करते हैं जो अंधविश्वास, तर्कहीन मान्यताओं को तार्किक तरीके से हतोत्साहित करती है। कहानी की शुरुआत में ही में दिखाते हैं कि कोई अलौकिक शक्ति उसके पीछे है। फिर रहस्यमय परिस्थिति में उसकी मौत हो जाती है।
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मुंबई से उसकी बहन निकिता (सोनाक्षी सिन्हा) लंदन आती है। वह भी भाई की संस्था से जुड़ी होती है। पुलिस मामले को बंद करना चाहती है, लेकिन निकिता इस बात पर अड़ी है कि इसमें कोई गड़बड़ी हुई है। उसे पता चलता है कि उसका भाई आध्यात्मिक गुरु अमर देव (परेश रावल) का पर्दाफाश करने में लगा हुआ था, जिसके बहुत से अनुयायी हैं। वह अपने पूर्व ब्वॉयफ्रेंड जॉली (सुहैल नैय्यर) की मदद से मामले की तह में जाने की ठान लेती है। इस दौरान अमर देव से मिलती है। क्या अपनी भाई की हत्या की गुत्थी सुलझा पाएगी? वह किस प्रकार अमर देव का पर्दाफाश करेगी? कहानी इस संबंध में है।
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जल्दबाजी में बनाया गया है फिल्म का क्लाइमैक्स
रागिनी एमएमएस, फोबिया जैसी फिल्मों के लेखक और निर्देशक पवन कृपलानी ने ही मूल कहानी और स्क्रिनप्ले लिखा था। उसे कुश सिन्हा ने नील मोहंती, अंकुर तकरानी के सहयोग से समुचित तरीके से अडॉप्ट किया है। फिल्म में सामाजिक प्रासंगिकता, अंधभक्ति और अलौकिक घटनाओं का दिलचस्प मिश्रण है। हिंदी सिनेमा में इन दिनों हॉरर कामेडी फिल्मों का बोलबाला है, वहीं निकिता रॉय की कहानी में डर के तड़के साथ ताजगी है।
शुरुआत में सनल की मौत के बाद कहानी सधे तरीके से आगे बढ़ती है। इस दौरान कुश भय पैदा करने के लिए हिंदी फिल्मों के पारंपरिक तरीकों का प्रयोग नहीं करते। अंधविश्वास की आड़ में किस प्रकार पाखंडी गुरु गोरखधंधा चलाते हैं फिल्म उस विषय को उठाती हैं, लेकिन बहुत गहराई में नहीं जाती। जब अमर देव तीन दिन में निकिता को सब खत्म होने की चेतावनी देता है तो वह उसे गंभीरता से नहीं लेती। हालांकि, यह कहानी का अहम हिस्सा है।
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यहां पर लेखक और निर्देशक थोड़ा फिसल गए है। अंधविश्वास के खिलाफ काम करने को लेकर निकिता और सनल की क्या वजहें रही फिल्म इस बारे में जानकारी नहीं देती है। फिल्म का क्लाइमैक्स भी जल्दबाजी में निपटाया गया लगता है। अगर उसे बेहतर तरीके से थोड़ा समय देते तो कहानी और निखर कर सामने आती।
बहरहाल, अमर मोहाले का बैकग्राउंड संगीत डर का माहौल रचने में अहम भूमिका निभाता है। अमूमन लंदन आधारित फिल्मों में वहां की खास प्रसिद्ध जगह दिखती हैं, लेकिन सिनेमेटोग्राफर अंशुल चौबे सुनसान जगहों पर ले गए हैं। एक ओर उन स्थानों की नैसर्गिक खूबसूरती लुभावती है वहीं सूनसान जगह भय के माहौल की अनुभूति दे देती हैं। कहानी अपने लक्ष्य से भटकती नहीं है।
सोनाक्षी से मजबूती से उठाया फिल्म का भार
कलाकारों की बात करें तो फिल्म का भार सोनाक्षी सिन्हा के कंधों पर है। वह इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा ले जाती हैं। सनल के हत्यारों तक पहुंचने को लेकर निकिता की निर्भीकता, दूरदर्शिता और निडरता को वह बखूबी प्रस्तुत करती हैं। अर्जुन रामपाल फिल्म में मेहमान भूमिका में हैं। उनके हिस्से में कई भावनात्मक दृश्य आए हैं। वह उन दृश्यों पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं।
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जॉली की भूमिका में सोहेल नैय्यर का काम भी उल्लेखनीय है। अमर देव की भूमिका में परेश रावल जंचते हैं। अमर देव की भूमिका में उनका शांत, संयमित व्यवहार तनाव पैदा करने में सफल रहता है। वास्तव में यह फिल्म डराने के साथ जगाने का भी काम करती है। फिल्म के अंत में सीक्वल का संकेत है।
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