Rangeen Series Review: एक आदर्श पति के जिगोलो बनने की कहानी, बोल्ड विषय के बावजूद नहीं बन पाई 'रंगीन'
छावा के बाद एक बार विनीत कुमार सिंह एक और दमदार किरदार में दिखाई दिए। उनकी वेब सीरीज रंगीन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो चुकी है। इस सीरीज में एक ऐसा विषय दिखाया गया है जिसके बारे में बातचीत करने से शायद लोग अभी भी कतराते हैं। क्या है सीरीज की कहानी और कहां- कहां चूके निर्देशक नीचे पढ़ें रिव्यू
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। पुरुष वेश्यावृत्ति जिन्हें जिगोलो कहा जाता है, यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें जोर जबरदस्ती नहीं बल्कि स्वेच्छा से लोग शामिल होते हैं। शारीरिक सुख समेत अनिच्छाओं की पूर्ति के लिए सुविधा संपन्न महिलाएं ये सुविधाएं हैं। इसी बोल्ड विषय पर आधारित है वेब सीरीज रंगीन।
हालांकि, लेखन स्तर पर किरदारों के रंग निखर नहीं पाए हैं। जिगोलो के जरिए यह कई महिलाओं के जीवन में विचरण करती है, लेकिन वह न तो सहानुभूति बटोर पाता हैं न ही इस पेशे की गहराई को दिखा पाता हैं।
कैसी हैं सीरीज 'रंगीन' की कहानी?
कहानी अपने दोस्त के साथ साप्ताहिक अखबार उजला आईना प्रकाशित करने वाले 36 वर्षीय आदर्श जौहरी (विनीत कुमार सिंह) की है। उसे दैनिक अखबार में बदलने के लिए वे निवेशक की खोज में हैं। अपने संघर्षों की वजह से हताशा में डूबे रहने वाला आदर्श पत्नी नैना (राजश्री देश पांडेय) को वक्त नहीं देता। उसे लगता है कि घर तो अपना है, लेकिन ऑफिस का किराया जा रहा। उसके दो भांजे उसकी पत्नी का सनी (तारुक रैना) के साथ अंतरंग वीडियो बनाकर भेजते हैं। अपने नाम की तरह आदर्श चरित्रवान है। नैना उसे बताती है कि वह लड़का उसका प्रेमी नहीं जिगोलो है। यह बात आदर्श बर्दाश्त नहीं कर पाता।
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हताशा में डूबा आदर्श जिगोलो बनना तय करता है। ताकि नैना को दिखा सके कि वो मर्द है। वह सनी की मदद से सितारा (शीबा चड्ढा) से मिलता है जो कपड़ों के व्यवसाय की आड़ में जिगोलो का धंधा चलाती है। आदर्श के इस दुनिया में प्रवेश के बाद वह किन-किन महिलाओं से मिलता है? वाकई उसकी दुनिया रंगीन हो रही है? क्या नैना और आदर्श अपनी गलतियों को समझ पाएंगे? आदर्श के जिगोलो बनने से सनी की जिंदगी में किस प्रकार उथल पुथल मचती है? कहानी इस संबंध में हैं।
मुद्दे से भटके फिल्म के निर्देशक
एक दृश्य में जब महिला पात्र आदर्श से उसके जिगोलो बनने का कारण पूछती है तो वह कहता है सेल्फ डिस्कवरी। वैसे ही इस कहानी को पहले गहराई से डिस्कवर (खोज) करने की जरूरत थी। शुरुआत पुरुष के अहंकार, मर्दानगी, प्रतिशोध, सपनों को पूरा करने की ख्वाहिश जैसे मुद्दों को छूते हुए बढ़ती है, लेकिन फिर आधी अधूरी खबर लगने लगती है जिसमें न कोई जानकारी है न कोई रस। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है यह समझ आता है रंगीन को खुद नहीं पता कि वो कहना क्या चाहती है।
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रंगीन के क्रिएटर और लेखक अमरदीप गलसिन (Galsin) और आमिर रिजवी ने इस बोल्ड विषय के साथ वैवाहिक समस्याओं, टूटे स्वाभिमान, पारिवारिक दवाब, चाहतों के लिए कुछ भी कर गुजरने से लेकर छोटे शहर के फैसलों तक, कई विषयों को समेटने की कोशिश करती है लेकिन उनके साथ न्याय नहीं कर पाते है। जेल में बंद छुटभैया अपराधी की पत्नी का जिगोलो को बुलाना जैसे प्रसंग कहानी को ठोस आधार नहीं देते।
इतने मिनट का 'रंगीन' का हर एपिसोड
नौ एपिसोड की इस सीरीज का हर एपिसोड करीब 45 मिनट का है। आदर्श नैना को दिखाना चाहता है कि वो मर्द है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है क्यों इस दुनिया में बने रहना चाह रहा है। जिगोलो जिन महिला पात्रों पास जाता है उनकी जिंदगी और समस्याएं सतही लगती हैं। सितारा के व्यवसाय में आने की वजह क्या है? सनी के अलावा कोई और जिगोलो नहीं दिखता? आदर्श को किसी गुप्त रोग की आशंका क्यों नहीं होती? इन सवालों के जवाब नहीं मिलते। सीरीज का क्लाइमैक्स भी रुचिकर नहीं बन पाया है।
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क्या एक्टर्स ने किया किरदारों के साथ न्याय?
कलाकारों की बात करें तो विनीत कुमार सिंह मंझे कलाकार हैं। उन्होंने आदर्श के द्वंद्व, हताशा फिर जिगोलो की दुनिया के आंनद को सहजता से स्वीकार किया है। हालांकि उनका किरदार बहुत परतदार और जटिल नहीं बन पाया है। राजश्री देशपांडे के पात्र में ज्यादातर हताशा और निराशा ही झलकती है। वह उन भावों तक सीमित हो जाती हैं। उनके पात्र को और उभारने की जरूरत थी। तारूक रैना का अभिनय शानदार है। स्मिता बंसल का काम उल्लेखनीय है।
हालांकि, उनके पात्र को गहराई से दिखाने की जरूरत थी। शीबा चड्ढा अपने किरदार में जंची हैं। सहयोगी कलाकार में आए बाकी कलाकार स्क्रिप्ट के दायरे में अपने अभिनय से रंग भरने का प्रयास करते हैं, लेकिन उसे चटकीला नहीं बना पाते। बैकग्रांउड स्कोर भी कुछ खास प्रभाव नहीं जोड़ पाता। दिलचस्प आइडिया के बावजूद यह सीरीज कमजोर पटकथा की वजह से प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहती है।
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