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    Saare Jahan Se Accha Review: गुमनाम जासूसों पर आधारित है सीरीज, 3 एपिसोड के बाद इस जहान में है थ्रिल की कमी

    Saare Jahan Se Accha On OTT प्रतीक गांधी और सनी हिंदुजा स्टारर वेब सीरीज सारे जहां से अच्छा इंडिपेंडेंस डे वीक में रिलीज हो चुकी है। इस सीरीज में टोटल छह एपिसोड है। गुमनाम जासूसों पर आधारित प्रतीक गांधी की ये सीरीज क्या मचा पाएगी धमाल यहां पर पढ़ें रिव्यू

    By Smita Srivastava Edited By: Tanya Arora Updated: Wed, 13 Aug 2025 05:41 PM (IST)
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    सारे जहां से अच्छा वेब सीरीज रिव्यू/ फोटो- Jagran Graphics

    स्मिता श्रीवास्‍तव, मुंबई। वेब सीरीज में एक संवाद है अगर रिस्‍क नहीं लेना है तो हम इस जॉब में क्‍या कर रहे हैं? इस सीरीज में भी यही कमी खलती है। य‍हां पर पात्रों की कार्यशैली में जोखिम कम नजर आता है। यही इस सीरीज की रोचकता में आड़े आता है।

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    लेखक गौरव शुक्‍ला और भावेश मंडालिया द्वारा लिखित सच्‍ची घटना से प्रेरित यह सीरीज उन गुमनाम जासूसों पर आधारित है जो देश के लिए अपना सर्वस्‍य न्‍योछावर कर देते हैं, लेकिन उन्‍हें कोई सम्‍मान नहीं मिलता।

    क्या है सारे जहां से अच्छा की कहानी?

    कहानी पिछली सदी के सातवें दशक में सेट है। अमेरिका, रूस और चीन में परमाणु बम को बनाने की होड़ में भारतीय वैज्ञानिक डॉ होमी जहांगीर भाभा भी देश की सुरक्षा के लिए उसे बनाने के पक्षधर होते हैं। एक साक्षात्‍कार में वह डेढ़ साल में भारत को न्‍यूक्लिर पावर बनाने की बात कहते हैं। उसके कुछ दिन बाद एक विमान हादसे में उनकी मौत हो जाती है।

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    इस हादसे को भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का एजेंट विष्णु शंकर (प्रतीक गांधी) चंद मिनटों की देरी की वजह से रोक पाने में असफल रहता है। इस बीच रॉ के मुखिया आर एन काओ (रजत कपूर) को पता चलता है कि 1971 के युद्ध में हार से तिलमिलाए पाकिस्‍तानी राष्‍ट्रपति भुट्टो (हेमंत खेर) गोपनीय तरीके से परमाणु बम बनाने की तैयारी में हैं।

    Photo Credit- Instagram 

    इस मिशन की जिम्‍मेदारी पाकिस्‍तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के प्रमुख मुर्तजा मलिक (सनी हिंदुजा) को सौंपी जाती है। वहीं विष्‍णु को इस्‍लामाबाद में राजनयिक की आड़ में पाकिस्‍तानियों के मंसूबों को नाकाम करने के लिए भेजा जाता है। विष्‍णु पाकिस्‍तान के साथ देश विदेश में तैनात अपने एजेंट की मदद से इस मिशन को कैसे नाकाम करता है कहानी इस संबंध में हैं।

    तीन एपिसोड के बाद खटकेगी ये बातें

    सुमित पुरोहित द्वारा निर्देशित छह एपिसोड की सीरीज सारे जहां से अच्‍छा जासूसों की पेशेवर के साथ निजी जिंदगी की चुनौतियों और द्वंद्व की भी झलक देती है। इस बार पाकिस्तानी पक्ष सिर्फ बैठकों या चंद संवादों तक सीमित नहीं रखा गया है। मुर्तजा के जरिए भारतीय जासूसों पर कसे शिकंजे को भी दिखाया गया है। मुर्तजा और विष्‍णु के बीच टकराव दिलचस्‍प है, लेकिन उसे और रोमांचक बनाने की गुंजाइश थी।

    शुरुआत के तीन एपिसोड सधे तरीके से आगे बढ़ते हैं इस दौरान कहानी अमेरिका, रूस, फ्रांस और अन्‍य देश में भी जाती है, लेकिन दिक्‍कत यह है कि दोनों देश जब श‍ह ओर मात का खेल खेल रहे हैं तो उसमें थ्रिल का अभाव होता है। कुछ उप-कथानक बहुत तेजी से आगे बढ़ते हैं, लेकिन बिना किसी व्‍यवधान के बहुत आसानी से सुलझ जाते हैं, जिससे कई बार कहानी वास्‍तविक नहीं लगती है।

    Photo Credit- Instagram

    पाकिस्‍तानी अखबार की संपादक फातिमा (कृतिका कामरा) समय से काफी आगे चलती दिखती है, लेकिन उनके पात्र में गहराई नहीं है। अपने मिशन को किसी भी कीमत पर सफल होते देखने की ख्‍वाहिश रखने वाला मुर्तजा आखिर में लाचार दिखता है। यह क्‍लाइमैक्‍स को कमजोर बनाता है। यहीं नहीं मुर्तजा और विष्‍णु कब विदेश आते-जाते हैं वह भी पता नहीं चलता। शो में सुखबीर की रॉ एजेंट बनने की बैक स्‍टोरी दिखाई है विष्‍णु की नहीं। उसके बारे में भी बताना चाहिए था। फातिमा जब प्रधानमंत्री से मिलने जाती है तो उसकी जांच पुरुष पुलिसकर्मी करता है। यह पहलू भी खटकता है।

    अपने-अपने रोल में उभरकर आए ये कलाकार

    सीरीज में मंझे हुए कलाकारों को कास्‍ट किया गया है। तेज तर्रार एजेंट विष्‍णु शंकर की भूमिका में प्रतीक गांधी का अभिनय सराहनीय है। उनकी तत्‍परता, टीम को एकजुट रखने की कोशिश के साथ निजी जिंदगी में सच न बता पाने का द्वंद्व समेत सभी भाव को सहजता से जीते हैं। सीरीज का आकर्षण सनी हिंदूजा भी है। वह आइएसआइ प्रमुख के तौर पर कठोर है, लेकिन मानवीय संवदेनाओं वाले दृश्‍यों में भी प्रभावित करते हैं। उनकी उर्दू पर पकड़ किरदार को विश्‍वसनीय बनाती है।

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    पाकिस्‍तानी सैन्‍य अफसर की भूमिका में अनूप सोनी को भी कई शेड्स दिखाने का मौका मिला है। भारतीय एजेंट बनें सुखबीर उर्फ रफीक बनें सुहैल नय्यर के हिस्‍से में कुछ दृश्‍य आते हैं जहां उसकी पहचान उजागर होते-होते बचती है। उतार-चढ़ाव से भरे उन भावों में वह संतुलित रहते हुए जिस प्रकार अपने काम को अंजाम देते हैं उसे आसानी से महसूस किया जा सकता है। विष्‍णु की पत्‍नी की भूमिका में तिलोत्तमा शोम याद रह जाती हैं। कुणाल ठाकुर संक्षिप्‍त भूमिका में अपना प्रभाव छोड़ते हैं। सीरीज के अंत में दूसरे सीजन का संकेत है। बेहतर है कि इस बार इसमें रोमांच का तड़का हो।

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