Salakaar Review: 'सरजमीन' को मुंह चिढ़ाती मौनी रॉय की मिनी सीरीज, एक्टिंग-स्टोरी टेलिंग टॉप नॉच, बस रह गई ये कमी
Salakaar Review नवीन कस्तूरिया मौनी रॉय मुकेश ऋषि सूर्या शर्मा पूर्णेंदू भट्टाचार्य जैसे कलाकारों से सजी स्पाय थ्रिलर सीरीज 8 अगस्त को जियो हॉटस्टार पर रिलीज हो चुकी है। फारुक कबीर के निर्देशन में बनी यह वेब सीरीज भारत के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर Ajit Doval को समर्पित है जिन्होंने नेशनल सिक्योरिटी में अपना बड़ा योगदान दिया है।
एकता गुप्ता, नई दिल्ली। जंग दो तरह की होती है एक वो जो मैदान पर लड़ी जाती है हथियारों के साथ और एक वो जिसमें दिमाग और हिम्मत ही सबसे बड़े हथियार होते हैं। 'सलाकार' दो ऐसी ही जंग की कहानी है जिसमें दुश्मन देश को बिना किसी हथियार के हराया गया था। दो इसलिए क्योंकि फारुक कबीर की इस सीरीज में दो कहानियां पैरेलल चलती हैं। हालांकि दोनों ही एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। एक 1978 में पाकिस्तान में हो रहे न्यूक्लियर बॉम्ब बनाने की कोशिश नाकाम करने की और दूसरी कहानी 2025 की जिसके धागे उसी घटना से जुड़े हुए हैं।
क्या है salakaar की कहानी
'सलाकार' की कहानी 2025 यानि वर्तमान से शुरू होती है जिसमें मौनी रॉय का किरदार मरियम एक भारतीय जासूस बनकर पाकिस्तान में अपने मिशन को अंजाम देती है। इस ऑपरेशन को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाकार ही लीड कर रहे होते हैं। दिलचस्प बात ये है कि जिस न्यूक्लियर बॉम्ब को बनाने की कोशिश को नाकाम करने के लिए मौनी पाकिस्तान में हैं उसकी नींव 1978 में डाली जा चुकी थी जिसका सपना मुकेश ऋिष के किरदार जर्नल जिया ने देखा था। उनके इस कोशिश को राष्ट्रिय सुरक्षा सलाकार नाकाम करते हैं। जिनके यंग वर्जन का किरदार अधीर दयाल (नवीन कस्तुरिया) ने निभाया है। दोनों ही अपने मिशन में कामयाब होते या नहीं और सबसे दिलचस्प बात पाकिस्तान से निकलने में कामयाब होते हैं या नहीं यही सीरीज की कहानी है।
फोटो क्रेडिट- सोशल मीडिया
मुकेश ऋषि ने छोड़ी छाप
कई भारतीय फिल्मों में विलेन के रूप में नजर आने वाले मुकेश ऋषि काफी वक्त बाद स्क्रीन पर लौटे हैं। इस सीरीज में उन्होंने जनरल जिया का किरदार निभाया है जो भारत से लोहा लेने के लिए चाइना की मदद से न्यूक्लियर बम बनाना चाहता है। मुकेश की एक्टिंग थोड़ी ओवर लगती है लेकिन फिर भी वे अपनी खौफनाक छवि के साथ प्रभाव छोड़ने में सफल रहते हैं।
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मौनी रॉय और नवीन कस्तूरिया ने किया प्रभावित
Aspirants में अपनी एक्टिंग से सबको प्रभावित करने वाले नवीन इस बार भी अपनी छाप छड़ने में कामयाब रहे। इस बार एक्टिंग के साथ उन्होंने दिखा दिया कि वे एक्शन में भी अच्छे हैं। सीरीज में उनके एक्शन सीक्वेंस काफी प्रभावी और रियल लगते हैं। वहीं दूसरी ओर मौनी रॉय भी जासूस के रूप में बेहतरीन अदाकारी करती नजर आई हैं। हालांकि मौनी को स्क्रीन टाइम काफी कम मिला लेकिन फिर भी उनकी एक्टिंग सराहनीय है।
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डायरेक्शन
अजय देवगन की The Awakening के डायरेक्टर और 'फिर भी दिल है हिंदुस्तानी' के असिस्टेंट डायरेक्टर फारुक कबीर ने इस वेब सीरीज को निर्देशित किया है। उन्होंने अच्छा काम किया है, खास बात है ये कि इस सीरीज में कोई मैनस्ट्रीम एक्टर नहीं है लेकिन फिर भी हर एक किरदार अपनी बेहतरीन एक्टिंग स्किल की छाप छोड़ता है। फारुक ने मिनी सीरीज बनाई है क्योंकि इस सीरीज में सिर्फ 5 एपिसोड है और सभी लगभग 30 मिनट के, तो सिर्फ 2.30 घंटे में आप पूरी सीरीज निपटा सकते हो। यानि कम टाइम में भी फारुक ने अच्छी कहानी कही है जो आपको बांधे रखती है लेकिन शायद इस जल्दबाजी में कबीर भूल गए कि ऐसी कहानी में सिर्फ एक्शन नहीं इमोशनल कनेक्शन भी जरूरी होता है।
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अधीर और मरियम को सिर्फ एक एजेंट के तौर पर ज्यादा दिखाया गया उनकी पर्सनल लाइफ पर कम फोकस किया गया खासकर मौनी रॉय के किरदार के बैकग्राउंड का तो कुछ पता ही नहीं चला। अगर कोई एजेंट अपनी जान जोखिम में डालकर देश से बाहर है तो उसकी फैमिली की कंडिशन और उसका फैमिली से जुड़ाव दिखाना काफी जरुरी है क्योंकि इस तरह कहानी में इमोशन जुड़ते हैं जो कि गायब थे।
अच्छी बातें-
- मुकेश ऋषि, लंबे वक्त बाद स्क्रीन पर वापस आए लेकिन दमदार किरदार निभाया
- नवीन कस्तूरिया और मौनी रॉय की बेहतरीन एक्टिंग
- पैरेलल कहानियां, कम वक्त में और सुलझे हुए तरीके से कही गई
- बिना किसी कट्टरपंथी प्लॉट के साइंटिफिक तरीके से बुनी गई स्टोरी
- लंबी सीरीजों के दौर में 5 एपिसोड की यह सीरीज सटीक और राहत देने वाली है
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क्या है कमी
कम वक्त में एक अच्छी कहानी कही गई है लेकिन किरदारों के साथ वो इमोशन कनेक्शन नहीं बैठ पाता, वजह उनकी पर्सनल जिंदगी को पूरी तरह इग्नोर करना। अधीर के कैरेक्टर को सिर्फ फील्ड पर दिखाया गया अगर उसकी पर्सनल लाइफ भी दिखाई जाती तो भावनात्मक जुड़ाव और भी स्ट्रांग होता। वैसे ही मरियम के फैमिली बैकग्राउंड से भी पर्दा नहीं हटाया गया है। ये दोनों ही पाकिस्तान में भारतीय जासूस के रूप में काम करते हैं जो काफी जोखिम भरा है ऐसे में इनके घरवालों पर क्या असर होता है यह दिखाना भी कहानी में इमोशन डालने के लिए जरुरी है।
दूसरी कमी है पाकिस्तान में मिशन को काफी आसान बनाना, मतलब एक रॉ एजेंट पाकिस्तान के प्रेसीडेंट के साथ आए दिन मिलता जुलता है और किसी को शक भी नहीं होता।
तीसरी कमी एक फीमेल रॉ एजेंट का फिजिकल इन्वॉल्वमेंट। माना एक रॉ एजेंट को किसी भी हद से गुजरना पड़ सकता है लेकिन हर बार एक फीमेल की फिजिकल अपील को इंटेलीजेंस से ऊपर रखना, यहां थोड़े बदलाव की जरूरत है।
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देखें या नहीं
सलाकार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाकार अजीत डोवाल को समर्पित है। जिन्होंने भारत के लिए बिना किसी हथियार के ऐसी जंग लड़ी है। कहानी को अच्छी तरह से कहा गया है और एक्टर्स ने भी बेहतरीन काम किया है। सीरीज देखने लायक है।
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