Sarzameen Review: बाप-बेटे की लड़ाई के बीच मां निकली हीरो, इब्राहिम ने नहीं किया निराश, दमदार कहानी फिर कहां रह गई कमी?
पृथ्वीराज सुकुमारन काजोल और इब्राहिम अली खान स्टारर सरजमीन जियो हॉटस्टार पर 25 जुलाई से स्ट्रीम हो रही है। कहानी एक ऐसे परिवार की है जिसमें एक मिलिट्री मैन को अपने ही बेटे और देश के बीच किसी एक को चुनना होता है। वहीं मां बाप-बेटे के रिश्ते को अपनी भावनाओं से संभालने की कोशिश करती है. इसमें वह सफल हो पाती है या नहीं यही फिल्म की स्टोरी है।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। 'सरजमीन से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं', 'अपनों के खून से बढ़कर कुछ नहीं', देखा जाए तो इन दो डायलॉग्स के बीच की कहानी है धर्मा प्रोडक्शन की सरजमीन। देशभक्ति पर आधारित फिल्मों की बॉलीवुड में कोई कमी नहीं है और यह ऐसा विषय है जिस पर फिल्में बनती रहेंगी क्योंकि दर्शक भी इन्हें पसंद भी करते हैं, खासकर मुद्दा अगर भारत और पाकिस्तान के बीच का हो। ज्यादातर हमने फिल्मों में देश और प्यार के बीच जंग देखी है , लेकिन इस बार कहानी अलग और नई है।
क्या है सरजमीन की कहानी
फिल्म में पृथ्वीराज सुकुमारन कर्नल विजय मेनन का किरदार निभा रहे हैं जो अपने देश के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। वहीं काजोल ने उनकी पत्नी मेहर का किरदार निभाया है और इब्राहिम अली खान ने उनके बेटे हरमन का। कहानी की शुरूआत विजय द्वारा पाकिस्तान के एक मुख्य आतंकी को पकड़ने से होती है और इसी सफलता के लिए उनकी पत्नी मेहर एक पार्टी का आयोजन करती है। इस पार्टी में मेहर अपने बेटे को अपने पिता के लिए कुछ बोलने के लिए कहती है लेकिन उनके बेटा हरमन बोलते वक्त हकलाता है और डरा-सहमा सा नजर आता है। इसी को लेकर विजय शर्मिंदा महसूस करते हैं और वहां से चले जाते हैं।
दरअसल विजय की चाहत है कि हरमन उन्हीं के जैसा निडर बने लेकिन इसके उलट हरमन थोड़ा कमजोर और डरपोक होता है। इस वजह से उसे पिता का वो प्यार नहीं मिल पाता जो उसे चाहिए। इस बीच पड़ोसी देश के आतंकी हरमन को किडनैप करके ले जाते हैं और बदले में अपने साथियों को लौटाने की मांग करते हैं।
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इस पॉइंट पर विजय को अपने देश और बेटे में से किसी एक को चुनना होता है और विजय अपने देश को चुनता है। आठ साल बाद एक कैंपेन के दौरान विजय को उसका बेटा मिलता है लेकिन बिल्कुल बदले हुए अंदाज में। बेटे के इस अंदाज से विजय को शक होने लगता है वहीं दूसरी ओर सीमा पार से उसे कई संदेश मिलते हैं जिसमें कोई वहां बैठा आगे होने वाले हमलों की जानकारी देकर उनकी मदद करने की कोशिश करता है। इसके बाद कहानी में कई मोड़ आते हैं और यह देशभक्ति की तर्ज पर चलता पारिवारिक ड्रामा एक थ्रिलर बनता हुआ दिखाई देता है।
काजोल और सुकुमारन की एक्टिंग
फिल्म की कहानी के लीड कैरेक्टर काजोल और सुकुमारन फिल्म की कहानी को बांधने का काम करते हैं। खासकर काजोल शुरू से आखिरी तक अपनी भूमिका के साथ न्याय करती हैं। बेटे के लिए एक मां और पति के लिए एक पत्नी की भावनाएं काजोल आखिरी तक बांधे रखती हैं। उनका डायलॉग 'अपनों के खून से बढ़कर कुछ नहीं' उनके किरदार की पहचान बनता है। वहीं सुकुमारन एक फौजी के किरदार के लिए एकदम परफेक्ट च्वॉइस हैं। साउथ से होने के बावजूद सुकुमारन की हिंदी कहीं भी कमजोरी साबित नहीं होती है।
क्या इब्राहिम छोड़ पाए अपनी छाप
नादानियां से मिली आलोचनाओं के बाद इस फिल्म में इब्राहिम अली खान की परफॉर्मेंस का दर्शकों को सबसे ज्यादा इंतजार था। लेकिन आपको बता दें कि इस बार इब्राहिम आपको निराश नहीं करेंगे। इब्राहिम अली खान ने हरमन के यंग वर्जन को पर्दे पर निभाया है जब वे आठ साल बाद अपने पिता के सामने आते हैं तो पहले लुक से ही आपका ध्यान खींच लेते हैं। बीच में उनका कैरेक्टर थोड़ा फीका लग सकता है लेकिन आगे चलकर पता चलता है कि उनके किरदार की यही मांग थी। इब्राहिम को काजोल और सुकुमारन से कम स्क्रीन टाइम मिला है लेकिन उन्होंने अपने किरदार को ठीक तरह से निभाया है खासकर क्लाईमैक्स में। फिल्म देखने के बाद इब्राहिम आपके दिमाग में छाप छोड़ने में तो कामयाब नहीं होते लेकिन नादानियां के बाद ये उनकी अच्छी कोशिश साबित होती है।
डायरेक्शन
सरजमीन को धर्मा प्रोडक्शन ने बनाया है और इसे डायरेक्ट बमन ईरानी के बेटे कायोज ईरानी ने किया है। दिलचस्प बात ये है कि ये उनका डायरेक्टोरियल डेब्यू है। बतौर डायरेक्टर उन्होंने पहली फिल्म की कहानी अच्छी चुनी है लेकिन उसे और बेहतर तरीके से कहा जा सकता था। फिल्म आपको पूरी तरह समझ आ जाती है लेकिन बीच-बीच में कई ऐसे लूप हैं जो आपको कंफ्यूज भी करते हैं और मन में कई सवाल भी खड़े करते हैं। जैसे पृथ्वीराज का अपने पिता के साथ रिश्ता कैसा था, वे इस किस तरह ऐसे इंसान बने और अपने बेटे के साथ उनका रिश्ता इतना खटास भरा क्यों होता है इसके पीछे का सॉलिड कारण दिखाने में वे नाकामयाब हुए हैं। वहीं अपनी पत्नी के बैकग्राउंड का सुकुमारन को आखिरी में पता चलने वाली भी थोड़ी पचने वाली नहीं है। ये एक सवाल है कि इतने सालों से आप किसी इंसान के साथ एक ही घर में रह रहे हैं और आपको उसके बैकग्राउंड की भी खबर नहीं होती है।
इस तरह कई छोटे-छोटे लूप हैं जो मन में सवाल खड़े कर सकते हैं जिनके जवाब आपको खुद ही ढूंढने होंगे या फिर नजरअंदाज करने होंगे।
क्यों देखें फिल्म
सरजमीन को देखने की एक बड़ी वजह है उसकी अलग कहानी। देशभक्ति पर आधारित कई फिल्में बनती हैं जिनमें कई बार लव स्टोरी दिखाई जाती है या फिर प्योर देशभक्ति कंटेंट जिसमें या तो आप आखिरी में मायूस हो जाते हैं या फिर अपने जवानों के लिए जोश में ताली बजाते हैं। लेकिन सरजमीन आपको कुछ नया परोसती है, बाप-बेटे के बीच की एक ऐसी कहानी जिसमें आप आखिरी तक नहीं जान पाते कि क्या होगा और हीरो कोई और ही निकल जाता है। देशभक्ति, बाप-बेटे और मां की भावनाओं के बीच बुनी गई यह कहानी आपके दिमाग को सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर अब आगे क्या होगा खासकर क्लाईमैक्स सरप्राइजिंग है।
दूसरा काजोल और सुकुमारन ने बेहतरीन एक्टिंग की है, काजोल का किरदार स्ट्रांग और आखिरी तक सधा हुआ है वहीं सुकुमारन भी एक अच्छा स्क्रीन प्रेजेंस देते हैं हालांकि उनके किरदार को और अच्छे से ढाला जा सकता था। वहीं इब्राहिम ने नादानियां के बाद एक अच्छी कोशिश की है।
कहां रह गई कमी
केयोज ईरानी ने एक अच्छी कहानी चुनी है लेकिन इस कहानी के अंदर भी कई छोटी कहानियां हैं जो अधूरी रह जाती हैं। सुकुमारन के अपने पिता और अपने बेटे से रिश्ते कैसे थे इसे थोड़ा और अच्छे से दिखाया जा सकता था। एक मिलिट्री मैन जिसे नहीं पता कि उनकी पत्नी का बैकग्राउंड क्या है, वह पड़ोसी देश से आए संदेशों पर आसानी से भरोसा कर लेता है कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें अच्छी तरह नहीं भुनाया गया। वहीं काजोल के किरदार की कहानी को भी अधूरा छोड़ दिया गया, जिससे स्टोरी से कनेक्ट करने में कमी महसूस होती है।
दूसरी बड़ी कमी है बमन ईरानी का किरदार, इतने बड़े एक्टर को एक फिल्म में इतना कम स्क्रीन टाइम मिलना उनके किरदार के साथ न्याय नहीं करता। बमन की जगह अगर कोई और अभिनेता होता, तो भी काम चल जाता।
टेक्निकल वर्क की बात करें तो सिनेमैटोग्राफी अच्छी की गई है, शूटिंग लोकेशन भी बेहतर है लेकिन कैमरा वर्क थोड़ा और अच्छा किया जा सकता था। फिल्म के गाने भी अपनी छाप नहीं छोड़ पाते हैं, शायद वे फिल्म देखने के बाद याद भी ना रहें।
देखें या नहीं
अगर आपको देशभक्ति पर आधारित फिल्में पसंद है लेकिन आप कुछ नया एंगल और कहानी देखना चाहते हैं तो सरजमीन को एक बार देखा जा सकता है। काजोल और सुकुमारन जैसे मंझे हुए एक्टर्स के बीच इब्राहिम ने अपनी जगह बनाने की पूरी कोशिश की है। वहीं कायोज ईरानी की बतौर डायरेक्टर पहली कोशिश भी सराहनीय है।
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