Sitaaron Ke Sitaare Review: आंसुओं से भीग जाएगी आपकी चादर, झकझोर कर रख देगी स्पेशल चाइल्ड के मां-बाप की कहानी
आमिर खान 'सितारे जमीन पर' की सफलता के बाद फिल्म 'सितारों के सितारों' डॉक्यूमेंट्री लेकर आए, जिसमें उन्होंने स्पेशल चाइल्ड के पेरेंट की कहानी दिखाई। कि ...और पढ़ें

सितारों के सितारे रिव्यू/ फोटो- Instagram
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। मैं दुनिया की इकलौती मां होउंगी जो चाहेगी की मेरे जाने से पहले बच्चे दुनिया छोड़कर चले जाए। अगर ऐसा हुआ यह मुझे मार देगा, लेकिन उनकी सुरक्षा को लेकर मैं किसी चिंता में नहीं मरुंगी। जब ‘सितारों के सितारे’ डॉक्यूमेंट्री में एक स्पेशल चाइल्ड की मां यह वाक्य कहती है, तो आंखें भर आती है। यह वाक्य किसी क्रूरता का नहीं, बल्कि उस गहरे भय, असहायता और समाज से मिले तिरस्कार का नतीजा है, जिसे ऐसे माता-पिता हर दिन जीते हैं।
निर्देशक शानिब बख्शी की यह संवेदनशील डॉक्यूमेंट्री इस साल आई फिल्म सितारे जमीन पर में अभिनय करने वाले स्पेशल चाइल्ड और उनके माता-पिता के जीवन के अनदेखे पहलुओं को बेहद ईमानदारी से सामने रखती है। फिल्म में बास्केटबॉल खेलते दिख रहे इन बच्चों ने बास्केटबॉल खेलना तो दूर कभी देखा भी नहीं था, लेकिन अभिनय ने किस प्रकार उनकी जिंदगी को भी नया आयाम दिया यह डॉक्यूमेंट्री उस पर भी बारीकी से बात करती है। आगामी दिनों में यह डाक्यूमेंट्री यू ट्यूब पर आमिर खान टाकीज चैनल पर रिलीज होगी।
क्या है सितारों के सितारे की कहानी?
डॉक्यूमेंट्री की शुरुआत इन माता-पिता के सपनों से होती है। हर आम परिवार की तरह एक स्वस्थ, सामान्य बच्चे की आकांक्षा, लेकिन जन्म के कुछ समय बाद जब बच्चों में अलग-अलग लक्षण दिखने लगते हैं, तब हकीकत धीरे-धीरे सामने आती है। किसी को डाउन सिंड्रोम (इसमें व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक विकास में देरी हो सकती है, साथ ही कुछ चिकित्सा समस्याएं भी हो सकती है) का सामना करना पड़ता है, किसी को आटिज्म का।
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ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति का दिमाग दूसरों से अलग तरीके से काम करता है, जिससे सामाजिक संपर्क, संवाद करने, और कुछ खास तरह के व्यवहारों में कठिनाई हो सकती है। कई माता-पिता स्वीकार करते हैं कि वे मानसिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं थे। किसी ने फूट-फूटकर रोने की बात कही, तो किसी ने क्षणिक कमजोर पल में बच्चे को कहीं छोड़ आने जैसे विचारों को भी स्वीकारा।
हालांकि अपने दर्द को उन्होंने कभी किसी से साझा नहीं किया। परवरिश की चुनौतियां यहां विस्तार से उभरती हैं। समाज की असंवेदनशीलता, रिश्तेदारों के ताने, पड़ोसियों की उपेक्षा और सामान्य बच्चों का असामान्य व्यवहार ये सब बच्चों के साथ माता-पिता के मन पर गहरे घाव छोड़ते हैं। जन्मदिन की पार्टियों में न बुलाया जाना, स्कूल में अलग-थलग किया जाना ये छोटी-छोटी घटनाएं माता-पिता के लिए असहनीय पीड़ा बन जाती हैं। कुछ माता-पिता ने संगीत, कला और खेल को थेरेपी के रूप में अपनाया ताकि बच्चे उसमें आगे बढ़ सकें और आत्मविश्वास पा सकें। भले ही ये बच्चे तेजी से न सीखें, लेकिन सीखते जरूर हैं।
ऋषि शाहनी ( Rishi Shahani) इसका जीवंत उदाहरण है, जिसने साल 1999 में तैराकी में पैरा-ओलंपिक गोल्ड मेडल जीतकर यह साबित कर दिया कि सीमाएं अक्सर समाज तय करता है, क्षमताएं नहीं। कैमरा इन बच्चों की भावनात्मक दुनिया में भी झांकता है जहां वे प्यार, दोस्ती, गर्लफ्रेंड और शादी जैसी इच्छाएं रखते हैं, जिन्हें अक्सर समाज नजरअंदाज कर देता है।
बच्चों का आत्मविश्वास मन को छू जाएगा
ऑडिशन और शूटिंग के दृश्य डाक्यूमेंट्री को खास बनाते हैं। शूटिंग को लेकर बच्चों का उत्साह, उनका सीखने का जज्बा और कैमरे के सामने उनका आत्मविश्वास मन को छू जाता है। शूटिंग के दौरान सितारे जमीन फिल्म के निर्देशक आर. प्रसन्ना और आमिर खान का बच्चों के साथ धैर्य और अपनापन देखने लायक है। आमिर खान खुद भी इन बच्चों के साथ काम करने के अनुभव साझा करते हैं, जो फिल्म के मानवीय पक्ष को और मजबूत करता है।
डॉक्यूमेंट्री देखते हुए कई बार आंखें नम हो जाती हैं, तो कई बार गला रुंध जाता है। यह सिर्फ बच्चों की कहानी नहीं है, बल्कि उन माता-पिता का संघर्ष भी है, जो उम्र बढ़ने के साथ एक ही सवाल से जूझते हैं हमारे बाद हमारे बच्चों का क्या होगा? इसी चिंता में छिपा उनका सबसे बड़ा डर है।
समाज को आईना दिखाने का प्रयास है डॉक्यूमेंट्री
बहरहाल, ‘सितारों के सितारे’ महज एक डॉक्यूमेंट्री नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाने का प्रयास है। यह उस मिथक को तोड़ती है कि स्पेशल चाइल्ड होना किसी ‘पूर्व जन्म के पाप’ का परिणाम नहीं है। आमिर खान की पहल सराहनीय है कि उन्होंने इस माध्यम से माता-पिता के अकेलेपन, दर्द और सामाजिक तिरस्कार को दमदार और संवेदनशील तरीके से सामने रखा। यह डाक्यूमेंट्री संदेश देती है कि इन 'सितारों' को भी सम्मान और प्यार की जरूरत है। एक सीन में आमिर खान कहते हैं कि वो पूरी जिंदगी जज किए गए पर वो किसी को जज नहीं करते। तात्पर्य यही है कि इंसान की असली बड़पन दूसरों को बिना जज किए स्वीकार करने में है, ये बच्चे भी यही चाह रखते हैं।

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