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    Zora Movie Review: 2 करोड़ की फिल्म को ऑडियंस मिलना 'असंभव', 21 साल बाद निर्देशक की वापसी फ्लॉप

    अर्जुन रामपाल के साथ फिल्म असंभव और विश्वात्मा जैसी फिल्में बनाने वाले निर्देशक राजीव राय ने 21 साल बाद फिल्म जोरा से बॉलीवुड में वापसी की है। उनकी ये फिल्म क्राइम बेस्ड है। इस फिल्म की क्या है कहानी और क्यों मूवी को देखते हुए आपको रखना पढ़ेगा पूरा धैर्य यहां पढ़ें फिल्म का रिव्यू

    By Tanya Arora Edited By: Tanya Arora Updated: Fri, 08 Aug 2025 09:07 PM (IST)
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    कैसी है फिल्म 'जोरा' की कहानी/ फोटो- Instagram

     स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। गुप्‍त, मोहरा, विश्‍वात्‍मा, त्रिदेव जैसी हिट फिल्‍मों के निर्देशक राजीव राय ने करीब 21 साल के अंतराल के बाद निर्देशन में वापसी की है। इन 21 वर्षों में फिल्‍म इंडस्‍ट्री ही नहीं दुनिया में तकनीक स्‍तर पर काफी बदलाव हुए हैं। हालांकि उनकी कमबैक फिल्‍म जोरा को देखते हुए लगता है कि वह समय के साथ कदमताल में पीछे रह गए। यहां वह अपना पुराना जादू जगा पाने में नाकाम रहे हैं।

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    फिल्‍म रिलीज से पहले राजीव ने अपने साक्षात्‍कार में कहा था कि यह फिल्‍म उन्‍होंने सिर्फ दो करोड़ रुपये के बजट में बनाई है। बजट फिल्‍म का अहम हिस्‍सा होता है, लेकिन मजबूत कहानी, चुस्‍त स्क्रीनप्ले के साथ कलाकार की अदायगी उसे दर्शनीय बनाती है। इन सभी मोर्चों पर यह फिल्‍म विफल साबित होती है। फिल्‍म के ज्‍यादातर चेहरे अपरिचित हैं। घटनाक्रम भी बेतुके हैं।

    क्या है फिल्म 'जोरा' की कहानी?

    जयपुर में सेट कहानी का आरंभ साल 2003 में होता है। ईमानदार इंस्पेक्टर विराट सिंह (विकास गोस्वामी) नकली स्टांप पेपर छापने वाले एक गिरोह का पर्दाफाश करता है लेकिन जोरा नामक महिला उसे मार देती है। जोरा ने टोपी और मास्‍क पहनकर अपने चेहरे को छुपा रखा है। विराट का 13 साल का बेबस बेटा रंजीत सिं‍ह (जय किशन मंगवानी) अपने आंखों के सामने अपने पिता की हत्‍या होते देखता है। कहानी वर्तमान में आती है। सब इंस्‍पेक्‍टर रंजीत (रविंदर कुहर) एक अवैध ड्रग रैकेट का भंडाफोड़ करने के लिए कानून को अपने हाथ में ले लेता है। यह बात उसके वरिष्‍ठ अधिकारी इकबाल (करणवीर) को बिल्कुल पसंद नहीं आता। दोनों के बीच यह मतभेद का कारण बनता है।

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    Photo Credit- Instagram

    इस बीच रंजीत को अपनी पिता की हत्‍या के दौरान मौजूद लोगों का पता चलता है। अब वह जोरा तक पहुंचना चाहता है। लेखक, निर्देशक, संपादक के साथ निर्माता राजीव राय की यह सस्पेंस ड्रामा जोरा कौन है? इस रहस्‍य पर टिकी है। हालांकि फिल्‍म देखते हुए लगता है कि राजीव पिछली सदी के नौवें दशक से निकल नहीं पाए हैं। फिल्‍म निर्माण की शैली में वह काफी पिछड़ दिखते हैं। कहानी में कोई नवीनता नहीं है। जोरा को पकड़ने को लेकर इकबाल और फोरेंसिक विशेषज्ञ (दिलराज कौर) के बीच संबंधों का प्रसंग अनावश्यक लगता है। फिल्‍म देखते हुए लगता है कि टीवी पर क्राइम शो देख रहे हैं।

    Photo Credit- Instagram

    जोरा लेगी धैर्य की परीक्षा

    पलक मुच्छल का शीर्षक गीत कहानी साथ सुसंगत है। विजू शाह का बैकग्राउंड स्कोर प्रभावहीन है। जोरा आपके धैर्य की काफी परीक्षा लेती है। अंतिम सीन वास्‍तव में डर पैदा करता है जिसमें अगले साल एक जनवरी को इसकी सीक्वल 'जोरा जोरावर' लाने की जानकारी दी गई है।

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