हरियाणा: फाइलों के जंजाल में भटकती ‘लाडो’, योजना नहीं; परीक्षा बन गई प्रक्रिया, जमकर हो रही वसूली
अंबाला में लाडो लक्ष्मी योजना के तहत रिहायशी प्रमाण पत्र बनवाने के लिए नगर निगम में भारी भीड़ उमड़ी। अभिभावकों को कई दस्तावेजों और लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है। किराये पर रहने वालों और सीएससी सेंटरों पर अधिक फीस वसूली की समस्या भी सामने आई है। सरकार द्वारा बेटियों को आर्थिक मदद देने के उद्देश्य से शुरू की गई।

उमेश भार्गव, अंबाला। नगर निगम परिसर में बुधवार सुबह लाइनें कुछ यूं लग रही थी जैसे कोई मेला लगा हो- मगर यह मेला खुशियों का नहीं, ‘रिहायशी प्रमाण पत्र’ के इंतजार का था। सूरज चढ़ने से पहले ही लोग लाइन में लग चुके थे। कोई हाथ में फाइल दबाए, कोई बच्ची को गोद में लिए, तो कोई दस्तावेजों की फोटोकापी के लिए इधर-उधर भागता नजर आ रहा था। वजह थी- लाडो लक्ष्मी योजना का लाभ लेने की उम्मीद।
दोपहर 12 बजे तक निगम के गेट पर हलचल इतनी बढ़ चुकी थी कि गार्डों को भीड़ संभालनी पड़ रही थी। उस वक्त तक करीब 225 लोगों ने टोकन ले लिया था, जबकि छावनी नगर परिषद में रोजाना औसतन 180 आवेदन और अंबाला शहर में सोमवार को 250 आवेदन आए थे।
योजना का लाभ तो ‘लाडो’ के लिए है, पर इसकी राह उनके अभिभावकों के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं। नगर निगम में बुधवार को भीड़, पसीना, धैर्य और उम्मीद- यही इस दृश्य के चार रंग थे। किसी के हाथ में फाइल थी, किसी के होंठों पर दुआ- कि प्रमाण पत्र जल्दी मिल जाए, ताकि लाडो लक्ष्मी की मुस्कान तक पहुंचने का रास्ता थोड़ा छोटा हो सके।
योजना और दस्तावेजों का झंझट
हरियाणा सरकार की लाडो लक्ष्मी योजना का उद्देश्य है-राज्य की बेटियों को आर्थिक सहयोग देना, ताकि उनके जन्म और शिक्षा में परिवार को सहयोग मिले। लेकिन इस योजना तक पहुंचने के लिए पहला और सबसे बड़ा कदम है-स्थायी निवास प्रमाण पत्र।
इसके लिए जरूरी दस्तावेजों की लंबी सूची है-आधार कार्ड, परिवार पहचान पत्र, बैंक पासबुक, आय प्रमाण पत्र, बीपीएल कार्ड (यदि हो), और सबसे अहम- हरियाणा में निवास का प्रमाण। इन कागजों के बिना आवेदन अधूरा रह जाता है।
फार्म से लेकर सीएससी तक की कठिन यात्रा
प्रक्रिया कागज पर आसान लगती है, पर जमीनी हकीकत कुछ और है। कोई भी आवेदक पहले किसी सीएफसी (नागरिक सुविधा केंद्र)या विभागीय वेबसाइट से फार्म निकालता है। फार्म भरने के बाद संबंधित वार्ड पार्षद के हस्ताक्षर करवाने होते हैं। फिर नगर निगम या परिषद में जाकर डिस्पैच नंबर लगवाना होता है- और यही वह पड़ाव है जहां लोगों की धैर्य की परीक्षा शुरू होती है।
डिस्पैच नंबर लगने में दो से तीन दिन लगना आम बात है। इसके बाद 20 रुपये की फीस निकाय सीएफसी काउंटर पर कटती है। यदि किसी का प्रापर्टी टैक्स बकाया है, तो उसे पहले भरना अनिवार्य है। इसके बाद फार्म डोमिसाइल क्लर्क को दिया जाता है, जो सचिव से हस्ताक्षर करवाकर आवेदक को फार्म वापस करता है।
फार्म के साथ आवेदक को किसी सीएससी केंद्र पर जाना पड़ता है, जहां आवेदन को आनलाइन अपलोड किया जाता है। अपलोडिंग के वक्त लाइव फोटो ली जाती है- यानी आवेदक को वहीं मौजूद रहना पड़ता है। आवेदन अपलोड होने के बाद रसीद मिलती है, और करीब एक हफ्ते में प्रमाण पत्र तैयार होता है।
किराये के घर वालों की मुश्किलें
जो परिवार वर्षों से किराये पर रह रहे हैं, उनके लिए यह प्रक्रिया और पेचीदा हो जाती है। हालांकि सरकार ने राहत देते हुए यह प्रविधान रखा है कि जो व्यक्ति कम से कम 15 साल से अंबाला में रह रहा है, वह किराये के मकान का रेंट एग्रीमेंट और पार्षद के हस्ताक्षर लगाकर आवेदन कर सकता है। मगर व्यवहार में, पार्षदों के साइन और सत्यापन के लिए भी कई बार लोगों को चक्कर काटने पड़ते हैं।
लूट का नया ठिकाना- सीएससी सेंटर
इस पूरी व्यवस्था में सबसे ज्यादा चर्चा सीएससी (कामन सर्विस सेंटर) संचालकों की है। रिहायशी प्रमाण पत्रों की आड़ में उन्होंने कमाई का नया रास्ता खोल लिया है।
सीएससी संचालक आनलाइन आवेदन अपलोड कर सकते हैं। सरकारी नियमों के मुताबिक यह प्रक्रिया 50 से 70 रुपये फीस में पूरी होनी चाहिए, लेकिन वास्तविकता में संचालक आनलाइन आवेदन के ही 150 से 250 रुपये तक वसूल रहे हैं। इसके अलावा
तीन पेज का फार्म 30 रुपये में देते हैं, और प्रमाण पत्र प्रिंट कर देने के लिए 20 रुपये तक अलग से। जाहिर है लाभ लेने वाले गरीब ही हैं फिर भी मजबूरी में सबको देना पड़ता है- क्योंकि ‘लाडो’ के सपनों के लिए यह कीमत छोटी लगती है।
लंबी कतारों के बीच उम्मीद की लौ
भीड़ में खड़ी होने के बाद थक कर बैठी हरप्रीत कौर, जिनकी गोद में डेढ़ साल की बेटा था, कहती हैं-“मैं सुबह 8 बजे डडियान से चली थी, लाइन में थक गई हूं। कागज पूरे हैं, पर पार्षद साहब साइन करवाने हैं।
जब सरकार ने योजना बेटी के लिए बनाई है तो इतनी मुश्किल क्यों?”उनकी बात सुनकर पास बैंच पर बैठी रानो देवी मुस्कुरा देती है, “यह योजना लाडो के लिए है, पर आज तो मांओं की परीक्षा हो रही है।” अधिकारी मानते हैं कि भीड़ और तकनीकी प्रक्रिया के कारण विलंब हो रहा है, लेकिन उनका दावा है कि “सिस्टम में सुधार” की कोशिशें चल रही हैं।
क्या है सीएससी में फीस लेने का प्रविधान
- किसी भी सीएससी से यदि कोई प्रिंट लेना है तो ब्लैक एंड व्हाइट पेज का 5 रुपये प्रति पेज
- कलर प्रिंट 10 रुपये प्रति पेज
- दस्तावेज स्कैनिंग 5 रुपये प्रति पेज
- रिहायशी प्रमाण पत्र के लिए 7-8 पेज स्कैनिंग होते हैं यानी अधिकतम 40 रुपये फीस
- 30 रुपये फीस रिहायशी प्रमाण पत्र की सरकारी है जिसकी रसीद भी सीएसी संचालक देगा।
- 40 रुपये पेज स्कैनिंग के और 30 रुपये सरकारी फीस कुल 70 रुपये।
- 70 रुपये में ही वह रिहायशी प्रमाण पत्र बनकर आने के बाद आवेदक को निशुल्क उसकी प्रति उपलब्ध करवाएगा।
- 3 पेज के आवेदन फार्म को मिलाकर 85 रुपये तक बनते हैं।
सभी सीएससी संचालकों को इस बारे में समय-समय पर हिदायतें जारी कर दी जाती हैं। यदि कोई भी सीएससी संचालक ऐसा करता हुआ पाया गया तो निश्चित तौर पर उसपर कार्रवाई होगी। उसका लाइसेंस तक रद्द किया जा सकता है। ओवर चार्ज पर पहले भी ऐसा किया जा चुका है। 5 रुपये स्कैनिंग के प्रति पेज और 5 रुपये ब्लैक एंड व्हाइट पेज प्रिंट के सीएससी संचालक ले सकता है। रंगीन पेज निकलवाने के 10 रुपये रेट हैं।
- विवेक शर्मा, डीएम, सीएससी अंबाला।
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