जहां निर्माण की है मंजूरी, क्या वहीं बनी है अल-फलाह यूनिवर्सिटी? राजस्व विभाग ने पैमाइश रिपोर्ट सौंपी
फरीदाबाद में अल-फलाह यूनिवर्सिटी की जमीन को लेकर विवाद गहरा गया है। राजस्व विभाग ने पैमाइश रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेज दी है, जिसमें भूमि के सीमांकन और निर्माण की अनुमति की जांच की गई है। पुलिस ने अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट के दफ्तर पर भी छापेमारी की है और कई दस्तावेज जब्त किए हैं। यूनिवर्सिटी के चांसलर पर पहले भी वित्तीय धोखाधड़ी के आरोप लग चुके हैं।

डिजिटल डेस्क, फरीदाबाद। दिल्ली में आतंकी हमले के बाद सवालों में आई अल-फलाह यूनिवर्सिटी की जमीन को लेकर चल रही जांच एक अहम चरण में पहुंच गई है। राजस्व विभाग की ओर की गई पैमाइश (Demarcation) की रिपोर्ट तैयार कर उच्च अधिकारियों को भेज दी गई है।
अधिकारियों के अनुसार, जांच का प्रमुख बिंदु यह है कि विश्वविद्यालय ने जिस कीला नंबर में निर्माण की मंजूरी ली, क्या भवन वास्तव में उसी भूमि पर बना है। अल-फलाह यूनिवर्सिटी की बिल्डिंग करीब 20 एकड़ क्षेत्र में बनी है, जिसका बिल्डिंग प्लान नक्शा भी राजस्व टीम के अध्ययन में शामिल है।
रिपोर्ट में मसावी, जमाबंदी, सीमांकन और स्वीकृत प्लान के मिलान की जानकारी दर्ज है। प्रशासन जल्द ही रिपोर्ट की अगली तकनीकी जांच करेगा। यूनिवर्सिटी परिसर और उससे संबंधित संस्थानों पर तीन राज्यों की पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों की मौजूदगी के कारण माहौल और संवेदनशील हो गया है।
अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट के दफ्तर पर पुलिस कर चुकी है छापेमारी
जांच की तेजी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि फरीदाबाद के साथ ही दिल्ली के जामिया नगर स्थित अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट के दफ्तर में गुरुवार सुबह हरियाणा पुलिस की तीन सदस्यीय टीम अचानक पहुंच गई। करीब डेढ़ घंटे तक ट्रस्ट के पदाधिकारियों से पूछताछ हुई और कई दस्तावेज़ अपने साथ लेकर टीम वापस लौट गई।
ट्रस्ट का दफ्तर 274-ए, अल-फलाह हाउस में है, जहां से ही फरीदाबाद स्थित यूनिवर्सिटी की जमीन, राजस्व, मान्यता और प्रशासनिक कागज़ात संभाले जाते हैं। एक दिन पहले यूनिवर्सिटी की जमीन से जुड़े कई दस्तावेज़ PDF फॉर्मेट में ईमेल पर मांगे गए थे।
अल-फलाह यूनिवर्सिटी व ट्रस्ट के पुराने मामले सामने आए
पुलिस सूत्रों के अनुसार, अल-फलाह यूनिवर्सिटी के चांसलर और अल-फलाह ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी जवाद अहमद सिद्दीकी पर लगभग 25 वर्ष पहले न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी थाने में वित्तीय धोखाधड़ी का मामला दर्ज हुआ था।
आरोप था कि उन्होंने अल-फलाह इन्वेस्टमेंट कंपनी में निवेश कराए गए पैसों को जाली शेयर सर्टिफिकेट बनवाकर दिखाया और लगभग 7.5 करोड़ रुपये निजी खातों में ट्रांसफर किए।
वर्ष 2001 में सिद्दीकी को गिरफ्तार किया गया, 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट ने फॉरेंसिक साक्ष्यों के आधार पर उनकी जमानत याचिका खारिज की। बाद में फरवरी 2004 में निवेशकों के पैसे वापस करने पर सहमति जताने के बाद जमानत दी गई। हालांकि ट्रस्ट के लीगल एडवाइजर का दावा है कि सिद्दीकी को 2005 में सभी मामलों में बरी कर दिया गया था

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