कूड़े से बायो डीजल बनाने की योजना ठंडे बस्ते में, नगर परिषद को लाखों का नुकसान; सड़कों पर जमा हो रहा कूड़ा
नगर परिषद की कूड़े से बायोडीजल बनाने की योजना विफल हो गई है, जिससे लाखों का नुकसान हुआ है। शहर में कूड़ा जमा हो रहा है, जिससे गंदगी फैल रही है।

सोहना में लगा कूड़े का पहाड़। जागरण
जागरण संवाददाता, सोहना। कूड़े से बायो डीजल बनाए जाने की योजना सिरे नहीं चढ़ना नगर परिषद के अधिकारियों की लचर कार्यशैली दर्शाता हैं। इस योजना को सिरे नहीं चढ़ने से परिषद को लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है।
योजना पर अमल करने की बजाय योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। यदि अधिकारी सक्रिय भूमिका निभाते तो यह योजना परिषद के लिए आमदनी का स्रोत तो होती ही, साथ ही वार्ड 13 के लोगों को दूषित वातावरण से छुटकारा मिल जाता। योजना को करीब सात वर्ष पूर्व नगर परिषद ने तैयार किया था। योजना से परिषद को मोटी कमाई भी होनी तय थी। जिसका समस्त प्रारूप भी नगर परिषद ने तैयार कर लिया था।
बता दें कि 14 जुलाई, 2018 को निवर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा सोहना में निकलने वाले ठोस कचरे के निस्तारण को लेकर योजना को जर्मनी की एजी डाटर कंपनी को जिम्मेवारी दी थी। नगर परिषद ने योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए परिषद बोर्ड से मंजूरी लेकर उपायुक्त गुरुग्राम के समक्ष हरी झंडी के लिए प्रेषित कर दिया था ताकि योजना को जल्द से जल्द शुरू किया जा सके।
इसके बाद भी इस योजना पर कोई अमल नहीं हो सका जिससे वर्तमान में यह योजना ठप पड़ी हुई है।
क्या थी योजना
सोहना के शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के कूड़े का निस्तारण करने के लिए जर्मनी की एजी डाटर कंपनी को जिम्मेवारी दी थी जो कूड़े को 8 से 10 हजार डिग्री तापमान पर गला कर बायो डीजल व बिजली तैयार करके नागरिकों को प्रदान करती। योजना अनुसार कंपनी करीब 150 टन कूड़ा को गलाती।
ऐसा होने पर कंपनी नगर परिषद को 25 से 30 लाख रुपये प्रति माह प्रदान करती तथा भूमि लेने की एवज में 5 लाख रुपये प्रति माह किराये का भुगतान भी करना था।
60 से 70 टन निकलता है कूड़ा
सोहना के पुराना अलवर मार्ग पर कूड़े का पहाड़ बना हुआ है। प्रतिदिन 60 से 70 टन कूड़ा निकलता है। जिसके निस्तारण के लिए परिषद करोड़ों रुपये की राशि खर्च करती है। इसके बावजूद कूड़ा नहीं उठाया जा रहा। शहर के आम रास्तों चौक चौराहों पर कूड़ा ज्यों का त्यों रहता है।
क्या कहते हैं अधिकारी
नगर परिषद के कार्यकारी अभियंता अजय पंगाल बताते हैं कि बीते दिनों सरकार के आदेश पर इस योजना को तैयार किया गया था। परिषद को अच्छी आमदनी होनी तय थी। कस्बे में केवल 60 टन कूड़ा प्रतिदिन निकलता है जबकि कंपनी को प्रतिदिन करीब 200 टन कूड़ा देना अनिवार्य होता है। इस वजह से योजना सिरे नहीं चढ़ पाई।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।