यमुनानगर में बौद्ध इतिहास के प्रतीक सुघ टीले में कब्रिस्तान है नहीं, छिड़ गया विवाद
यमुनानगर के प्राचीन सुघ टीले पर अतिक्रमण का मामला अल्पसंख्यक आयोग और हरियाणा सरकार तक पहुंचा। यह टीला बौद्ध इतिहास का प्रतीक है। यहां कब्रिस्तान है या नहीं इस पर विवाद छिड़ गया है। पुरातत्व विभाग के दावे का विरोध हो रहा है और विरासत को बचाने के प्रयासों पर सवाल उठ रहे हैं।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। यमुनानगर के प्राचीन सुघ टीले पर लगातार हो रहे अतिक्रमण का मामला राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और हरियाणा सरकार के पास पहुंच गया है। यह टीला को प्राचीन श्रुघना नगरी का हिस्सा और बौद्ध इतिहास से जुड़ा माना जाता है। यह स्थल न केवल बौद्ध इतिहास का प्रतीक है, बल्कि भारतीय पुरातत्व और सांस्कृतिक धरोहर की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। लंबे समय से यहां अतिक्रमण हो रहा है। टीले में कब्रिस्तान है या नहीं, इस पर विवाद छिड़ गया है।
हरियाणा के पुरातत्व विभाग की उप निदेशक डा. बिनानी भट्टाचार्य ने दावा किया कि सुघ टीले पर बना कब्रिस्तान संरक्षित क्षेत्र के बाहर स्थित है। ट्टाचार्य के इस दावे को स्थानीय निवासियों, विरासत कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने तीव्र विरोध करते हुए झूठा ठहराया है। उनका कहना है कि कब्रिस्तान वास्तव में संरक्षित टीले के भीतर है और इससे अमूल्य पुरातात्विक धरोहर को सीधा नुकसान पहुंच रहा है, जिसके जिम्मेदार विभाग के अधिकारी हैं। इसकी औपचारिक सूचना मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को भेज दी गई है।
सुघ टीला यमुनानगर जिले के अमादलपुर दयालगढ़ गांव में स्थित है, जो मौर्य काल में बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। भारतीय पुरातत्व विभाग के केंद्र व राज्य स्तरीय अधिकारियों का इस विरासत को बचाने की तरफ कोई ध्यान नहीं है। विरासत को बचाने के लिए सरकार ने बजट में करीब 20 करोड़ रुपये का प्रविधान किया है, लेकिन विभागीय अधिकारी सिर्फ दो करोड़ रुपये के बजट के प्रविधान की बात कहकर जिम्मेदारी से झाड़ रहे हैं। यहां तक कि हरियाणा के पर्यटन एवं विरासत मंत्री डा. अरविंद शर्मा को भी विभागीय अधिकारी अंधेरे में रख रहे हैं।
स्थिति और भी चिंताजनक है, क्योंकि 1862 में ब्रिटिश पुरातत्वविद अलेक्जेंडर कनिंघम और 19वीं सदी के हरियाणा गजेटियर में वर्णित 39 मध्यकालीन सती स्मारकों में से आज केवल पांच ही शेष बचे हैंं। बाकी सभी नष्ट हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त संरक्षित क्षेत्र में अवैध खेती, खनन और भारी मशीनरी का प्रयोग जारी है, जिसके रोकने की दिशा में विभाग के अधिकारियों की ओर से कोई काम नहीं किया जा रहा है।
बौद्ध संगठन तिब्बती कालोनी (अंबाला कैंट ट्रस्ट) हरियाणा के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्राचीन सुघ टीले पर लगातार हो रहे अतिक्रमण औपर चिंता जाहिर करते हुए हरियाणा सरकार के पास प्रतिवेदन भेजा है। जींद के एडवोकेट सुलेख मानव बौद्ध तथा तिब्बती कालोनी के अध्यक्ष सोनम ने हरियाणा के विरासत एवं पर्यटन मंत्री डा. अरविंद शर्मा को पत्र लिखकर विभागीय अधिकारियों की उदासीनता से अवगत कराया है।
उन्होंने इस संबंध में नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा के पास भी प्रतिवेदन भेजा है। उन्होंने कहा है कि यह केवल सीमाओं का प्रश्न नहीं है, बल्कि अपरिवर्तनीय विरासत का अस्तित्व बचाने का सवाल है, जिसे लेकर हरियाणा के अधिकारी गंभीर हीं हैं। इसी संबंध में बौद्ध और अल्पसंख्यक नेताओं ने केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू से भी मुलाकात करने का निर्णय लिया है।
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