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    झज्जर के दीयों से पांच राज्यों में रोशन होती है दीवाली, बारिश ने डाला खलल, 80 लाख का कारोबार प्रभावित

    Updated: Mon, 13 Oct 2025 08:13 AM (IST)

    झज्जर के दीयों से पांच राज्यों में दीवाली जगमगाती है। राजस्थान, पंजाब, हिमाचल, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में इनकी मांग है। इस वर्ष बारिश के कारण दीयों का कारोबार प्रभावित हुआ है, जिससे लगभग 80 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। कुम्हारों को सरकार से मदद की उम्मीद है ताकि वे इस नुकसान से उबर सकें।

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    25 लाख दीये हो पाए तैयार, बारिश ने दीयों की रोशनी की लौ बुझाई (File Photo)

    राकेश कुमार, झज्जर। हर साल की तरह इस बार भी झज्जर की मिट्टी से बनी दीयों की चमक दूर-दूर तक रोशनी फैलाने जा रही है। हरियाणा के झज्जर जिले की चिकनी मिट्टी न केवल प्रदेश में बल्कि पड़ोसी राज्यों तक दीवाली पर रौनक बिखेरती है। मगर इस बार लगातार हुई बरसात ने इस परंपरा की रोशनी को फीका कर दिया है।

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    इससे पहले हर बार 25 ट्राले भर कर दीये दूसरे राज्यों में भेजे जाते थे। इस बार कुंभकारों का करीब 80 लाख रुपये का कारोबार प्रभावित हुआ है। इस बार मात्र पांच ट्राले दीये यानी करीब 25 लाख दीये ही तैयार हो पाए हैं।

    झज्जर के कुम्हारों की मेहनत से तैयार मिट्टी के दीये गुरुग्राम, नारनौल, भिवानी, चरखी दादरी, रेवाड़ी और रोहतक जैसे जिलों के साथ-साथ राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और पंजाब तक भेजे जाते हैं।

    एक करोड़ दीये कम हुए तैयार

    झज्जर के प्रमुख युवा कुंभकार जितेंद्र उर्फ जैकी ने बताया कि इस बार समय पर बारिश ने पूरा काम बिगाड़ दिया। लगातार भीगी मिट्टी और धूप न निकलने के कारण दीयों को सुखाने में भारी परेशानी हुई। जिन आर्डरों की सप्लाई पिछले वर्षों में समय से हो जाती थी, वे इस बार अधूरे रह गए।

    पांच राज्यों में भेजे जाने वाले दीयों में से झज्जर के कुंंभकार करीब 25 लाख दीये तैयार कर पाए हैं, जबकि बीते सालों में यह संख्या एक करोड़ 25 लाख तक रहती थी। बारिश के कारण लगातार परेशानी का सामना करना पड़ा। दीये बना तो दिए लेकिन सुखाने व पकाने के लिए भट्टी में आग नहींं दे पाए।

    मिट्टी के दीयों का बढ़ा आकर्षण 

    इस बार बाजार में मिट्टी का स्टैंड वाला दीया सबसे ज्यादा चलन में है। ग्राहक घर की सजावट और पूजा स्थलों के लिए इन्हें विशेष रूप से पसंद कर रहे हैं।

    इसके अलावा मैजिक चिराग दीया और रंगीन, कलर दीयों की भी मांग तेजी से बढ़ रही है। ये दीये देखने में आकर्षक तो हैं ही, साथ ही लंबे समय तक जलते भी रहते हैं। कुम्हार बताते हैं कि मैजिक चिराग दीया में मिट्टी की विशेष टंकी बनाई जाती है, जिससे यह लगभग 20 घंटे तक लगातार जलता रहता है। यही कारण है कि शहरी ग्राहक इन्हें दीवाली के लिए खूब पसंद कर रहे हैं।

    झज्जर की मिट्टी का देशभर में डंका

    झज्जर की मिट्टी से बने दीये राजस्थान के चित्तौड़गढ़, महाराष्ट्र के थाना और उल्हासनगर, हिमाचल प्रदेश के सुंदरनगर और मंडी, गुजरात के सूरत व वापी, और पंजाब के लुधियाना, जालंधर, पटियाला, भूना सहित कई अन्य स्थानों पर भी सप्लाई किए जाते हैं।

    झज्जर के बुजुर्ग कुंभकार ज्ञानचंद पूर्व एमसी, विनोद कुमार, बबलू, हरिचंद, आजाद ने बताया कि इन राज्यों में झज्जर की मिट्टी से बने दीयों की विशेष पहचान है, क्योंकि यहां की मिट्टी में चिकनापन अधिक होने के कारण दीये ज्यादा मजबूत और चमकदार बनते हैं। उन्होंने बताया कि मिट्टी नही मिलने पर परेशानी हो रही है। मिट्टी लगातार महंगी होती जा रही है।

    मिट्टी की बढ़ रही कीमत, मिलना भी हुआ कम

    लगातार हुई बारिश ने जहां इस परंपरागत कला को झटका दिया है, वहीं बढ़ती लागत ने कुम्हारों की चिंता और बढ़ा दी है। मिट्टी की कीमतों में पिछले नौ महीनों में करीब एक हजार रुपये प्रति ट्राली की बढ़ोतरी हुई है। अब एक ट्राली मिट्टी लगभग 4700 रुपये में मिल रही है।

    ऊपर से बिजली, तेल और मजदूरी के बढ़े खर्च ने दीयों के निर्माण को और महंगा बना दिया है। जितेंद्र उर्फ जैकी कहते हैं, सरकार माटी कला को बढ़ावा देने के दावे तो करती है, पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है। कुम्हारों को न तो कोई विशेष सहायता मिलती है, न ही बिक्री के लिए स्थायी मंच। पहले से ही मिट्टी कला विलुप्त होने के कगार पर है, ऐसे में मौसम ने हमें और गहरे जख्म दिए हैं। इनमें से अधिकांश परिवार साल भर में दीवाली का सीजन ही सबसे अधिक कमाई का समय मानते हैं। लेकिन इस बार नमी, बारिश और मिट्टी की किल्लत ने उनकी उम्मीदों को झटका दिया है।