Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अब शहरी निकायों में भी मेयर और चेयरपर्सन के पतियों का हस्तक्षेप खत्म होगा, मानवाधिकार आयोग ने मांगी रिपोर्ट

    Updated: Fri, 30 May 2025 04:42 PM (IST)

    नारनौल से खबर है कि अब शहरी निकायों में भी मेयर और चेयरपर्सन के पतियों का हस्तक्षेप समाप्त होगा। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में एक शिकायत पर संज्ञान लेते हुए पंचायती राज मंत्रालय से रिपोर्ट मांगी है। शिकायतकर्ता सुशील वर्मा ने शहरी निकायों को भी प्रस्तावित कानून में शामिल करने की मांग की है ताकि महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिल सके और मेयर पति की संस्कृति खत्म हो।

    Hero Image
    अब महिला सरपंच पति की तरह शहरी मेयर और चेयरपर्सन के पति की चौधर खतरे में।

    बलवान शर्मा, नारनौल। सरपंच पति की तरह अब शहरी मेयर और चेयरपर्सन पति की चौधर जाने वाली है। महिला सशक्तिकरण में बाधा बन रहे इन पतियों के पंचायती राज में ही नहीं, बल्कि शहरी सरकार में भी हस्तक्षेप अब कानूनी अपराध की श्रेणी में लाए जाने की मांग उठने लगी है। साथ ही विधायक और सांसद के पति भी बतौर प्रतिनिधि सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने सामाजिक कार्यकर्ता व हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य सुशील वर्मा द्वारा की गई शिकायत पर संज्ञान लिया है। इसमें उन्होंने ग्राम पंचायतों में महिला सरपंचों की तरह शहरी स्थानीय निकायों की मेयर और चेयरपर्सन की जगह उनके पति या पुरुष रिश्तेदारों द्वारा कार्य करने को भी प्रस्तावित कानून में शामिल करने की मांग की थी।

    शिकायत में उठाया गया विषय तर्कपूर्ण और एक्शन लेने योग्य

    आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह माना है कि शिकायत में उठाया गया विषय तर्कपूर्ण और एक्शन लेने योग्य है। इसकी अनुपालना में आयोग की कानून शाखा ने पंचायती राज मंत्रालय को नोटिस भेजकर दो सप्ताह में रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।

    गौरतलब है कि ग्राम पंचायतों में महिला सरपंचो की जगह उनके पति या पुरुष रिश्तेदारों के कार्य करने की बढ़ती हुई प्रवर्ति को रोकने के लिए केंद्र सरकार एक कानून का मसौदा तैयार करवा रही है जिसमें महिला की जगह उनके पति या पुरुष रिश्तेदारों के कार्य करने पर सख्त कानूनी कार्रवाई का प्रावधान होगा।

    प्रस्तावित कानून का मसौदा तैयार किया जा रहा

    सुप्रीम कोर्ट के आदेश (डब्ल्यूपी(सी) नंबर. 615/2023) की अनुपालन में केंद्र सरकार ने सितंबर 2023 में एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी, जिसे देश भर में महिलाओं के लिए आरक्षित ग्राम पंचायतों की धरातल पर वास्तविकता का पता लगाने को कहा गया था। समिति ने इसी वर्ष फरवरी में केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। समिति की सिफारशों के आधार पर पंचायती राज मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित कानून का मसौदा तैयार किया जा रहा है।

    सुशील वर्मा ने प्रस्तावित कानून में शहरी स्थानीय निकायों (नगर निगम, नगर परिषद् और नगर पालिकाओं) को भी शामिल करने की मांग की थी, जहां महिलाओं के स्थान पर उनके पति या पुरुष रिश्तेदार सत्ता का प्रयोग करते हैं।

    एनएचआरसी ने दिए दो सप्ताह में रिपोर्ट देने के निर्देश

    27 मई 2025 को एनएचआरसी की बेंच, जिसकी अध्यक्षता मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो द्वारा की गई। उन्होंने इस शिकायत पर धारा 12, मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अंतर्गत संज्ञान लिया है। आयोग ने पंचायती राज मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव को नोटिस जारी कर इस शिकायत की जांच कर दो सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

    "राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का यह मानना है कि भारतीय लोकतंत्र में प्राक्सी प्रतिनिधित्व का कोई स्थान नहीं है। हमारे संज्ञान में यह विषय कई बार आया है कि गांवो में चुनी हुई महिलाओं की जगह उनके पति या पुरुष रिश्तेदार पंचायतों की अध्यक्षता करते हैं। बैठकों में भाग लेते हैं। यहां तक कि 15 अगस्त को तिरंगा भी फहराते हैं। ऐसा करना चुनी हुई महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों पर एक कठोर प्रहार है। इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार एक कानून बनाने की तैयारी कर रही है। इसमें महिलाओं के संवैधानिक और प्रशासनिक अधिकारों का हनन करने वाले पुरुष रिश्तेदारों के लिए सख्त सजा का प्रावधान होगा। प्रस्तुत शिकायत में शहरी स्थानीय निकायों को भी प्रस्तावित कानून के दायरे में लाने की मांग रखी गई है। हमने सम्बंधित मंत्रालय को नोटिस जारी करके दो सप्ताह में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।" - प्रियंक कानूनगो, सदस्य, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

    शिकायतकर्ता की प्रतिक्रिया

    “कई शहरों में भी चुनी हुई महिला के स्थान पर उनके पति या पुरुष रिश्तेदार "चेयरपर्सन प्रतिनिधि" बनकर प्राक्सी तौर पर प्रशासनिक कार्य करते हैं। पार्षदों और अधिकारियों की बैठक की अध्यक्ष्ता करते हैं। यहां तक कि एक शहर में तो महिला दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में महिला चेयरपर्सन के स्थान पर उनके पति बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। यह प्रवर्ति चिंताजनक है। मुझे खुशी है कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने इस विषय पर संज्ञान लिया है ।”- सुशील वर्मा, पूर्व सदस्य. हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग