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    हरियाणा सरकार की मुआवजा नीति को HC में चुनौती, 33 केवी बिजली लाइनें बाहर रखने पर नोटिस

    Updated: Thu, 11 Sep 2025 10:24 PM (IST)

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया है जिसमें 33 केवी बिजली लाइनों के लिए मुआवजा न देने की नीति को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि बिना मुआवजा दिए निजी भूमि का अधिग्रहण संविधान के विरुद्ध है। याचिका में 66 केवी और उससे ऊपर की लाइनों के लिए मुआवजा देने की नीति पर सवाल उठाया गया है।

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    हरियाणा सरकार की मुआवजा नीति को हाईकोर्ट में चुनौती (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह नोटिस उस याचिका पर जारी किया गया है, जिसमें राज्य सरकार की उस नीति को चुनौती दी गई है, जिसके तहत केवल 66 केवी और उससे ऊपर की हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों पर लगे टावरों और राइट आफ वे के लिए ही मुआवजे का प्रविधान किया गया है।

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    सरकार की इस नीति में 33 केवी बिजली लाइनों को पूरी तरह बाहर रखा गया है। याचिका में कहा गया है कि बिना मुआवजा दिए निजी भूमि का अधिग्रहण संविधान द्वारा संरक्षित संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन है।

    गुल्लारपुर (जिला करनाल) निवासी अनिल सिंह द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया।

    याचिकाकर्ता का आरोप है कि उनकी कृषि भूमि पर उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड ने आठ एम के 6 टावर खड़े कर 33 केवी बिजली लाइनें बिछा दीं, वह भी बिना किसी पूर्व सूचना, सहमति या मुआवजा दिए। इससे भूमि की उपयोगिता और बाजार मूल्य पर भारी असर पड़ा है। साथ ही खेती और निर्माण कार्य पर भी रोक लग गई है।

    याचिका में कहा गया है कि 10 जुलाई 2024 को हरियाणा ऊर्जा विभाग द्वारा जारी आदेश के तहत केवल 66 केवी और उससे ऊपर की लाइनों के लिए ही मुआवजा देने की व्यवस्था की गई है। इससे 33 केवी लाइनों से प्रभावित किसान और भूमिधारक मुआवजे से वंचित हो जाते हैं। याचिकाकर्ता ने इसे मनमाना, असंवैधानिक और अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 300-ए का उल्लंघन बताया है।

    याचिकाकर्ता ने दलील दी कि 66 केवी और 33 केवी लाइन से प्रभावित भूमिधारकों की स्थिति समान है, क्योंकि दोनों ही मामलों में भूमि के उपयोग का नुकसान, मूल्य में कमी और अन्य पाबंदियां समान रूप से लगती हैं। ऐसे में केवल वोल्टेज स्तर के आधार पर भेदभाव करना अनुचित और तर्कहीन है। उन्होंने कहा कि बिना मुआवजा दिए निजी भूमि का अधिग्रहण संविधान द्वारा संरक्षित संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन है।

    याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि अधिसूचना में जिन कानूनी नियमों (बिजली अधिनियम 2003 की धारा 67 व 68, भारतीय विद्युत अधिनियम 1910 की धाराएं 12-18 और टेलीग्राफ अधिनियम 1885 की धाराएं 10 व 16) का हवाला दिया गया है, उनमें कहीं भी वोल्टेज के आधार पर मुआवजा देने की सीमा तय नहीं की गई है। इन सभी कानूनों में साफ कहा गया है कि बिजली कार्यों से होने वाले नुकसान या क्षति के लिए प्रभावित पक्ष को मुआवजा दिया जाएगा।

    हाईकोर्ट से प्रार्थना की गई है कि राज्य सरकार की इस अधिसूचना की उस धारा को रद किया जाए, जिसमें 33 केवी लाइनों को बाहर रखा गया है। साथ ही सरकार को निर्देश दिए जाएं कि उनकी भूमि पर लगे 33 केवी टावरों और राइट आफ वे के लिए मुआवजा दिया जाए। याचिका में मांग की गई है कि मुआवजा कम से कम उसी सिद्धांत पर दिया जाए जो राज्य की नीति में 66 केवी लाइनों के लिए तय किया गया है।