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    Haryana News: हत्यारोपित सिपाही बरी, फिर भी बहाल नहीं हो सकेगी नौकरी

    Updated: Sun, 07 Sep 2025 10:16 AM (IST)

    पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा पुलिस के पूर्व कांस्टेबल सिकंदर की सेवा में बहाली की याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि उसकी बर्खास्तगी कानूनी रूप से उचित थी। जस्टिस जगमोहन बंसल ने कहा कि अदालत का हस्तक्षेप तभी संभव है जब प्रक्रिया में कमी हो। सिकंदर को 2017 में दोषी ठहराया गया था जिसके बाद उसे बर्खास्त कर दिया गया था।

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    पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का आदेश (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा पुलिस के एक पूर्व कॉन्स्टेबल सिकंदर की सेवा में बहाली की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसकी बर्खास्तगी कानूनी रूप से उचित थी और इसमें हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है।

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    जस्टिस जगमोहन बंसल की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुशासनात्मक कार्यवाही में अदालत की सीमित भूमिका होती है और तभी दखल दिया जा सकता है जब प्रक्रिया में कमी हो या सजा मनमानी लगे। कुरुक्षेत्र निवासी सिकंदर 28 अक्टूबर, 2000 को हरियाणा पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भर्ती हुआ था।

    उसके खिलाफ 15 दिसंबर, 2015 को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत एफआइआर दर्ज की गई थी। आठ फरवरी, 2016 को उसकी गिरफ्तारी हुई और 16 फरवरी को उसे निलंबित कर दिया गया। बाद में आठ अगस्त, 2017 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कुरुक्षेत्र ने उसे दोषी करार देते हुए सजा सुनाई। इसके आधार पर 18 दिसंबर, 2017 को उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

    सिकंदर ने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ अपील की, जो 31 मई, 2018 को खारिज हो गई। उसकी पुनर्विचार याचिका भी चार मई, 2022 को नामंजूर कर दी गई। हालांकि, 21 अप्रैल, 2025 को हाई कोर्ट ने उसकी दोषसिद्धि को समझौते के आधार पर रद कर दिया। इसके बाद सिकंदर ने अपनी नौकरी में बहाली की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की।

    हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता को आइपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत दोषी ठहराया गया था और उसे 10 साल की कठोर कैद की सजा सुनाई गई थी। इसके अलावा, धारा 325 (गंभीर चोट पहुंचाने) के तहत भी उसे तीन साल की सजा दी गई थी।

    अदालत ने माना कि उसकी दोषसिद्धि बाद में समझौते पर रद हुई थी, न कि मामले की मेरिट पर। ऐसे में यह तर्क मान्य नहीं हो सकता कि सजा रद होने के बाद उसे सेवा में बहाल कर दिया जाए।

    हाई कोर्ट ने कहा अनुशासनात्मक कार्यवाही में अदालत की सीमित भूमिका, तभी दखल दिया जा सकता है जब प्रक्रिया में कमी हो l खंडपीठ ने कहा कि बर्खास्तगी कानूनी रूप से उचित थी और इसमें हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। 

    इस नियम के दायरे में मिला मामला कोर्ट ने यह भी कहा कि पंजाब पुलिस नियम, 1934 (जो हरियाणा में भी लागू होता है) के नियम 16.2(2) के अनुसार, यदि किसी पुलिसकर्मी को एक महीने से अधिक की कठोर कैद की सजा मिलती है, तो उसकी बर्खास्तगी अनिवार्य है। चूंकि सिकंदर का मामला इसी नियम के दायरे में आता है, इसलिए उसकी बर्खास्तगी पूरी तरह वैध है।

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