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    पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने की पूर्व जज शिवा शर्मा की अनिवार्य सेवानिवृत्ति रद्द, क्या था पूरा मामला?

    Updated: Tue, 16 Sep 2025 08:29 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने सिरसा के पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश शिवा शर्मा की अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश रद्द कर दिया। अदालत ने पूर्व जज आलोक सिंह की आलोचना करते हुए कहा कि उनकी प्रतिकूल टिप्पणियां बिना किसी जांच के थीं। कोर्ट ने हरियाणा सरकार के फैसले को अन्यायपूर्ण बताते हुए शर्मा को सभी परिणामी लाभ देने का आदेश दिया।

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    हाई कोर्ट ने रद्द किया न्यायाधीश शिवा शर्मा की सेवानिवृत्ति का आदेश (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में सिरसा के पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश डा. शिवा शर्मा की अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश रद कर दिया है। अदालत ने कहा कि यह निर्णय न केवल ठोस साक्ष्यों के अभाव में लिया गया, बल्कि पूरी प्रक्रिया न्यायसंगत भी नहीं थी।

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    चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के पूर्व जज आलोक सिंह की कड़ी आलोचना की। आलोक सिंह उस समय प्रशासनिक जज थे, जिन्होंने शिवा शर्मा की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में अंतिम पांच महीनों के दौरान प्रतिकूल टिप्पणियां दर्ज की थीं।

    खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां किसी लिखित शिकायत या प्रमाणित जांच पर आधारित नहीं थीं, बल्कि केवल अप्रमाणित आरोपों और सामग्रियों पर टिकाई गई थीं। इन्हीं टिप्पणियों के आधार पर हरियाणा सरकार ने पांच सितंबर 2011 को शिवा शर्मा को 58 वर्ष की आयु में "सार्वजनिक हित" का हवाला देते हुए जबरन सेवानिवृत्त कर दिया था। जबकि इससे पहले अपने पूरे 30 वर्षों के सेवाकाल में उन्हें लगातार "गुड" और "वेरी गुड" की ग्रेडिंग मिलती रही थी।

    हाई कोर्ट ने कहा कि कोई भी अधिकारी, जिसने 30 साल तक बेदाग सेवाएं दी हों, उसकी अचानक पांच महीनों में "ईमानदारी संदिग्ध" कैसे हो सकती है? इसे न्याय के सिद्धांतों के विपरीत और दुर्भावनापूर्ण करार देते हुए कोर्ट ने माना कि प्रशासनिक जज को कम से कम गुप्त सतर्कता जांच करानी चाहिए थी और संबंधित अधिकारी से स्पष्टीकरण लेना चाहिए था।

    यदि प्रथम दृष्टया आरोप सही साबित होते, तभी नियमित विभागीय कार्रवाई होती। लेकिन यहां “शार्टकट” अपनाते हुए सीधे उन्हें जबरन सेवानिवृत्त कर दिया गया। खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही सार्वजनिक हित में अनिवार्य सेवानिवृत्ति को सजा नहीं माना जाता, लेकिन यह कदम तभी उचित है, जब पूरे सेवा रिकार्ड का गहन परीक्षण किया जाए।

    केवल पांच महीनों की प्रतिकूल रिपोर्ट को आधार बनाकर लिया गया फैसला न्यायोचित नहीं है। हाईकोर्ट ने शिवा शर्मा की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को निरस्त करते हुए आदेश दिया कि उन्हें सभी परिणामी लाभ दिए जाएंगे, जिनमें वरिष्ठता, वेतन निर्धारण, पेंशन निर्धारण और बकाया पेंशन शामिल हैं।

    जिस अवधि में वे सेवा से बाहर रहे, उसका वेतन उन्हें नहीं मिलेगा। शिवा शर्मा ने 1981 में हरियाणा सिविल सेवा (न्यायिक शाखा) में बतौर सब जज करियर की शुरुआत की थी। पदोन्नति पाते हुए वे 2009 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश बने। अपने 30 साल लंबे कार्यकाल में अधिकतर वर्षों में उन्हें “गुड” और “वेरी गुड” की सेवा रेटिंग मिली।

    2003 में उन्हें एक बार निलंबित भी किया गया था, लेकिन अगले ही वर्ष बहाल कर दिया गया और विभागीय कार्रवाई समाप्त कर दी गई। विवाद की असली शुरुआत 2010-11 की एसीआर से हुई, जिसमें अंतिम पांच महीनों के लिए अचानक उनकी ईमानदारी पर प्रश्नचिह्न लगा दिया गया था।