मेथी के बीज लेकर गया था, अंतरिक्ष में अंकुरित किए, Young Scientist शुभांशु ने आखिर क्यों कही यह बात
युवा वैज्ञानिक शुभांशु शुक्ला ने इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल में अंतरिक्ष में मेथी के बीज अंकुरित करने का अनुभव साझा किया। उन्होंने भारत की वैज्ञा ...और पढ़ें

इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल के भव्य उद्घाटन समारोह में शुभांशु शुक्ला का संबोधन सबसे खास रहा।
राजेश मलकानियां, पंचकूला। मैं मेथी के बीज लेकर गया था। उन्हें अंतरिक्ष में अंकुरित किया गया और माइक्रोग्रैविटी में मेथी सफलतापूर्वक उगीं। यह अनुभव दिखाता है कि जीवन को समझने और विकसित करने के अवसर अंतरिक्ष में कितने अलग और दिलचस्प होते हैं।
एक्सिओम-4 मिशन का हिस्सा रहे युवा वैज्ञानी शुभांशु शुक्ला का हंसते हुए यह जवाब था एक बच्चे के सवाल पर। बच्चे ने उत्सुकता से पूछा कि आप अंतरिक्ष में क्या लेकर गए थे और क्या हुआ?
अवसर था सेक्टर-5 स्थित दशहरा ग्राउंड में आयोजित 11वें इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल (आईआईएसएफ) का, जिसके भव्य उद्घाटन समारोह में अंतरिक्ष से लौटे शुभांशु शुक्ला का संबोधन सबसे खास रहा।
छात्रों, युवा शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों और विज्ञान-प्रेमियों से खचाखच भरे पंडाल में उन्होंने भारत की वैज्ञानिक यात्रा, भविष्य की संभावनाओं और अंतरिक्ष विज्ञान की दिशा में हो रही प्रगति पर बेहद प्रेरक विचार साझा किए।
शुभांशु शुक्ला ने अपने संबोधन की शुरुआत इस बात से की कि भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, वह केवल तकनीकी प्रगति नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की एक नई परिभाषा है।
उन्होंने कहा कि भारत अब आत्मनिर्भर बनने की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ा चुका है। हमने साबित कर दिया है कि हम अपनी क्षमताओं पर भरोसा कर के नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं। आईआईएसएफ जैसा मंच इस सोच को और मजबूत करता है।
2047 तक सैकड़ों भारतीय अंतरिक्ष में जाएंगे
एक छात्र के सवाल का जवाब देते हुए शुक्ला ने भारत के भविष्य को लेकर एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि राकेश शर्मा से लेकर उनके स्वयं तक आने में भारत को लंबा समय लगा, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
उन्होंने स्पष्ट कहा कि पहले हमें दो नाम याद थे—राकेश शर्मा और अब शायद मेरा नाम। लेकिन 2047 तक आप देखेंगे कि इतने भारतीय अंतरिक्ष में जाएंगे कि हम उनके नाम याद ही नहीं रख पाएंगे।
इतना बड़ा बदलाव आने वाला है क्योंकि हमारा अपना मानव अंतरिक्ष मिशन ‘गगनयान’ तेजी से आगे बढ़ रहा है।” उनके शब्दों ने पंडाल में मौजूद हर छात्र के मन में एक नई ऊर्जा भर दी।
डर और साहस पर दिल छू लेने वाली बात
एक महिला प्रतिभागी के ‘डर’ से जुड़े प्रश्न का जवाब देते हुए शुभांशु ने जीवन का एक बड़ा संदेश दिया। उन्होंने कहा कि डर सबको लगता है। हर नई चीज़ डर पैदा करती है। लेकिन असली स्किल यह है कि आप डर के बावजूद आगे बढ़ें। रॉकेट में बैठते समय डर नहीं लगा क्योंकि हमें हर प्रक्रिया की पूरी जानकारी थी। लेकिन जीवन के बाकी फैसलों में भी यही साहस काम आता है।
राकेश शर्मा से मिली प्रेरणा
शुक्ला ने बताया कि वे बचपन से भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री विंग कमांडर राकेश शर्मा से गहराई से प्रेरित रहे हैं। उन्होंने कहा-जब मैं छोटा था, उनकी तस्वीरें देखता था, उनके बारे में पढ़ता था। आज जब खुद अंतरिक्ष से लौटा हूं तो उनकी प्रेरणा का असर और गहरा महसूस होता है।
बच्चों को दिया सरल, लेकिन दमदार मंत्र
देश के भविष्य छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने तीन सरल आदतें अपनाने की सलाह दी। अच्छा खाना, अच्छी पढ़ाई और खेल। अगर आप यह तीन चीजें कर लेंगे तो एक दिन अंतरिक्ष तक जरूर पहुंचेंगे।
अंतरिक्ष से भारत का नजारा सबसे खूबसूरत
अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखना एक आध्यात्मिक एहसास जैसा है। जब आप बाहर से अपनी धरती को देखते हैं, तो आपका नज़रिया बदल जाता है। और भारत… वह सबसे खूबसूरत दिखता है। यह अनुभव किसी किताब या फोटो से नहीं मिल सकता।

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