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    'कागज से नहीं काम से तय हो हक', HC ने साल 2000 से ड्राइवर का वेतन जारी करने के दिए आदेश, सरकार की अपील की खारिज

    Updated: Wed, 17 Sep 2025 02:01 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार की अपील खारिज कर प्रताप सिंह के पक्ष में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि प्रताप सिंह को वर्ष 2000 से ड्राइवर का वेतन मिले क्योंकि वे उसी तारीख से ड्राइवर की ड्यूटी निभा रहे थे। एक अन्य मामले में हाई कोर्ट ने एचपीजीसी की 2004 की पदोन्नति नीति के तहत आइएमइ डिग्री पर आधारित पदोन्नतियों को अवैध ठहराया

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    पंजाब हरियाणा HC ने साल 2000 से ड्राइवर का वेतन जारी करने के दिए आदेश (File Photo)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार की अपील खारिज करते हुए राज्य कर्मचारी प्रताप सिंह के पक्ष में फैसला सुनाया है।

    अदालत ने कहा कि प्रताप सिंह को वर्ष 2000 से ड्राइवर का वेतन दिया जाए, क्योंकि उसी तारीख से वे वास्तविक रूप से ड्राइवर की ड्यूटी निभा रहे थे।

    प्रताप सिंह को 1987 में बेलदार पद पर नियुक्त किया गया था। 1993 में उनकी सेवाएं नियमित हुईं और 2000 में वे ट्रक क्लीनर के तौर पर दोबारा नियुक्त हुए, लेकिन 26 सितंबर 2000 से लगातार ड्राइवर की जिम्मेदारी निभाते रहे।

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    कागजी आदेशों से नहीं, काम से तय हो हक

    विभाग ने उन्हें कागजों पर जून 2009 में ही ड्राइवर बनाया। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी का हक उसके वास्तविक काम से तय होता है, न कि सिर्फ कागजी आदेशों से।

    अदालत ने हरियाणा सरकार की दूसरी अपील खारिज कर दी और आदेश दिया कि प्रताप सिंह को 2000 से वेतन का अंतर भुगतान किया जाए।

    इसी के साथ एक अन्य मामले में हाई कोर्ट ने एचपीजीसी की 2004 की पदोन्नति नीति के तहत आइएमइ (इंस्टीट्यूशन आफ मैकेनिकल इंजीनियर्स) की डिग्री पर आधारित पदोन्नतियों को अवैध ठहराया। जस्टिस हरप्रीत सिंह बरार ने कहा कि आइएमइ सर्टिफिकेट तीन वर्षीय नियमित इंजीनियरिंग डिप्लोमा के बराबर नहीं है।

    अदालत ने याचिकाकर्ताओं की वरिष्ठता बहाल की और एचपीजीसी को सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले की गलत व्याख्या करने के लिए फटकार लगाई। अदालत ने आदेश दिया कि आइएमइ प्रमाणपत्र धारकों की पदोन्नति वापस ली जाए और वास्तविक डिप्लोमा धारकों को लाभ दिया जाए।