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    पति अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए जीवित रहने तक बाध्य, हाईकोर्ट ने किया स्पष्ट

    Updated: Mon, 25 Aug 2025 07:36 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि आर्थिक रूप से सक्षम पति को पत्नी के जीवित रहने तक उसका भरण-पोषण करना होगा। कोर्ट ने 86 वर्षीय व्यक्ति को अपनी 77 वर्षीय पत्नी को 15 हजार रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने के आदेश को बरकरार रखा। अदालत ने पति के इस तर्क को खारिज कर दिया कि पत्नी अपने बेटों से सहायता मांग सकती है।

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    हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखा।

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से सक्षम पति अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए जीवित रहने तक बाध्य है। इस टिप्पणी के साथ जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल ने एक पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखा है। पारिवारिक अदालत ने सेना से सेवानिवृत्त 86 वर्षीय व्यक्ति को निर्देश दिया था कि वह अपनी 77 वर्षीय पत्नी को 15 हजार रुपये मासिक अंतरिम गुजारा भत्ता दे।

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    80 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति के वकील ने नारनौल स्थित पारिवारिक न्यायालय द्वारा 30 अप्रैल को पारित आदेश को चुनौती दी थी। उन्होंने दलील दी कि पति एक लकवाग्रस्त और असहाय व्यक्ति है, जिसकी पत्नी की देखभाल उसके बेटे कर रहे हैं। अदालत को बताया गया कि बेटे अपनी मां का पक्ष ले रहे हैं और उसकी देखभाल करने से मना कर रहे हैं।

    यह भी दलील दी गई कि पारिवारिक न्यायालय ने इस आधार पर 15 हजार रुपये प्रति माह का अंतरिम गुजारा भत्ता निर्धारित किया था, क्योंकि उन्हें 42,750 रुपये पेंशन मिल रही थी और वे गांव में ढाई एकड़ जमीन के मालिक भी थे।

    हालांकि गांव के सरपंच का एक प्रमाण पत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया था जिससे पता चलता था कि वे शारीरिक रूप से चलने-फिरने में असमर्थ हैं और उनकी सारी जमीन और संपत्ति बेटों के कब्जे में है। प्रस्तुतियों पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि यह निर्विवाद है कि 80 वर्षीय व्यक्ति को 42 हजार 50 रुपये पेंशन मिल रही थी और भूमि उनकी ही थी, भले ही वह उनके बेटों के कब्जे में थी।

    न्यायालय ने कहा कि पक्षकारों की जीवन स्थिति, पत्नी की उचित आवश्यकताएं जिनमें भोजन, वस्त्र, आश्रय, शिक्षा, चिकित्सा उपचार आदि शामिल हैं, पति की आय, जो अच्छी पेंशन पाने के अलावा कांति गांव में 2.5 एकड़ जमीन का मालिक भी है।

    इन सब बातों को  ध्यान में रखते हुए 15 हजार रुपये प्रतिमाह के अंतरिम भरण-पोषण के अलावा 11 हजार रुपये के मुकदमेबाजी खर्च का प्रविधान अत्यधिक नहीं लगता है। इसमें आगे कहा गया कि अंतरिम भरण-पोषण राशि का आकलन उचित रूप से पक्षों की स्थिति के अनुरूप किया गया है और इसलिए इसमें हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है। परिणामस्वरूप, याचिका खारिज कर दी गई।