हरियाणा: नए श्रम कानूनों के विरोध में उतरे मजदूर और कर्मचारी संगठन, श्रमिकों के अधिकार घटाने का आरोप
मजदूर और कर्मचारी संगठनों ने नए श्रम कानूनों के खिलाफ 26 नवंबर को जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन का ऐलान किया है। कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष सुभाष लांबा ने कहा कि नए कानून मजदूरों को गुलाम बनाने का रास्ता खोलते हैं। फिक्स टर्म नौकरी से ठेके की नौकरी स्थायी हो जाएगी।

नए श्रम कानूनों के विरोध में उतरे मजदूर और कर्मचारी संगठन। सांकेतिक फोटो
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। नए श्रम कानूनों के विरोध में मजदूर और कर्मचारी संगठनों ने 26 नवंबर को सभी जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन करने की घोषणा की है। अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष लांबा और मजदूर संगठन सीटू के महासचिव जयभगवान ने नए श्रम कानूनों को मजदूर वर्ग पर हमला बताते हुए कहा कि इससे पूंजीपतियों और कारपोरेट सेक्टर के लिए मजदूरों को गुलाम बनाने का रास्ता साफ हो गया है।
कर्मचारी नेताओं ने कहा कि फिक्स टर्म नौकरी के नाम पर सरकार ने कच्ची और ठेके की नौकरी का स्थाई प्रबंध कर दिया है। 20 मजदूरों तक के संस्थानों को श्रम कानूनों से बाहर कर दिया है। 300 मजदूरों तक के संस्थानों को बिना सरकार की अनुमति के कभी भी बंद किया जा सकता है और मजदूरों की छंटनी की जा सकती है। काम के घंटे आठ से बढ़ाकर 12 घंटे करने का प्रविधान किया गया है।
यूनियन बनाने और हड़ताल करने के अधिकार पर इन लेबर कोड्स में अघोषित प्रतिबंध लगाया गया है। जिला स्तर पर श्रम न्यायालयों को खत्म किया गया है और वेरीफिकेशन का अधिकार लेबर विभाग से छीन लिया गया है। न्यूनतम वेतन के निर्धारण के पुराने कानूनी प्रविधानों को कमजोर करते हुए फ्लोर न्यूनतम वेतन की अवधारणा को पेश किया गया है।
लांबा ने बताया कि केंद्र सरकार ने 29 श्रम कानूनों को खत्म कर वर्ष 2020 में चार लेबर कोड्स पारित किए थे। तभी से देश के मजदूर और कर्मचारी संगठन इन्हें रद करवाने के लिए लगातार आंदोलन कर रहे हैं। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने ईज टू डूइंग बिजनेस के नाम पर पूंजीपतियों के हित में मजदूरों के अधिकारों को समाप्त करने वाले इन कोड्स को 21 नवंबर से लागू कर दिया है।
समान काम समान वेतन का पहले से ही प्रविधान है और महिलाओं के लिए प्रसूति अवकाश का भी। गीग वर्कर्स या प्लेटफार्म वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा व अन्य लाभों बारे भ्रम फैलाया जा रहा है। इसी प्रकार से ग्रेच्युटी का अधिकार पांच साल से घटाकर एक साल करने की बात कही गई है। जब नौकरी ही फिक्स टर्म है तो ग्रेच्युटी का अधिकार ही बेमानी है। देश के श्रमिक और कर्मचारी संगठन इसके प्रतिरोध में 26 नवंबर को बड़ी कार्यवाही करेंगे।

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