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    भारी बारिश से हरियाणा के 188 गांवों में फसलें डूबीं, किसानों के लिए इस दिन तक खुला रहेगा ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल

    Updated: Thu, 21 Aug 2025 08:15 AM (IST)

    पानीपत में यमुना का जलस्तर पहाड़ों पर बारिश के कारण बढ़ गया है जो सुबह 45352 क्यूसेक से शाम को 54102 क्यूसेक हो गया। वहीं कुरुक्षेत्र के इस्माईलाबाद में मारकंडा नदी का तटबंध दूसरी बार टूट गया जिससे खेतों में पानी भर गया। अंबाला के मुलाना में मारकंडा का जलस्तर भी बढ़ा।

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    भारी बारिश से हरियाणा के 188 गांवों में फसलें डूबीं (जागरण फोटो)

    जागरण टीम, पानीपत। पहाड़ों पर वर्षा से बुधवार को यमुना के बहाव में मामूली वृद्धि हुई। सुबह 10 बजे 45352 क्यूसेक था। 

    शाम को पांच बजे बढ़कर 54102 क्यूसेक पर पहुंच गया। इस दौरान यमुना नदी में 39582 क्यूसेक, पश्चिमी यमुना नहर में 13010 व पूर्वी यमुना नहर में 1510 क्यूसेक रहा है। उधर, कुरुक्षेत्र के इस्माईलाबाद के नैसी गांव के निकट बुधवार की सुबह चार बजे मारकंडा नदी का तटबंध दूसरी बार टूट गया। एक महीने पहले भी तटबंध टूट गया था।

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    दो दिनों से नदी में 27 हजार क्यूसेक पानी बह रहा था। ठसका मीरां जी गांव के पास लगभग 700 एकड़ फसल डूब गई। किसानों ने आठ घंटे के बाद तटबंध को पाट दिया।

    तटबंध का लगभग 30 फीट का हिस्सा बह गया। अंबाला के मुलाना में मंगलवार की देर रात करीब 11 बजे मारकंडा का जलस्तर बढ़कर 8.8 फीट करीब 41 हजार क्यूसेक तक पहुंच गया।

    कुरुक्षेत्र के गांव टबरा, मडाडों, शेरगढ़, जलबेहड़ा, जखवाला, जैतपुरा और जंधेड़ी तक तटबंध टूटने की सूचना पहुंचाई। पिहोवा गुरुद्वारा साहिब ने मशीन भेजी। किसानों ने ट्रैक्टरों और जेसीबी के माध्यम से टूटे हुए हिस्से तक मिट्टी पहुंचाई।

    किसानों ने खाली कट्टों को मिट्टी से भरा और उन कट्टों से टूटे हिस्से में दीवार खड़ी की। इस कार्य में जनसामान्य की भागीदारी देखी गई। सिंचाई विभाग की टीम कई घंटों तक मौके पर नहीं पहुंचा, लेकिन किसानों ने हिम्मत नहीं हारी।

    मारकंडा नदी का पानी खेतों के रास्ते से आबादी की ओर बढ़ रहा है। सड़कों पर पुलिया नहीं होने के कारण पानी सड़कों के ऊपर से गुजर रहा है, जिससे नुकसान बढ़ रहा है।

    सोम नदी की गाद के नीचे दबी 40 गांव के किसानों की मेहनत

    सोम नदी हर साल उफान पर आते ही यमुनानगर के उपमंडल व्यासपुर व छछरौली क्षेत्र के किसानों के खेतों को रेत और गाद से भर देती है। 40 से ज्यादा गांवों के किसान लगातार नुकसान झेल रहे हैं। अधूरी पड़ी तटबंध परियोजनाओं और आधे-अधूरे बचाव कार्यों ने किसानों की मुसीबत और बढ़ा दी है।