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    आदिबद्री से शुरू होगा अंतरराष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव, गीता जयंती महोत्सव की तर्ज पर लगेगा सरस मेला, जानिए महत्व

    By Rajesh KumarEdited By:
    Updated: Sun, 19 Dec 2021 10:00 AM (IST)

    तीन से पांच फरवरी तक सरस्वती महोत्सव मनाया जाएगा। तीन फरवरी को आदिबद्री में 108 कुंडीय हवन किया जाएगा। इसमें मुख्यमंत्री मनोहर लाल और केंद्र के जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत सहित कई मंत्री शामिल होंगे। चार फरवरी को पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ में अंतरराष्ट्रीय सरस्वती सेमिनार किया जाएगा।

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    तीन से पांच फरवरी तक सरस्वती महोत्सव मनाया जाएगा।

    कुरुक्षेत्र, [जगमहेंद्र सरोहा]। अंतरराष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव-2021 अगले वर्ष फरवरी के पहले सप्ताह में मनाया जाएगा। तीन दिवसीय महोत्सव का आगाज आदिबद्री यमुनानगर से होगा और सरस्वती नगरी पिहोवा में समापन होगा। पहली बार अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव की तर्ज पर पिहोवा सरस्वती तीर्थ पर सरस मेला लगाया जाएगा। हरियाणा सरस्वती हैरिटेज विकास बोर्ड ने महोत्सव को लेकर तैयारियां की शुरू दी हैं। 

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    सरस्वती का उद्गम स्थल आदिबद्री माना जाता है। माना जाता है कि सरस्वती नदी के किनारे ऋषि मुनियों ने तपस्या की थी। इसके प्रमाण आज भी मिल रहे हैं। कई वर्षों से हरियाणा सरस्वती हैरिटेज विकास बोर्ड अंतरराष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव मना रहा है। इस बार महोत्सव तीन से पांच फरवरी को मनाया जाएगा। बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमच ने बताया कि सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं का सहयोग लिया जाएगा। 

    आदिबद्री में 108 कुंडीय हवन होंगे 

    बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमच ने बताया कि तीन फरवरी को आदिबद्री में 108 कुंडीय हवन किया जाएगा। इसमें मुख्यमंत्री मनोहर लाल और केंद्र के जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत सहित कई मंत्री शामिल होंगे। चार फरवरी को पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ में अंतरराष्ट्रीय सरस्वती सेमिनार किया जाएगा। पांच फरवरी को पिहोवा में सरस्वती तीर्थ पर 108 कुंडीय हवन किया जाएगा। यहां सरस मेला इस बार आकर्षण का केंद्र होगा। 

    15वीं शताब्दी से पहले बहने के मिले प्रमाण 

    सेंटर आफ एक्सीलेंस फार रिसर्च आन सरस्वती रिवर के निदेशक प्रो. एआर चौधरी ने बताया कि सरस्वती नदी आदिबद्री यमुनानगर से निकली थी और कुरुक्षेत्र व पिहोवा होते हुए आगे गई है। 15वीं शताब्दी के पहले तक सरस्वती बहने के प्रमाण मिले हैं। इनको चिह्नित किया गया है। सरस्वती के दूसरे बड़े प्रमाण यहां मिले तीर्थ हैं। फिरोज शाह तुगलक के समय में सरस्वती नदी को डायवर्ट करने के प्रमाण भी मिले हैं। इसके चलते एक साथ नदी का प्रवाह रुक गया था। 


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