घर से बाहर निकलने में खौफ खाते हैं चंबा के लोग, सड़कों पर दिख रहे इंसानों से ज्यादा आवारा कुत्ते
चंबा शहर में आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है जिससे लोग दहशत में हैं। जनवरी से जुलाई 2025 तक 962 लोग कुत्तों का शिकार हो चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कुत्तों को नियंत्रित करने के सख्त आदेश दिए हैं। नगर परिषद और पशुपालन विभाग मिलकर नसबंदी और टीकाकरण अभियान चलाएंगे।

जागरण संवाददाता,चंबा। चंबा की गलियों और चौकों पर अब इंसानों से ज़्यादा आवारा कुत्ते दिखाई दते है। हालात यह हैं कि लोग सुबह-शाम घर से निकलने से पहले चारों तरफ झुंडों पर नज़र दौड़ाते हैं।
जिला भर में जनवरी से जुलाई 2025 तक 962 लोग कुत्तों के शिकार बन चुके हैं यह आंकड़ा सिर्फ़ काग़ज़ पर नहीं, बल्कि ज़मीनी सच्चाई है जो आम आदमी की हड्डियों तक को कंपा देती है।
चौंकाने वाली बात यह है कि ज़िला प्रशासन और नगर परिषद के पास अब तक यह भी साफ़ आँकड़ा नहीं है कि चंबा शहर और ज़िले में कुल कितने आवारा कुत्ते हैं।
लोगों के लिए स्पीड ब्रेकर से ज्यादा खतरनाक आवारा कुत्ते
शहर के मुख्य द्वार भरमौर चौक से लेकर इरावती चौक और बस अड्डे तक कहीं भी निकल जाइए हर गली, हर मोड़ पर झुंड बनाकर बैठे ये कुत्ते अब आम जनता के लिए स्पीड ब्रेकर से ज़्यादा खौफनाक खतरा बन चुके हैं। आए दिन लोग गिरते हैं, बच्चे डर के मारे स्कूल जाने से कतराते हैं और बुजुर्ग शाम ढलते ही घरों में दुबक जाते हैं।
मगर जिम्मेदार नगर परिषद सिर्फ बैठकों और काग़ज़ी योजनाओं तक सीमित रहे। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस मुद्दे पर तल्ख़ रुख अपनाया है। अदालत ने साफ़ कहा है अब वक्त आ गया है कि सड़कों पर खुलेआम घूमते और हमला करने वाले कुत्तों पर तुरंत नियंत्रण किया जाए।
नसबंदी और एंटी-रेबीज़ टीकाकरण तो होगा ही, लेकिन हिंसक और रेबीज़ संक्रमित कुत्तों को आबादी वाले इलाकों में किसी हाल में नहीं छोड़ा जाएगा। साथ ही, कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि सड़कों पर कहीं भी कुत्तों को खाना खिलाना अपराध माना जाएगा।
क्यों हल नहीं हो रहा आवारा कुत्तों का समस्या?
अब नगर परिषदों को मजबूरी में ही सही, फीडिंग ज़ोन और शेल्टर होम बनाने की दिशा में कदम उठाने होंगे। लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या चंबा नगर परिषद इन आदेशों को अमल में ला पाएगी? क्योंकि आज तक की तस्वीर यह है कि कभी इन्हें पकड़कर जंगलों की ओर छोड़ा गया, और अगले ही दिन वही कुत्ते फिर शहर की गलियों में आ धमके।
नतीजा यह हुआ कि समस्या जस की तस खड़ी है और जनता अपनी जान जोखिम में डालकर रोज़ाना घर से निकलने को मजबूर है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अब यह सिर्फ़ कुत्तों की नसबंदी या टीकाकरण का मामला नहीं रहा, बल्कि यह सीधे-सीधे जन सुरक्षा का सवाल है।
खासकर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग इस खौफ के साए में जी रहे हैं। जब हिमाचल प्रदेश में 76 हज़ार से अधिक आवारा कुत्तों की गिनती सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है, तो आखिर चंबा जिला अपने ही आंकड़े तक क्यों तैयार नहीं कर पाया?
क्या जमीनी कार्रवाई कर पाएगा नगर परिषद?
कुत्तों के काटने के बढ़ते मामलों के बीच नगर परिषद अब पशुपालन विभाग के साथ बैठक बुला रही है। लेकिन जनता का भरोसा बैठकों पर नहीं, ज़मीनी कार्रवाई पर है। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब चंबा नगर परिषद की जिम्मेदारी पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है।
अगर इस बार भी आधे-अधूरे कदम उठे, तो यह सिर्फ़ नाकामी नहीं होगी बल्कि जनता के साथ सीधा खिलवाड़ होगा। अब देखना यह है कि चंबा में आवारा कुत्तों के खिलाफ शुरू होने वाली यह जंग, जनता को राहत देगी या फिर एक और अधूरी कहानी बनकर रह जाएगी।
पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ. मुंशी कपूर ने कहा 'चंबा जिला में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और डॉग-बाइट के मामलों को देखते हुए विभाग पूरी तरह सतर्क है। रेबीज़ एक घातक बीमारी है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। विभाग की ओर से नगर परिषद के साथ मिलकर जल्द ही व्यापक स्तर पर एंटी-रेबीज़ टीकाकरण और नसबंदी अभियान शुरू किया जाएगा।'
उन्होंने आगे कहा कि 'हमारी प्राथमिकता है कि किसी भी व्यक्ति की जान खतरे में न पड़े। हिंसक और संदिग्ध कुत्तों के लिए अलग शेल्टर और आइसोलेशन वार्ड बनाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है। हम जनता से अपील करते हैं कि डॉग-बाइट के किसी भी मामले में तुरंत नज़दीकी अस्पताल जाकर उपचार और टीकाकरण करवाएँ।'
नगर परिषद की अध्यक्ष नीलम नैय्यर ने भी मामले पर बयान देते हुए कहा कि 'चंबा शहर में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या वास्तव में गंभीर चिंता का विषय है। जनवरी से जुलाई तक सामने आए डॉग-बाइट मामलों ने स्थिति की गंभीरता और स्पष्ट कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का अक्षरशः पालन किया जाएगा।
नगर परिषद ने पशुपालन विभाग के साथ मिलकर नसबंदी और एंटी-रेबीज़ टीकाकरण का एक बड़ा अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है। जल्द ही शहर में फीडिंग ज़ोन भी चिन्हित किए जाएंगे और किसी को भी सड़कों पर कुत्तों को खाना खिलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
हिंसक और संदिग्ध कुत्तों के लिए अलग शेल्टर-होम की व्यवस्था की जाएगी। हमारा मकसद है कि शहरवासी सुरक्षित महसूस करें और बच्चों, महिलाओं व बुजुर्गों को डर के साए से बाहर निकाला जा सके।'
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