चीन का विस्तार तिब्बत की जलवायु के लिए संकट, स्टाकहोम सेंटर के शोध में दी गई चेतावनी; तेजी से बढ़ रही गर्मी
स्टॉकहोम सेंटर के शोध ने चेतावनी दी है कि चीन का विस्तार तिब्बत की जलवायु के लिए खतरा है। तिब्बत में तेजी से बढ़ती गर्मी पारिस्थितिकी और जलवायु को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है। तापमान में वृद्धि से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और जल संसाधन कम हो रहे हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। चीन का औद्योगिकीकरण और शहरीकरण प्रदूषण बढ़ा रहा है।

चीन के विस्तार से तिब्बत की जलवायु पर असर पड़ रहा है। प्रतीकात्मक फोटो
जागरण संवाददाता, धर्मशाला। चीन का विस्तार, सैन्यीकरण और संसाधनों का दोहन तिब्बती पठार को पारिस्थितिक संकट की ओर धकेल रहा है। स्टाकहोम सेंटर फार साउथ एशियन एंड इंडो-पैसिफिक अफेयर्स की ओर से जारी किए इस अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि तिब्बत पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है और इसके वैश्विक परिणाम होंगे।
जलवायु परिवर्तन पर चर्चा में तिब्बत की भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि तेजी से बढ़ती गर्मी पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जल, भोजन और ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित कर रही है।
तिब्बत वैश्विक औसत से दोगुने से भी ज्यादा तेजी से हो रहा गर्म
शोध में कहा गया है कि तिब्बत वैश्विक औसत से दोगुने से भी ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है। ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं। एशिया की प्रमुख नदी प्रणालियों को सहारा देने वाले घास के मैदानों का क्षरण हो रहा है, जिससे निचले इलाकों में रहने वाले लगभग दो अरब लोग खतरे में हैं।
चीन की अस्पष्टता और स्वतंत्र पर्यावरणीय अध्ययनों के दमन की भी आलोचना
स्टाकहोम के इस शोधपत्र में बीजिंग के राज्य नियंत्रित विकास माडल, जिसमें राजमार्ग, रेलवे, हवाई अड्डे और जलविद्युत बांध शामिल हैं, को पारिस्थितिक संतुलन के बजाय गति और सैन्यीकरण को प्राथमिकता देने के लिए दोषी ठहराया है। इसमें चीन की अस्पष्टता और स्वतंत्र पर्यावरणीय अध्ययनों के दमन की भी आलोचना की गई है।
जमीनी सबूत इन चेतावनियों की पुष्टि
निर्वासित तिब्बती समुदाय पर समाचार और राय प्रदान करने वाले न्यूज पोर्टल (फयुल) के अनुसार जमीनी सबूत इन चेतावनियों की पुष्टि करते हैं कि जुलाई 2025 में चीन ने तिब्बत में यारलुंग ज़ंग्बो (ब्रह्मपुत्र) पर मेडोग जलविद्युत स्टेशन का निर्माण शुरू किया, जो 170 अरब अमेरिकी डालर की लागत वाली एक परियोजना है और इसका उद्देश्य भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पादन करना है।
विशेषज्ञ भी कर रहे भूकंपीय जोखिम के प्रति आगाह
पोर्टल के अनुसार चीनी अधिकारी न्यूनतम प्रभाव का दावा करते हैं, वहीं भारत, बांग्लादेश और कई गैरसरकारी संगठन नदी की पारिस्थितिकी, जल प्रवाह और क्षेत्रीय जैव विविधता में संभावित व्यवधान की आशंका जताते हैं। फयुल के हवाले से कहा गया है कि विशेषज्ञ भी भूकंपीय जोखिम के प्रति आगाह करते हैं और जनवरी 2025 में तिब्बत में आए भूकंप का हवाला देते हैं, जिसमें 120 से ज्यादा लोग मारे गए थे और कई जलाशयों को नुकसान पहुंचा था।
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