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    Himachal News: आपदाग्रस्त सराज के लोगों ने निभाई अनोखी परंपरा, कीचड़ में खेल व अश्लील तंज कसकर बुरी शक्तियों को भगाया

    Updated: Sat, 16 Aug 2025 04:58 PM (IST)

    Himachal Pradesh News हिमाचल प्रदेश के सराज क्षेत्र में सुबली मेला धूमधाम से मनाया गया। पांच दिन तक चले इस मेले में देव रस्मों का विशेष महत्व रहा। अंतिम दिन लोगों ने कीचड़ में खेलकर और अश्लील तंज कसकर बुरी शक्तियों को दूर भगाया। यह प्राचीन मेला सदियों से पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है

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    मंडी जिले के सराज में सुबली मेले में कीचड़ में खेलते लोग। जागरण

    संवाद सहयोगी, थुनाग (मंडी)। हिमाचल प्रदेश में जिला मंडी की सराज घाटी के मध्य क्षेत्र की सुबल वैली में पारंपरिक सुबली मेला भव्य रूप से मनाया गया। आपदा की मार झेल रहे सराज क्षेत्र में यह अनोखी परंपरा निभाई गई। पांच दिन तक चले इस मेले में देव रस्मों का विशेष महत्व रहा। अंतिम दिन लोगों ने कीचड़ में खेलकर तथा अश्लील तंज कसकर बुरी शक्तियों को दूर भगाने की परंपरा का निर्वहन किया।

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    पांच दिन पहले शुरू हो जाता है उत्सव

    यह प्राचीन मेला सदियों से पारंपरिक रीति-रिवाजों और मान्यताओं के साथ मनाया जाता है। मेले की शुरुआत हुम उत्सव से होती है। आयोजन से पांच दिन पहले लगभग 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित आराध्य देवता सुमुनाग व नगलवाणी के मंदिरों में बच्चों के मुंडन संस्कार आयोजित किए जाते हैं। इसके बाद देवताओं के कारकुंदों पर विशेष फेर निकाले जाते हैं, जिनमें रस्मों के निर्वाहन के साथ पारंपरिक रूप से अश्लील तंज बोलना आवश्यक माना जाता है।

    गाड़ागांव से जलेब तक का सफर

    तीसरे दिन आराध्य देवता की मूल कोठी गाड़ागांव में विशेष पूजा-अर्चना और रस्में पूरी की जाती हैं। चौथे दिन यहां से जलेब मेले तक जुलूस निकाला जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में छोटी जलेब कहा जाता है। इस दौरान ग्रामीण नाटी गाते-गुनगुनाते देवताओं के संग मेले के मैदान तक पहुंचते हैं।

    अंतिम दिन की खास परंपरा, फलैई और कीचड़ खेल

    अंतिम दिन तड़के सुबह चार बजे सैकड़ों लोग देवता की अनुमति से पास के जंगलों में जाते हैं। वहां से एक विशाल पेड़ जिसे स्थानीय भाषा में फलैई कहा जाता है, लेकर आते हैं। वापसी के दौरान सभी लोग एक-दूसरे पर कीचड़ फेंकते हैं व अश्लील तंज कसते हैं। मान्यता है कि यह प्रथा बुरी शक्तियों के नाश का प्रतीक है तथा अश्लील तंज बोलने से नकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र से दूर भाग जाती है। इसके बाद सुबल बैली के सह मेले मैदान में सभी लोग कीचड़ में खेलते हैं और फिर नाटी कर देव रस्मों का समापन करते हैं।

    देवगुर का कथन

    आराध्य देवता के गुर मोहर सिंह ने बताया कि सुमुनाग व नलबाणी का यह मेला सदियों पुरानी परंपरा है। उनका कहना है कि अश्लील तंज कसने की यह परंपरा मात्र एक सांस्कृतिक रीति है, जिसके माध्यम से समाज में नकारात्मक शक्तियों को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह भी माना जाता है कि मेले में देवता स्वयं एक लकीर खींचते हैं, जो भविष्य में बुरी शक्तियों को क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकती है।

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