संकट की घड़ी में वीरभद्र सरकार के फॉर्मूले को दोहराएगी CM सुक्खू, कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 59 साल करने पर करेंगे विचार
हिमाचल प्रदेश सरकार वित्तीय संकट के कारण कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 59 वर्ष करने पर विचार कर रही है। पहले भी वीरभद्र सरकार में ऐसा हो चुका है। इस निर्णय से सरकार को 3 हजार करोड़ रुपये की देनदारियों से राहत मिलेगी। मंत्रिमंडल की बैठक में वित्त विभाग इस पर अपनी राय रखेगा। सीएम सुक्खू संकट की घड़ी में वीरभद्र सिंह सरकार के फॉर्मूले को अपनाएगी।

प्रकाश भारद्वाज, शिमला। प्रदेश सरकार गंभीर वित्तीय स्थिति को देखते हुए कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 59 वर्ष करने पर विचार करेगी। ऐसा नहीं है कि पहली बार कर्मचारी वर्ग की आयु सीमा बढ़ाने को लेकर इस तरह की चर्चा हो रही है। याद करें तो वीरभद्र सरकार के समय में वर्ष 2013 से 2015 तक दो साल के दौरान एक वर्ष का अतिरिक्त सेवाकाल का कर्मचारियों को विकल्प दिया गया था।
इस तरह का विकल्प इसलिए दिया गया था कि 14वें वित्तायोग के अंतिम दो वर्षों के दौरान प्रदेश के सामने वित्तीय संकट की स्थिति पैदा हो गई थी। पांच मई को होने वाली मंत्रिमंडल की बैठक में वित्त विभाग बताएगा कि आयु सीमा बढ़ाने का कदम पहली बार नहीं उठाया जा रहा है।
सरकार को 3 हजार करोड़ रुपये की देनदारियों से मिलेगी राहत
इससे पहले वर्ष 2013 में वीरभद्र सिंह सरकार ने भी दो साल के लिए कर्मचारियों की आयु सीमा को बढ़ाने का निर्णय लिया था। इसमें शर्त ये थी कि कर्मचारी स्वयं विकल्प देगा कि उसे एक साल का अतिरिक्त सेवाकाल प्रदान किया जाए। इस संबंध में कर्मचारी लिखित विकल्प प्रस्तुत करना हेाता था।
वर्तमान परिस्थितियों में प्रदेश सरकार की ओर से सेवानिवृत्ति की आयु एक साल बढ़ाने से सरकार को 3 हजार करोड़ रुपये की देनदारियों से राहत मिलेगी। इससे सरकार की देनदारियों को एक साल के लिए टाला जा सकेगा। 2026 में 16वां वित्तायोग कार्य शुरू करेगा।
आशा है कि प्रदेश सरकार को राजस्व घाटा अनुदान के तहत पांच साल के लिए अधिक राशि का आवंटन होगा। 15वें वित्तायोग के तहत प्रदेश को मिलने वाली राशि में वर्ष दर वर्ष कमी आ रही है। इस वित्त वर्ष में प्रदेश सरकार को राजस्व घाटा अनुदान के तहत 3725 करोड़ मिल रहे हैं। जबकि पिछले वर्ष राजस्व घाटा अनुदान के तहत 6258 करोड़ मिलते थे।
2001 से पहले चतुर्थ श्रेणी कर्मियों की सेवानिवृत्त आयु 60 वर्ष
वर्ष 2001 से पहले सरकारी नौकरी में आए चतुर्थ श्रेणी कर्मियों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा 60 वर्ष है। जबकि उसके बाद सरकारी सेवाओं में आने वाले कर्मचारियों को 58 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त किए जाने का प्रविधान है।
डेढ़ दशक से कर्मचारियों की आयु सीमा 60 करने की मांग हो रही
धूमल सरकार के दूसरे कार्यकाल में पहली बार कर्मचारियों की आयु सीमा 58 से बढ़ाकर 60 वर्ष करने की मांग उठी थी। उस समय भी ये तर्क दिया गया था कि कर्मचारियों के अनुभव का और अधिक लाभ उठाया जाना चाहिए।
वीरभद्र सरकार में 2013 से 2015 के दौरान इस फार्मूले वित्तीय संकट की आहट उस समय से अनुभव की जा रही है। उसके बाद वीरभद्र सरकार व जयराम सरकार के समय में भी इस मांग ने जोर पकड़ा था। इसके साथ-साथ ये भी कहा जाता रहा कि बेरोजगारों के लिए सरकारी नौकरी के रास्ते बंद होंगे।
प्रशासनिक व राज्य की वित्तीय स्थिति को देखते हुए कर्मचारियों की आयु सीमा को एक वर्ष बढ़ाने से देनदारियां टल जाएंगी। लेकिन ये निर्णय लेने से पहले सरकार में बैठे नेताओं को विचार करना होगा।
क्योंकि कर्मचारियों की आयु सीमा बढ़ाए जाने से बेरोजगार किस तरह की प्रतिक्रिया करते हैं। ऐसा अवश्य दिख रहा है कि हालात उपयुक्त नहीं थे, ये तो होना ही था, चाहे सत्ता में कोई भी दल होता, राज्य को इस तरह की परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ना था।
- अक्षय सूद, पूर्व आईएएस एवं वित्त मामलों के विशेषज्ञ।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।