हिमाचल में प्रधानाचार्यों के 805 पद रिक्त, 2 साल से नहीं हुई पदोन्नति, कैबिनेट के निर्णय के बाद अब क्या होगा अगला कदम?
हिमाचल प्रदेश में प्रधानाचार्यों के 805 पद रिक्त हैं, जिससे शिक्षा व्यवस्था प्रभावित है। दो साल से पदोन्नति नहीं होने से शिक्षकों में निराशा है। कैबिनेट के निर्णय के बाद अब सरकार की ओर से उठाए जाने वाले कदमों पर सबकी निगाहें टिकी हैं, जिससे स्कूलों में प्रशासनिक कार्यों का संचालन सुचारू रूप से हो सके। शिक्षकों को सरकार से सकारात्मक फैसले की उम्मीद है।

हिमाचल प्रदेश में प्रधानाचार्याें के 805 पद रिक्त हैं। प्रतीकात्मक फोटो
अनिल ठाकुर, शिमला। हिमाचल मंत्रिमंडल के निर्णय के बाद अब सरकारी स्कूलों में स्थायी प्रधानाचार्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया जल्द शुरू होने की संभावना है। पिछले दो वर्षों से प्रधानाचार्य के पद पर कोई पदोन्नति नहीं हुई है।
27 मई, 2023 को शिक्षा विभाग ने मुख्य अध्यापकों और प्रवक्ताओं को पदोन्नत कर प्रधानाचार्य बनाया था, जबकि कुछ शिक्षकों को दिसंबर 2023 में पदोन्नति दी गई थी।
वर्तमान में राज्य के 805 स्कूलों में प्रधानाचार्य का पद रिक्त हैं और वरिष्ठ शिक्षकों को इस पद का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है। इस माह लगभग 18 प्रधानाचार्य सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं, जिससे रिक्त पदों की संख्या और बढ़ जाएगी।
पदोन्नति में देरी का शिक्षकों को नुकसान
पदोन्नति में देरी का सबसे बड़ा नुकसान शिक्षकों को हो रहा है। कई शिक्षक पदोन्नति के योग्य हैं, लेकिन पदोन्नति न होने के कारण वे सेवानिवृत्त हो रहे हैं। हाल ही में आयोजित राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में इस मुद्दे पर गहन चर्चा की गई।
शिक्षा विभाग को निर्देश कार्मिक विभाग ले राय
कैबिनेट ने शिक्षा विभाग को निर्देश दिया है कि वह कार्मिक विभाग से इस मामले पर राय ले, ताकि पदोन्नति में आ रही कानूनी अड़चनों को दूर किया जा सके। उम्मीद है कि नवंबर में पदोन्नति की फाइल को मंजूरी मिल जाएगी।
नियमों पर जानकारी मांगी
1998 से 2023 तक के नियमों पर जानकारी मांगी गई है। शिक्षा विभाग में इस अवधि के दौरान प्रधानाचार्य की नियमित नियुक्ति नहीं की गई, केवल अस्थायी तौर पर उन्हें प्रधानाचार्य बनाया गया। कुछ वर्षों बाद इन्हें नियमित स्केल दिया गया।
कई मामले कोर्ट में लंबित
कोर्ट में इस संबंध में कई कानूनी मामले लंबित हैं। कोर्ट ने शिक्षा विभाग को निर्देशित किया है कि वह प्लेसमेंट के आधार पर की गई पदोन्नति को नियमित करे और सभी पात्र लाभ प्रदान करे।
लोक सेवा आयोग में अटका मामला
विभाग ने आश्वासन दिया है कि भविष्य में जो भी पदोन्नति प्रधानाचार्य के पद पर होगी, वह स्थायी होगी। डीपीसी के लिए मामला लोक सेवा आयोग को भेजा गया था, लेकिन आयोग ने पिछले नियमों की मांग की है, जिससे मामला अटका हुआ है।
पदोन्नति के लिए 50-50 का नियम
उल्लेखनीय है कि पूर्व सरकारों के समय कुछ शिक्षकों को पदोन्नति का लाभ देने के लिए नियमों की अनदेखी की गई थी। पदोन्नति के लिए 50-50 का नियम निर्धारित है, जिसमें 50 प्रतिशत मुख्य अध्यापक और 50 प्रतिशत प्रवक्ता श्रेणी से आएंगे। लेकिन, प्रवक्ताओं को अधिकतर पदोन्नति मिली है, जबकि मुख्य अध्यापकों की संख्या कम है। स्थायी प्रधानाचार्य न बनने के कारण शिक्षकों को हर महीने आठ से नौ हजार रुपये का वित्तीय नुकसान हो रहा है।
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इसलिए दिक्कत ज्यादा
राज्य सरकार ने स्कूलों में कांप्लेक्स प्रणाली शुरू की है। वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल के प्रधानाचार्य को इसके आसपास के आठ से 10 स्कूलों का प्रमुख बना दिया गया है। स्कूलों में सारी व्यवस्था, शिक्षकों की अस्थायी व्यवस्था जैसे कार्य प्रधानाचार्य ही देखेंगे। प्रधानाचार्य को इन स्कूलों का निरीक्षण व वहां पर पूरा दिन बिताना अनिवार्य भी किया गया है। स्कूलों में स्थायी प्रधानाचार्य न होने से दिक्कत पेश आ रही है। क्योंकि जो शिक्षक प्रधानाचार्य का अतिरिक्त कार्यभार देख रहे हैं उन्हें अपने विषय को कक्षा में जाकर पढ़ाना भी होता है, इसलिए वह निरीक्षण के लिए नहीं जा सकते। इसलिए कांप्लेक्स प्रणाली पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रही है।

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