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    'जबरदस्ती चूमा, गाल काट लिया...'; हिमाचल हाईकोर्ट का फैसला- मानव दांतों को घातक हथियार नहीं माना जा सकता

    Updated: Thu, 11 Sep 2025 06:54 PM (IST)

    हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि मानव दांत भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत घातक हथियार नहीं हैं। न्यायाधीश राकेश कैंथला ने कहा कि दांतों से लगी चोट इस धारा में नहीं आती। अदालत ने आईपीसी की धारा 324 के तहत सजा को रद्द कर दिया लेकिन अन्य आरोपों को बरकरार रखा क्योंकि आधी रात को घर में घुसना एक गंभीर अपराध है।

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    मानव दांतों को नहीं माना जा सकता है घातक हथियार- हाईकोर्ट

    जागरण संवाददाता, शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत मानव दांतों को "घातक हथियार" नहीं माना जाता है।

    इस धारा में खतरनाक हथियारों से जानबूझकर चोट पहुंचाने पर दंड का प्रावधान है। न्यायाधीश राकेश कैंथला ने फैसले में कहा कि दांतों से लगी चोट आईपीसी की धारा 324 के दायरे में नहीं आती। इसलिए निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 324 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अभियुक्त को दोषी ठहराने और सजा सुनाने में गलती की है।

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    पूरा मामला भी जानिए

    मामले के अनुसार 5 मार्च, 2007 को पीड़िता अपने 4 साल के बच्चे के साथ सो रही थी। तभी रात लगभग 11:30 बजे उसने कुछ शोर सुना। उसने आरोपी को अपने कमरे के अंदर देखा। उसने बताया कि आरोपी ने उसका और उसके बच्चे का गला घोंटने की कोशिश की, उसे चूमा, उसके साथ छेड़छाड़ की और उसके गाल पर दांतों से काटा।

    निचली अदालत ने अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 451, 354, 323 और 324 के तहत दोषी ठहराया। सत्र न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि पीड़िता की गवाही चिकित्सकीय साक्ष्यों से मेल खाती थी।

    इन फैसलों को अभियुक्त ने उच्च न्यायालय में एक पुनरीक्षण याचिका दायर कर चुनौती दी। कोर्ट ने पाया कि पीड़िता ने उसी रात 1:45 बजे पुलिस को मामले की सूचना दी थी, जिससे पीड़िता की गवाही में मनगढ़ंत कहानी होने की संभावना समाप्त हो जाती है।

    कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने खतरनाक हथियारों से जानबूझकर चोट पहुंचाने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत अपराध करने के लिए अभियुक्तों को दोषी ठहराने और सजा सुनाने में गलती की थी।

    हालांकि, न्यायालय ने यह भी माना कि निचली अदालत द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 451, 354 और 323 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दी गई सजा अत्यधिक नहीं हो सकती, क्योंकि पीड़िता अपने घर में अकेली थी और अभियुक्त ने इसका फायदा उठाया।

    न्यायालय ने टिप्पणी की, "किसी घर को किसी व्यक्ति का किला माना जाता है, और आधी रात को घर में घुसना एक गंभीर अपराध है।" इसलिए, न्यायालय ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया और आईपीसी की धारा 324 के तहत आदेश को रद्द कर दिया।