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    उत्तराखंड से हिमाचल पहुंचेंगे महासू महाराज, सिरमौर के द्राबिल व पश्मी में बड़े आयोजन की तैयारी, 50 हजार से एक लाख लोग करेंगे दर्शन

    By Neha Sharma Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Wed, 10 Dec 2025 04:49 PM (IST)

    उत्तराखंड और हिमाचल के आराध्य देव चालदा महासू महाराज पहली बार उत्तराखंड के जौनसार से सिरमौर के गिरिपार पहुंच रहे हैं। टौंस नदी पार कर 70 किमी की पैदल ...और पढ़ें

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    चालदा महासू महाराज के चिह्न के साथ देवलू, पश्मी में बनाया गया मंदिर व द्राबिल में ठहराव स्थल पर की जा रही तैयारी। जागरण

    राजन पुंडीर, नाहन। हिमाचल प्रदेश जिला सिरमौर का शिलाई विधानसभा क्षेत्र में दिसंबर में ऐतिहासिक धार्मिक घटना का साक्षी बनने जा रहा है। उत्तराखंड और हिमाचल के लोगों के आराध्य देव एवं कुल देवता छत्रधारी चालदा महासू महाराज पहली बार उत्तराखंड के जौनसार इलाके से सिरमौर के गिरिपार इलाके में पहुंच रहे हैं।

    उत्तराखंड के दसऊ से हिमाचल के पश्मी गांव तक पहली बार टौंस नदी पार कर 70 किमी की पैदल यात्रा कर "छत्रधारी" चालदा महासू महाराज हिमाचल में पहुंचेंगे।

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    उत्तराखंड ही नहीं हिमाचल के लोगों के भी कुल देवता

    महासू महाराज उत्तराखंड ही नहीं, हिमाचल प्रदेश सिरमौर व शिमला सहित अन्य क्षेत्र के लोगों के भी कुल देवता हैं। हिमाचल में प्रवेश के बाद द्राबिल में ठहराव होगा। यहां 50 हजार से एक लाख लोगों के देवता के स्वागत में पहुंचने का अनुमान है। यहां कई दिन से तैयारियां चल रही हैं। यहां विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा। सरकार की ओर से यहां पर 100 पुलिस जवान तैनात किए जाएंगे।

    दो करोड़ से बना मंदिर

    शिलाई क्षेत्र के लोगों ने करीब 2 करोड़ रुपये की लागत से पश्मी में महासू मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया है। इस कार्य में विशेष योगदान कारबारी पश्मी गांव के 45 परिवार तथा गासान गांव के 15 परिवारों का है। 

    मंदिर में रोजाना होगा भंडारे का आयोजन

    अगले जितने वर्षों तक चालदा महासू महाराज पश्मी में रहेंगे, उसके लिए देव कार्य तथा भंडारे के लिए श्री महासू महाराज कमेटी का गठन किया गया है। जब तक देवता यहां रहेंगे, रोजाना मंदिर में भंडारे का आयोजन होगा। इस कमेटी में दिनेश चौहान को बजीर और रघुवीर सिंह को भंडारी नियुक्त किया गया है। जबकि मंदिर में पूजा की जिम्मेवारी पंडित आत्माराम शर्मा को सौंप गई है। एक माह पूर्व मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है, मंदिर के द्वार अब 14 दिसंबर को चालदा महासू महाराज के पहुंचने पर ही खुलेंगे। 

    प्रदेशभर से लोग कर रहे दान

    सिरमौर जिला सहित प्रदेश के अन्य भागों से लोग अपनी इच्छा से दान दे रहे हैं। दान में कुछ लोग राशन, सामान, भंडारा बनाने के लिए समाधा अपनी सुविधा के अनुसार लगातार दान कर रहे हैं। कारबारी गांव पश्मी व गासन के ग्रामीण प्रतिमाह मेड एकत्रित करते हैं। मेड (मंथली कलेक्शन) से श्री छत्रधारी चालदा महासू महाराज के आगामी देव कार्यों तथा भंडारे का आयोजन होगा। पश्मी गांव में अगले सभी त्योहार जैसे कि बिशु, दीपावली, बूढ़ी दिवाली और बसंत पंचमी पर भी अगले वर्षों तक विशेष आयोजन होंगे। जिसमें जिला सिरमौर सहित उत्तराखंड के हजारों लोग भाग लेंगे।

    देव-चिह्न के रूप में पांच वर्ष पहले घांडुवा (बकरा) का हुआ आगमन

    शिलाई विधानसभा क्षेत्र के पश्मी गांव में पांच वर्ष पहले एक दैवीय अनुभव का साक्षी बना। देव-चिह्न के रूप में एक भारी भरकम बकरा (घांडुवा) का आगमन वर्षों पहले ही गांव में हो गया था। मान्यता है कि इस तरह जब बकरा किसी क्षेत्र में पहुंचता है तो कुछ सालों में वहां देवता पहुंचते हैं।

    Mahasu Maharaj Bakra

    महासू महाराज मंदिर में पहुंचा बकरा। 

    चालदा महासू एकमात्र ‘चलायमान देवता’

    छत्रधारी चालदा महासू महाराज जौनसार-बावर जनजाति की गहरी लोक-आस्था से जुड़े वे लोक-देवता हैं, जिन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। चार महासू देवताओं में से चालदा महासू एकमात्र ‘चलायमान देवता’ हैं, अर्थात वे स्थायी रूप से किसी एक मंदिर में नहीं रहते, बल्कि समय-समय पर विभिन्न गांवों और क्षेत्रों की यात्रा करते हैं। जहां भी उनका आगमन होता है, वहां पूजा-अर्चना, आशीर्वाद और न्याय का संदेश फैलता है। मूल एवं प्राचीन मंदिर उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र में स्थित है, जिसे महासू आस्था का मुख्य केंद्र माना जाता है।

    लॉकडाउन में पहुंचा था रहस्यमयी बकरा

    पश्मी गांव के लोगों के अनुसार वर्ष 2020 के लॉकडाउन दिनों में उत्तराखंड के जौनसार के दसऊ गांव से एक विशाल बकरा अचानक गांव में आकर बस गया। ग्रामीणों ने शुरू में इसे एक सामान्य आवारा पशु माना, लेकिन बकरे का व्यवहार और उसकी स्वाभाविक निर्भीकता उन्हें अक्सर हैरान करती रही। वह खेतों, घरों और पूरे गांव में बिना रोक-टोक के घूमता, और कोई उसे रोक भी नहीं पाता था। करीब दो वर्षों तक गांववासियों को यह एहसास ही नहीं था कि यह बकरा दरअसल कोई साधारण पशु नहीं, बल्कि देवता का प्रतीक "देव-चिन्ह" है। गांव के देव वक्ता के माध्यम से 2022 में पुष्टि हुई कि यह बकरा वास्तव में छत्रधारी चालदा महासू महाराज का "देव-चिह्न" है, जिसे देवता अपने आगमन से वर्षों पहले संकेत के रूप में भेजते हैं।

    गांव में देवता की उपस्थिति के प्रतीक के रूप में मानते हैं लोग

    कहा जाता है कि "देव-चिह्न" स्वयं अपनी मंज़िल चुनकर चलता है और जहां यह स्थिर होकर रहने लगे, वहां भविष्य में देवता का प्रवास सुनिश्चित माना जाता है। अद्भुत यह कि "देव-चिह्न" की पहचान होते ही बकरे का स्वभाव एकदम शांत, सौम्य और सहज हो गया। जबकि पहले आक्रामक था। इसके बाद उसे गांव में देवता की उपस्थिति के प्रतीक के रूप में सम्मान दिया जाने लगा। ग्रामीणों के अनुसार, वह दिनभर गांव के चक्कर लगाता है और यह माना जाता है कि जिस स्थान पर वह ठहरता है, वहां देवता की दृष्टि रहती है।

    13 दिसंबर को सिरमौर में प्रवेश होंगे देवता

    मंदिर समिति के सदस्य दिनेश चौहान, रघुवीर सिंह, प्रदीप टिक्कू व आत्माराम शर्मा के अनुसार देवता 13 दिसंबर को टौंस नदी पार कर देवता का रथ हिमाचल की सीमा में प्रवेश करेगा। यह दृश्य सिरमौर के लिए पहली बार होगा, जब छत्रधारी चालदा महासू महाराज सर्वोच्च पूजा-विधियों के साथ राज्य में प्रवेश करेंगे। 

    Mahasu Maharaj Rath

    उत्तराखंड से रवाना होता महासू महाराज का रथ। 

    14 दिसंबर को पश्मी स्थित मंदिर में विराजमान होंगे देवता

    देवता 13 दिसंबर को द्राबिल गांव में विश्राम के बाद 14 दिसंबर को पश्मी के नवनिर्मित मंदिर में विराजमान होंगे। पश्मी गांव में इस समय उत्सव जैसा माहौल है। हर घर में सजावट, दीपों और देव ध्वजों के साथ लोग देवता के स्वागत में जुटे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह केवल धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि शताब्दियों बाद मिलने वाला सांस्कृतिक सौभाग्य है। गांव में उत्साह इस कदर है कि लोगों ने महीनों पहले से तैयारियां शुरू कर दी थीं।

    महाराज का प्रवास कार्यक्रम

    छत्रधारी चालदा महासू महाराज 08 दिसंबर को प्राचीन देसऊ मंदिर से बाहर निकले। सोमवार को पहली रात्रि विश्राम दसऊ में कुंवर सिंह की "बागड़ी" में हुआ। इसके बाद 09 दिसंबर को महाराज दसऊ गांव के बाहर पूरी खत की एक रात की बागड़ी में ठहरें। 10 दिसंबर को भुपऊ में सीताराम चौहान जगयाण की बागड़ी में रात्रि विश्राम हुआ। 11 दिसंबर को महाराज मयार खेड़ा में दसऊ की बागड़ी में विराजेंगे। यात्रा के अगले पड़ाव में 12 दिसंबर को सावडा में एक रात की बागड़ी में विश्राम किया जाएगा। 13 दिसंबर को चालदा महासू महाराज सिरमौर के द्राबिल गांव में रात्रि विश्राम करेंगे। इसके बाद 14 दिसंबर को अंतिम पड़ाव में पवित्र यात्रा अपने मुख्य स्थल पश्मी मंदिर पहुंचेगी, जहां महाराज विधिवत रूप से विराजमान होंगे।

    देवता का यह आगमन सिरमौर के लिए न केवल धार्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि यह हिमाचल और उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को जोड़ने वाला अभूतपूर्व अवसर साबित हो रहा है।