ऊना में जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं टीचर, भारी बारिश के दौरान उठाई छुट्टी देने की मांग
प्राकृतिक आपदा के नियमों के चलते बारिश में बच्चों की छुट्टी होने पर भी अध्यापकों को स्कूल जाना होता है जिसपर सवाल उठ रहे हैं। तर्क है कि रिकॉर्ड और फर्नीचर बचाने के लिए अध्यापकों की जान जोखिम में डालना उचित नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि खतरे की स्थिति में सूचित करके छुट्टी ली जा सकती है।

अविनाश विद्रोही, गगरेट (ऊना)। प्रदेश में आपदा प्रबंधन के नाम पर बन रहे नियम अब सवालों के घेरे में हैं। बारिश, बाढ़ या भूस्खलन के चलते जब भी प्रशासन स्कूलों में छुट्टी घोषित करता है तो वह सिर्फ बच्चों के लिए होती है।
अध्यापकों को आदेश दिए जाते हैं कि वे हर हाल में स्कूल पहुंचें, चाहे रास्ते में कितनी भी जानलेवा परिस्थितियां क्यों न हों।
बरसात में स्कूलों के रिकार्ड और फर्नीचर को बचाने के नाम पर अध्यापकों को बुलाना कितना जायज है, इस पर इंटरनेट मीडिया पर बहस छिड़ गई है।
अध्यापकों की सुरक्षा के लिए उठे सवाल
प्रश्न उठ रहा है कि जब बच्चों की सुरक्षा के लिए छुट्टी की घोषणा की जाती है तो अध्यापकों को उसी खतरे में धकेलना क्या सही है?
प्रशासन का तर्क है कि पहले भी कई बार भारी वर्षा के दौरान स्कूलों में पानी घुसने से रिकार्ड, कंप्यूटर और फर्नीचर को नुकसान हुआ है।
ऐसे में स्कूल में कम से कम एक शिक्षक रहे ताकि आपात स्थिति में नुकसान कम किया जा सके, लेकिन इस तर्क का जवाब उस समय प्रशासन या आपदा अधिकारियों के पास नहीं होता जब कभी रात के समय कोई घटना हो तब स्कूल को कैसे बचाया जाए या स्कूल समय से पहले या बाद में कुछ ऐसा होता है तब आपदा प्रबंधन कैसे कार्य करेगा।
घर से कई किलोमीटर दूर होती है शिक्षकों की तैनाती
यह तर्क तब बेमानी लगता है जब शिक्षक ड्यूटी निभाते हुए खतरे में होते हैं। खासतौर पर तब जब कई अध्यापकों की तैनाती घर से कई किलोमीटर दूर के स्कूल में होती है और बरसात में नाले उफान पर होते हैं।
सड़कें धंस जाती हैं या भवन पहले से जर्जर स्थिति में होते हैं। एक शिक्षक ने कहा कि रिकार्ड और फर्नीचर बचाने के लिए उनकी जान जोखिम में डालना अमानवीय है। हम भी परिवार वाले हैं। जब बच्चों को छुट्टी दी जाती है तो हमें भी उसी खतरे से बचाने की जरूरत है।
अधिकारियों का कहना है कि "यदि जोखिम ज्यादा हो तो शिक्षक स्कूल न जाएं और प्रशासन को सूचित करें", लेकिन जमीनी हकीकत अलग है।
अकसर शिक्षकों की पोस्टिंग दूरदराज के इलाकों में होती है और उनके पास न तो सुरक्षित परिवहन होता है और न समय रहते जानकारी कि किस रास्ते पर खतरा है।
सोमवार को सामने आए तीन मामलों से उठे सवाल
पहला मामला : आबादी बराना स्कूल में एक अध्यापिका उस समय बाल-बाल बच गई जब स्कूल के पीछे बना डंगा अचानक ढह गया और मलबा सीधे कार्यालय में आ गिरा।
दूसरा मामला : अंब में एक शिक्षक की बाइक स्कूल जाते समय भूस्खलन की चपेट में आ गई और मलबे में दब गई। गनीमत रही कि शिक्षक समय रहते सुरक्षित निकल गए।
तीसरा मामला : जटेहड़ी स्कूल में मलबा सीधे स्कूल की दीवार से आकर लग गया जिससे बड़ा हादसा होते-होते टल गया।
ऊना के शिक्षा विभाग उपनिदेशक अनिल तक्खी का कहना है कि 'ऐसा देखा गया है कि स्कूल में अध्यापक होने पर आपदा के समय नुकसान कम होता है क्योंकि अध्यापक स्थिति संभाल लेते हैं। दूसरा अध्यापकों से कहा गया है यदि कोई आपात स्थिति आपके साथ होती है तो हमें सूचित करके वे भी छुट्टी कर सकते हैं।'
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