1989 रुबैया सईद किडनैपिंग केस में गिरफ्तार शांगलू एक दिन बाद रिहा, जम्मू TADA कोर्ट ने खारिज की CBI की रिमांड अर्जी
जम्मू की टाडा कोर्ट ने रुबैया सईद किडनैपिंग केस में गिरफ्तार शफात अहमद शांगलू की रिमांड अर्जी खारिज कर दी। 1989 में किडनैपिंग के आरोप में गिरफ्तार शां ...और पढ़ें

सीबीआई इस मामले में आगे की जानकारी के लिए शांगलू से पूछताछ करना चाहती थी। फोटो: पीटीआई।
डिजिटल डेस्क, जम्मू। सीबीआई को बड़ा झटका देते हुए जम्मू की स्पेशल टाडा कोर्ट ने मंगलवार को शफात अहमद शांगलू को रिहा कर दिया। सीबीआई ने जम्मू-कश्मीर के साथ मिलकर शांगूल को एक दिन पहले 1989 में उस समय के गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद की किडनैपिंग के सिलसिले में गिरफ्तार किया था।
कोर्ट ने 8 दिसंबर, 1989 को हुई किडनैपिंग के सिलसिले में पूछताछ के लिए शांगलू की सीबीआई को रिमांड देने से मना कर दिया। उन्होंने अर्जी को खारिज करते हुए कहा कि एजेंसी द्वारा फाइल की गई चार्जशीट में शांगलू का कहीं कोई जिक्र नहीं था। एजेंसी ने जम्मू की टाडा कोर्ट में 35 साल पुराने मामले में गिरफ्तार शांगलू की कस्टडी मांगी थी, यह दावा करते हुए कि वह इतने सालों से फरार था।
श्रीनगर में इश्बर निशात में रह रहे शफात अहमद शांगलू पुत्र सैफ-उद-दीन को कश्मीर पुलिस ने उसके घर से गिरफ्तार किया बाद में CBI टीम ने गत सोमवार को पुलिस स्टेशन निशात से हिरासत में लिया और TADA कोर्ट में पेश करने के लिए जम्मू ले जाया, जहां एजेंसी ने आगे की जांच के लिए उसकी रिमांड मांगी। उस पर 10 लाख रुपये का इनाम भी था।
कोर्ट से बाहर आने के बाद शांगलू ने कहा, "रुबैया अपहरण में मेरा कोई हाथ नहीं था। कोर्ट ने आज मुझे इंसाफ दिया है।" वहीं उसके वकील सोहेल डार ने कहा, "चूंकि उसे रिहा कर दिया गया है और उसका कोई हाथ नहीं था, इसलिए अब उसके खिलाफ कोई जांच नहीं होगी।" टाडा कोर्ट के तीसरे एडिशनल डिस्ट्रिक्ट और सेशंस जज मदन लाल द्वारा दिए गए फैसले के डिटेल्ड ऑर्डर का इंतजार है।
भगोड़े पर रखा गया था 10 लाख का इनाम
सीबीआई के प्रवक्ता ने कहा, “भगोड़े पर 10 लाख रुपये का इनाम था और उसे कानून के मुताबिक तय समय के अंदर जम्मू की टाडा कोर्ट में पेश किया गया।” अधिकारियों के मुताबिक, शांगलू कथित तौर पर जेकेेएलएफ का पदाधिकारी था और उसका फाइनेंस संभालता था। सीबीआई ने जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ मिलकर शांगलू को श्रीनगर के निशात इलाके में उसके घर से गिरफ्तार किया।
यासीन मलिक, जो टेरर फंडिंग मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल में सजा काट रहा है, को गृह मंत्रालय के एक आदेश जिसमें उसकी आवाजाही पर रोक लगाई गई है, के कारण कोर्ट में पेश नहीं किया जा रहा है।
रुबैया की रिहाई के एवज में छोडे गए थे पांच आतंकी
कोर्ट की सुनवाई के दौरान, रुबैया सईद ने मलिक के अलावा चार और आरोपियों की पहचान की थी, जो इस अपराध में शामिल थे। 8 दिसंबर 1989 को श्रीनगर के लाल देद हॉस्पिटल के पास से उन्हें किडनैप कर लिया गया था। पांच दिन बाद तब की वीपी सिंह सरकार ने, जिसे केंद्र में भाजपा का समर्थन था, बदले में पांच आतंकवादियों को रिहा कर दिया था।
अब तमिलनाडु में रह रही रुबैया सईद को सीबीआई ने सरकारी गवाह के तौर पर लिस्ट किया है। सीबीआई ने 1990 में इस मामले की जांच को अपने हाथ में लिया था।
मलिक समेत 9 के खिलाफ आरोप तय
ट्रायल में तेज़ी लाने के लिए सीबीआई ने तीन दशक से भी पहले श्रीनगर में सईद के अपहरण और भारतीय वायु सेना के चार कर्मियों के अपहरण और हत्या से जुड़े बहुत चर्चित मामलों में मलिक के खिलाफ आरोप तय करने के बाद अपनी सीनियर वकील मोनिका कोहली को चीफ प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया था।
56 साल के मलिक को पिछले साल मई में एक स्पेशल एनआईए कोर्ट ने सजा सुनाई थी। उन्हें एनआईए द्वारा रजिस्टर किए गए 2017 के टेरर-फंडिंग केस के सिलसिले में 2019 की शुरुआत में गिरफ्तार किया गया था। एक स्पेशल टाडा कोर्ट पहले ही मलिक और नौ अन्य के खिलाफ अपहरण केस में आरोप तय कर चुकी है।

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