डोगरी रामलीला, परंपरा से आधुनिकता की ओर एक नया सफर; पढ़ें जम्मू की रामलीला का गौरवशाली इतिहास
जम्मू में नवरात्रि के साथ रामलीला की धूम शुरू हो गई है। इस बार डोगरी भाषा में रामलीला का मंचन किया जा रहा है जो धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का प्रतीक है। युवा पीढ़ी को जड़ों से जोड़ने के लिए यह प्रयास किया जा रहा है। आधुनिक तकनीक का उपयोग हो रहा है ताकि रामलीला की सहजता बनी रहे।

अशोक शर्मा, जम्मू। नवरात्रि के आगमन के साथ ही मंदिरों के शहर जम्मू में रामलीला की गूंज सुनाई देने लगी है। हर बार की तरह इस बार भी दर्शकों को बेसब्री से इंतजार है उस ऐतिहासिक मंचन का, जो केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक धरोहर और सामूहिक चेतना का भी प्रतीक है।
रामलीला सदियों से देशभर में नवरात्र के अवसर पर मंचित की जाती रही है। कभी पारसी शैली, तो कभी परंपरागत नाट्य मंच पर यह प्रस्तुति दर्शकों को भाव-विभोर करती रही है। लेकिन जम्मू में अब एक नई पहल हो रही है।रामलीला को डोगरी भाषा और डोगरा परिवेश में आधुनिक शैली के साथ प्रस्तुत करने की।
डोगरी रामलीला : वर्षों का सपना साकार
सरस्वती ड्रामेटिक क्लब, पंजतीर्थी ने पहली बार पिछले वर्ष संपूर्ण रामलीला को डोगरी भाषा में प्रस्तुत कर एक ऐतिहासिक पहल की। इससे पहले केवल चुनिंदा दृश्य ही डोगरी में कभी कबार यह क्लब किया करता था।क्लब के पूर्व निदेशक स्वर्गीय हीरा लाल वर्मा ने डोगरी रामलीला पुस्तक लिखकर इस परंपरा की नींव रखी थी। आज उनके बेटे और वरिष्ठ नाट्य निर्देशक डा. अनूप वर्मा इस सपने को और आगे ले जा रहे हैं।
डा.अनूप वर्मा का कहना है कि पारसी शैली में संवाद और अभिनय वर्षों से लगभग एक जैसे ही रहे, जिससे दर्शकों की रुचि कम होने लगी थी। इसलिए उन्होंने डोगरी भाषा और आधुनिक रंगमंचीय तकनीकों का सहारा लिया है। इस बार रामलीला पूरी तरह रिकार्डेड ट्रैक पर होगी। जिससे दर्शकों तक संवाद साफ और प्रभावशाली तरीके से पहुंच सकें।
जम्मू की रामलीला का गौरवशाली इतिहास
जम्मू-कश्मीर में रामलीला मंचन की परंपरा बहुत पुरानी है। बसोहली की रामलीला 115 सालों से अधिक का इतिहास रखती है। सनातन धर्म नाटक समाज, दीवान मंदिर जम्मू और सरस्वती ड्रामेटिक क्लब, बिल्लू मंदिर पंजतीर्थी की रामलीलाएं क्रमशः 150 और 101 सालों से भी अधिक समय से लगातार हो रही हैं। सैनिक कालाेनी और गीता मंदिर, बख्शी नगर में पिछले करीब तीन दशकों से अच्छी राम लीला हो रही है।हर बार वहां भी कुछ नए दृश्य और प्रयोग देखने को मिल रहे हैं।
दीवाना मंदिर के मंच पर कभी बालीवुड के दिग्गज कलाकार कुंदन लाल सहगल, ओम प्रकाश और सुंदर जैसे सितारे अभिनय कर चुके हैं।वहीं संगीतकार पंडित शिव कुमार शर्मा भी कभी दीवाना मंदिर और सरस्वती ड्रामेटिक क्लब में संगीत दिया करते थ। संतूर बजाया करते थे।
रामलीला केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं रही, बल्कि इसने अनेक कलाकारों को पहचान और आत्मविश्वास दिया। वरिष्ठ कलाकार अजय खजूरिया कहते हैं कि यह मंच कई कलाकारों के लिए नर्सरी रहा है। रेडियो, दूरदर्शन और फिल्मों में काम करने वाले लगभग हर कलाकार का पहला अनुभव रामलीला से ही जुड़ा रहा है।
इस बार डोगरी मंचन में वरिष्ठ कलाकारों की भागीदारी
इस बार डोगरी रामलीला में कई प्रतिष्ठित कलाकार भाग ले रहे हैं। रावण’ की भूमिका वरिष्ठ कलाकार मदन रंगीला निभा रहे हैं।राम की भूमिका में अर्जुन शर्मा होंगे।सीता के रूप में नाजुक भगत मंच पर नजर आएंगी।लक्ष्मण का अभिनय तरुण चाढ़क करेंगे। राजा जनक और विश्वामित्र की भूमिका क्रमशः जनक खजूरिया और अरविंद आनंद कर रहे हैं जबकि राजा दशरथ की भूमिका में सुधाकर खजूरिया होंगे।करीब 25 से 30 कलाकार इस मंचन में हिस्सा ले रहे हैं और डोगरी परिवेश से जुड़ा हर दृश्य दर्शकों को स्थानीयता का अहसास कराएगा।
परंपरा और आधुनिकता का संगम
जम्मू में रामलीला की परंपरा का स्वरूप बदल रहा है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत मंच और ध्वनि-प्रकाश तकनीक को आधुनिक रूप दिया गया है। सोशल मीडिया और लाइव प्रसारण ने इसकी पहुंच हजारों लोगों तक आसान बना दी है।डोगरी संस्था के महासचिव राजेश्वर सिंह राजू का मानना है कि केवल तकनीक से ही दर्शकों का मन नहीं बंधेगा। रामलीला की आत्मा उसकी सहजता और मौलिकता में है। अगर प्रयोग न किए जाएं तो यह परंपरा नीरस हो जाएगी।
रामलीला की सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता
रामलीला केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारे धार्मिक गौरव और सांस्कृतिक अस्तित्व से जुड़ी परंपरा है। इसमें यह संदेश निहित है कि सत्य और धर्म की हमेशा जीत होती है और बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है।आज जब युवा पीढ़ी पारंपरिक आयोजनों से दूरी बना रही है। ऐसे में रामलीला हमें अपनी जड़ों से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है। डोगरी रामलीला ने न केवल मातृभाषा को गौरव दिया है बल्कि कलाकारों और दर्शकों दोनों में नई ऊर्जा भी भरी है।
डोगरी राम लीला के निर्देशक डा. अनूप वर्मा जिन्होंने इसे माडर्न थियेटर का रंग देने का प्रयोग किया हैै। उनका कहना है कि जम्मू की रामलीला अब एक नए दौर में प्रवेश कर रही है। जहां परंपरा और आधुनिकता का संगम होगा। यह केवल धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि डोगरा संस्कृति का जीवंत उत्सव है। समय की मांग है कि दूसरी राम लीला मंचन करने वाली संस्थाएं भी इस दिशा में आगे आएं ताकि आने वाली पीढ़ियां भी रामलीला से जुड़ें और हमारी सांस्कृतिक धरोहर जीवित रह सके।
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