Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    J&K News: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, महिलाओं की मैटरनिटी लीव सेवा में ब्रेक नहीं

    Updated: Wed, 27 Aug 2025 09:28 AM (IST)

    जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने महिला कर्मचारियों के मातृत्व अवकाश पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति एमए चौधरी ने कहा कि मातृत्व अवकाश को सेवा में ब्रेक नहीं माना जाएगा। अदालत ने वरिष्ठता नियमितीकरण और अन्य लाभों से वंचित न करने का आदेश दिया। यह फैसला अनुबंध पर काम करने वाली उन महिला कर्मियों के हक में आया है जिन्हें मातृत्व अवकाश के कारण नुकसान हो रहा था।

    Hero Image
    मैटरनिटी लीव महिलाओं के करियर में ब्रेक नहीं

    जागरण संवाददाता, जम्मू। जम्मू-कश्मीर व लद्दाख उच्च न्यायालय ने महिला कर्मियों के प्रसूति अवकाश को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। न्यायाधीश एमए चौधरी ने महिला कर्मियों के लिए प्रसूति अवकाश को उनकी सेवा में ब्रेक न मानने और इस अवकाश अवधि को उनके वरिष्ठता, नियमितीकरण व अन्य लाभों से वंचित न करने का आदेश जारी किया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    न्यायाधीश एमए चौधरी के समक्ष बैंकिंग एसोासिएट्स की चार महिला कर्मियों बासू मगोत्रा, इशा सूदन, बिंतुल हुड्डा व तन्नु गुप्ता ने याचिका दायर की थी, जो अनुबंध के आधार पर कार्यरत थीं। इन महिला कर्मियों की ओर से पेश हुए वकीलों ने न्यायालय को बताया कि इन्होंने नियमों के आधार पर प्रसूति अवकाश लिया था। वहीं, अवकाश की इस अवधि को अब उनकी सेवा में ब्रेक मानते हुए उनकी वरिष्ठता को लंबित किया जा रहा है और उनको मिलने वाली वरिष्ठता, पदोन्नति व अन्य लाभों से वंचित किया जा रहा है।

    वहीं, प्रतिवादी पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव शर्मा व अधिवक्ता आकाश गुप्ता ने तर्क दिया कि अनुबंधित बैंकिंग एसोसिएट्स को नियमितीकरण से पहले दो वर्ष की सक्रिय सेवा पूरी करनी आवश्यक है। उन्होंने तर्क दिया कि मातृत्व अवकाश असाधारण अवकाश के अंतर्गत आता है और इसलिए उनकी अनुबंध अवधि बढ़ा दी गई।

    न्यायमूर्ति एमए चौधरी ने दो जुड़ी हुई याचिकाओं का निपटारा करते हुए बैंक के आदेशों को रद कर दिया और महिला कर्मचारियों को प्रसूति अवकाश को सेवा में निरंतरता के रूप में मानने का निर्देश दिया। न्यायालय ने मामले की सुनवाई में जम्मू-कश्मीर बैंक के उन आदेशों को असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण करार दिया।